Translate

Sunday, August 9, 2009

हिंदी अकादमी में संग्राम

दिल्ली की हिंदी अकादमी इन दिनों खासी चर्चा में है । जब से हास्य कवि और जामिया के पूर्व प्रोफेसर अशोक चक्रधर को हिंदी अकादमी का उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया है तब से ये बवाल खड़ा करने की कोशिश की जा रही है । पहले अकादमी की संचालन समिति की कई वर्षों से सदस्या रही और दिल्ली विश्विद्यालय की एक कॉलेज में हिंदी की शिक्षिका अर्चना वर्मा ने इस्तीफा दे दिया । इस्तीफे की वजह उन्होंने गिनाई कि एक विदूषक को अकादमी का उपाध्यक्ष बना दिया गया है और वो उनके रहते अकादमी में काम नहीं कर सकती । इसके बाद अकादमी के सात-आठ महीने पहले ही सचिन नियुक्त किए गए डॉ ज्योतिष जोशी ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया और कमोबेश वही वजहें गिनाईं जो अर्चना वर्मा ने गिनाई थी । बात यहीं नहीं रुकी । इसके बाद अकादमी से संबद्ध और वरिष्ठ आलोचक नित्यानंद तिवारी ने भी ये कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि अकादमी में स्थितियां ठीक नहीं और ऐसे में उनका अकादमी से जुड़े रहना उचित नहीं है । तिवारी जी ने सीधे-सीधे अशोक चक्रधर पर तो निशाना नहीं साधा लेकिन इशारा उधर ही था । दरअसल तिवारी जी के व्यक्तित्व में ये सब है भी नहीं । अशोक चक्रधर की नियुक्ति से खिन्न साहित्यकारोंम ने अकादमी में हुए इन इस्तीफों को खूब प्रचारित भी करवाया, मीडिया में दोनों पक्षों की बातें जमकर आई । लेकिन इन इस्तीफों के पीछे की कहानी कुछ और ही है । कुछ लोगों की व्यक्तिगत महात्वाकांक्षा तो कुछ लोगों का अपना अहम इस बवाल के पीछे है जिसे नैतिकता या यों कहें कि गंभीर साहित्य और अगंभीर साहित्य का जामा पहनाने की कोशिश की जा रही है । अशोक चक्रधर से पहले अकादमी के उपाध्यक्ष हिंदी के बेहद अहम साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी के बेटे मुकुंद द्विवेदी थे । साहित्य को उनका क्या योगदान है ये अबतक सामने तो नहीं आया है लेकिन वो लंबे समय तक अकादमी के उपाध्यक्ष रहे और अर्चना वर्मा और नित्यानंद तिवारी दोनों किसी ना किसी रूप में अकादमी से जुड़े रहे । उन वर्षों में किसी को साहित्य की याद नहीं आई क्योंकि मुकुंद जी शरीफ आदमी थे और इनमें से किसी की योजना में अड़ंगा नहीं लगाते थे । इसलिए उनका काल निर्विवाद चलता रहा । मुंकुद द्विवेदी के पहले जर्नादन द्विवेदी अकादमी के उपाध्यक्ष हुआ करते थे या तो उनका कद या फिर कांग्रेस के मजबूत नेता होने की वजह से किसी ने भी कभी भी उनके खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाई । जनार्दन द्विवेदी का भी साहित्यक लिखा-पढ़ा अभी सामने आना शेष है । तो उस वक्त जब कोई आवाज नहीं उठाई गई तो अब अचानक से क्या हो गया कि एक भूतपू्र्व प्रोफसर को अकादमी का उपाध्यक्ष नियुक्त करने पर बखेड़ा खड़ा किया जा रहा है । नित्यानंद तिवारी ने ये बयान दिया कि ज्योतिष के कार्यकाल में हिंदी अकादमी में जितना काम हुआ उतना पहले कभी नहीं हुआ । नित्यानंद तिवारी जी मेरे गुरू रह चुके हैं, मैं उनकी पूरी इज्जत करता हूं लेकिन गुरूजी से ये सवाल पूछने का मन तो करता ही है कि ज्योतिष के पहले अगर अकादमी में काम नहीं हो रहा था तो आपने उन वर्षों में आवाज क्यों नहीं उठाई । तब क्यों चुपचाप अकादमी की संचालन समिति में बने रहे । हिंदी अकादमी को वर्षों से जाननेवाले लोगों का कहना है कि इस विवाद के पीछे वो है ही नहीं जो मीडिया में प्रचारित प्रासरित किया करवाया जा रहा है । इस विवाद के पीछे दरअसल एक दूसरी कहानी है । अकादमी से जुडे़ सूत्रों का कहना है कि इस विवाद की जड़ में कॉमनवेल्थ गेम्स के वक्त विश्व कविता सम्मेलन के प्रस्ताव को दिल्ली सरकार द्वारा ठुकराया जाना है । अब पूरी कहानी सुनिए दिल्ली की मुख्यमंत्री को कॉमनवेल्थ गेम्स के वक्त राजधानी में विश्व कविता सम्मेलन करवाने का मौखिक प्रस्ताव दिया गया जो उन्होंने भी मौखिक