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Tuesday, June 29, 2010

हिरासत में कैसे हो हिफाजत

हाल में पंजाब से खबर आई कि पुलिस ने एक प्रेमी युगल को पार्क से पकड़ कर थाने ले आई । अगले दिन सुबह लड़की पूछताछ के बाद नारी निकेतन भेज दिया गया और लड़के की मौत हो गई । उसके पहले उत्तर प्रदेश के औरैया में थाने में एक खुदकुशी की खबर से लोगों का गुस्सा इतना भड़ा कि पूरे शहर में आगजनी और विरोध प्रदर्शन हुए । लोगों के बढ़ते गुस्से की वजह से हरकत में आई राज्य सरकार ने पूरे थाने के सारे पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया और थानेदार के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया । एक इसी तरह की खबर दिल्ली से आई जहां चोरी के मामूली इल्जाम में एक नाबालिग को पकड़ कर थाने लाया गया और जब उसकी मां जब उसे छुडाने थाने आई तो पुलिसवालों ने लड़के को नंगाकर कर अपनी मां से शारीरिक संबंध बनाने का तालिबानी हुक्म सुनाया । ऐसा नहीं करने पर लड़के की जबरदस्त पिटाई की गई । यह तो देश की राजधानी दिल्ली की पुलिस है जो आपके लिए सदैव का दावा करती है । जिस दिल्ली पुलिस को देश की श्रेष्ठ पुलिस फोर्स में से एक माना जाता है । ऐसी कई खबरें देशभर के अन्य हिस्सों से बहुधा आती रहती हैं । लेकिन आमतौर पर पुलिवालों को ऐसे मामलों में सजा होने की खबरे नहीं आती ।
कुछ दिनों पूर्व एशिएन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स की एक रिपोर्ट - टॉर्चर इन इंडिया 2010 प्रकाशित हुई। इस रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि भारत में पुलिस हिरासत में होनेवाली मौत की संख्या में लगातार इजाफ हो रहा है । उस रिपोर्ट के मुताबिक दो हजार चार से लेकर दो हजार आठ तक में हिरासत में मौत का प्रतिशत लगभग पचपन फीसदी बढ गया । एशिएन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स की यह रिपोर्ट चौंकाने वाली है । एक ओर जब हम आधुनिक होने की राह पर चल रहे हैं वैसे में हमारे देश की पुलिस के इस तरह के कारनामे लोकतंत्र पर बदनुमा दाग की तरह हैं ।
सरकार को भी पुलिसिया जुल्म का एहसास है इसलिए सरकार ने संसद के पिछले सत्र में प्रीवेंशन ऑफ टॉर्चर बिल पेश किया था जो अब राज्यसभा की मंजूरी का इंतजार कर रहा है । हलांकि इस बिल की कई धाराओं को लेकर कानून के जानकारों के बीच मतभेद है । कुछ लोगों का मानना है कि यह कानून सिर्फ अंतराष्ट्रीय दबाव में बनाया जा रहा है क्योंकि भारत ने यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन अगेंस्ट टॉर्चर पर हस्ताक्षर किए हैं । लेकिन यहां सवाल इस बात का नहीं है कि भारत में यह कानून किसके दबाव में बनाया जा रहा है । उससे बड़ा सवाल यह है कि कानून बनाकर क्या इस तरह के पुलिसिया जुल्म को रोका जा सकता है । क्या कानून के रखवालों को कानून का भय है । अगर भय होता तो वो इस तरह की हरकतों से बाज आते । गांधी जी ने बहुत पहले इस बात को महसूस किया था और लिखा था – इन इंडिया वी नीड अ पुलिस टू पुलिस द पुलिस । मतलब कि भारत में हमें एक ऐसे पलिस बल की आवश्यकता है जो पुलिस फोर्स पर नजर रख सके । गांधी जी ने आज से लगभग पचास साल पहले यह टिप्पणी की थी लेकिन गांधी के देश में गांधी की आवाज अनसुनी कर दी गई ।
दरअसल पुलिसिया जुल्म की यह समस्या सामाजिक ज्यादा है । हमारे यहां पुलिसवालों को यह मानसिकता हो गई है कि गाली-गलौच और लाठी डंडे की भाषा में ही बात करने से अपराध कम होंगे । यहां हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या इस बात की है कि पुलिस की इस मानसिकता को कैसे बदला जाए । दूसरी जो समस्या है वो है सिस्टम की जो पुलिसिया जुल्म के बढने के लिए उतना ही जिम्मेदार है । देश में बढ़ते अपराध से निबटने के लिए हमारे पास पर्याप्त संख्या में पुलिस बल नहीं है । नतीजा यह होता है कि कांसटेबल से लेकर इंसपेक्टर तक पर केस को जल्द से जल्द निबटाने का भयानक दबाव होता है । इस दबाब से निबटने के लिए उनके पास कोई ट्रेनिंग नहीं होती । समुचित ट्रेनिंग के आभाव में होता यह है कि केस को जल्दी निबटाने के चक्कर में वो कई बार आरोपियों को ही निबटा देते हैं । एक बार भर्ती होने के बाद सिपाहियों और उसके उपर के हवलदार या फिर सब इंसपेक्टर किसी को भी पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं दिया जाता । रिफ्रेशर कोर्स नहीं होते । आरोपियों से सच उगलवाने के नए वैज्ञानिक तकनीक के बारे में उन्हें बताया नहीं जाता । उन्हें तो लगता है कि सच उगलवाने का एकमात्र उपाय थर्ड डिग्री है । आज देश में जरूरत इस बात की है कि कानून व्यवस्था को लागू करने की जिम्मेदारी जिनके कंधों पर हैं उनको विशेष रूप से ट्रेनिंग दी जाए और समय समय पर उनकी काउंसिलिंग भी की जाए, ताकि दिल्ली, पंजाब और औरैया जैसी घटनाएं ना हों । और किसी बेटे को इस बात के लिए मजबूर ना किया जाए कि वो अपनी मां के साथ शारिरिक संबंध बनाए ।

1 comment:

Udan Tashtari said...

लगातार ट्रेनिंग की जरुरत तो है ही...