रूप से स्वीकार कर लिया । कहा ये गया कि हिंदी अकादमी ये कार्यक्रम आयोजित करवाएगी और इसपर तकरीबन ढाई करोड़ रुपये खर्च आएंगे । नए-नए सचिव बने और पहला प्रशासनिक दायित्व संभाल रहे ज्योतिष जोशी ने बगैर लिखा-पढ़ी में दिल्ली सरकार की स्वीकृति लिए इस आयोजन के लिए एक कमिटी का गठन कर दिया, जिसके सदस्य कवि कुंवर नारायण, कवि-लेखक अशोक वाजपेयी और हिंदी अकादमी से ही जुड़े प्रोफेसर नित्यानंद तिवारी के अलावा दो और लोग बना दिए गए । कार्यक्रम का अप्रूवल अभी सरकार से आया नहीं लेकिन भाई लोग ललित कला अकादमी में बैठकर इस कार्यक्रम की रूपरेखा और विश्व कवि सम्मेलन में निमंत्रित किए जाने वाले कवियों के नाम पर मगजमारी में जुट गए । एक-दो नहीं कई बैठकें हो गई । अब बैठकें हो रही हैं तो सदस्यों को यात्रा भत्ता तो दिया ही जाएगा । कमिटी के सदस्यों को यात्रा भत्ता के मद में लगभग पचास रुपये खर्च कर दिए गए । आरोप तो ये भी है कि स्थानीय सदस्यों को अकादमी की नियत राशि से ज्यादा के यात्रा भत्ता का भुगतान किया गया । ये सबकुछ चल ही रहा था कि एक साथ दो घटनाएं घटी । एक तो दिल्ली सरकार ने विश्व कविता सम्मेलन के प्रस्ताव को साफ-साफ मना कर दिया और जो ढ़ाई करोड़ रुपये का बजट दिया गया था उसे भी मना कर दिया गया । दूसरे अशोक चक्रधर हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष बना दिए गए । इन दो घटनाओं के बाद हिंदी अकादमी में हड़कंप मच गया । सवाल ये खड़ा हो गया कि राज्य सरकार ने जिस कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति दी नहीं वैसे कार्यक्रम के लिए आयोजन समिति का गठन कैसे हो गया । आयोजन समिति का गठन हो भी गया तो उसकी बैठकें कैसे होने लगी और यात्रा का भुगतान किस मद से किया करवाया गया । बेचारे नए नवेले सचिव यहीं गच्चा खा गए । ऐसा प्रतीत होता है कि उनके सलाहकारों ने उन्हें गलत सलाह देकर फंसा दिया । दूसरे अकादमी को पर्दे के पीछे से चलानेवाले कर्ताधर्ताओं को ये अंदाज नहीं था कि अशोक चक्रधर की नियुक्ति हो जाएगी । उन्हें लग रहा था कि उनके ही खेमे का कोई साहित्यकार इस गद्दी को सुशोभित करेगा । लेकिन ये हो ना सका । जब ये हो ना सका तो फिर इन सबसे से बचने के लिए नैतिकता का ताना बाना बुना गया । और इस बात पर साहित्यकार बिरादरी में कनफुसकी शुरू करवाई गई कि एक विदूषक या फिर मंचीय कवि को अकादमी का उपाध्यक्ष बना दिया गया जो एक पवित्र संस्था को डुबो देगा । लेकिन जब सरकार की तरफ से हर साल दिए जाने वाले पुरस्कारों की संख्या में कटौती का प्रस्ताव आया तो सभी ने इसे स्वीकार कर लिया । किसी ने भी जरा भी विरोध नहीं किया । गौरतलब है कि हिंदी अकादमी हर साल कृति और साहित्यकार सम्मान के नाम पर हर साल लगभग दो दर्जन पुरस्कार देकर लेखकों को सम्मानित करती रही है और इसी बहाने किताबों की खरीद हो जाती थी जो बाद में अकादमी अपने कार्यक्रमों के बहाने बंटवा देती थी और इस तरह प्रचार प्रसार होता था । उधर अशोक चक्रधर ने खुद मोर्चा संभाला और अखबारों में बयान देने लगे । पिछले दिनों एक राष्ट्रीय दैनिक को दिए एक साक्षात्कार में अशोक चक्रधर ने ये स्वीकार किया कि उन्होंने कांग्रेस पार्टी के लिए चुनाव पूर्व कैंपेन के लिए गाने लिखे । ये कहकर वो सत्ताधारी दल से अपनी नजदीकी का एहसास साहित्यकारों को करवा कर उन्हें दबाव में लेना चाहते हैं । अच्छा होता अगर वो ये बातें अपने साक्षात्कार में नहीं कहते । लेकिन अब सवाल ये खड़ा हो गया है कि राजधानी में सक्रिय इस अकादमी का भविष्य क्या होगा । सचिव ज्योतिष जोशी के इस्तीफे के बाद अकादमी का कामकाज ठप है । गतिविधियों पर विराम सा लग गया है । साहित्यकारों के आपसी झगड़े ने एक अच्छे भले संस्था का भट्ठा बैठा दिया । और अब इस बात की संभावना प्रबल हो गई है कि इस संस्था पर अफसरों का कब्जा हो जाए और राजधानी की इस अकादमी का हश्र भी अन्य सूबे के अकादमियों जैसा हो जाए और अफसरों की ऐशगाह बन जाए ।

No comments: