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Wednesday, August 3, 2011

आतंक के आका की जीवनी

पाकिस्तानके मिलिट्री शहर एबटाबाद में जब इस साल दो मई को दुनिया केसबसे दुर्दांत और खूंखार आतंकवादी को अमेरिकी नेवी सील्स ने मार गिरायातो पूरे विश्व में मौत के इस सौदागर ओसामा बिन लादेन के बारे में जाननेकी जिज्ञासा लोगों में बेतरह बढ़ गई । अमेरिकी कार्रवाई के बाद जिस रह सेएबटाबाद के ओसामा के ठिकाने से उसके और उसकी बेगम, उसके बच्चे, उसकेपरिवार और उसके रहन सहन के तौर तरीकों के बारे में खबरें निकल कर आ रहीथी उसने ओसामा और उसकी निजी जिंदगी में लोगों की रुचि और बढ़ा दी । पूरीदुनिया के लोग ये जानने के लिए बेताब हो रहे थे कि ओसामा का बचपन कहांबीता, उसका पारिवारिक जीवन कैसा था, उसकी परवरिश किस तरह के परिवेश मेंहुई, वो कैसे आतंकवादी बना, उसने कितनी शादियां की, कैसे उसनेअफगानिस्तान की तोरा बोरा की पहाड़ियों की गुफाओं में अपने दिन बिताए ।आदि आदि । ओसामा अपने जीते जी ही एक जिंदा किवदंती बन चुका था । उशने चारशादियों की और दर्जनों बच्चे पैदा किए । इतने बड़े परिवार को लेकर येशख्स आतंकवादी गतिविधियों को कैसे मैनेज करता था इसको लेकर तरह तरह कीहैरतअंगेज बातें छन छन कर बाहर निकलती थी । जब उसके आंतकवादी संगठन नेविश्व के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में घुसकर 11 सितंबर जैसी दिल दहलादेनेवाली घटना को अंजाम दिया तो उसके बारे में जानने की जिज्ञासा और बढ़ीथी । उसके दिमाग को पढ़ने की ललक में कई लेखकों और मनोवैज्ञानिकों नेखासी मशक्कत की । मैं चौथी दुनिया के इस स्तंभ समेत कई जगहों पर पहले भीइस बात को कई बार कह चुका हूं कि अंग्रेजी के प्रकाशकों में पाठकों की इसजिज्ञासा को भांपने और फिर उसे पूरा करने की गजब की क्षमता और इच्छाशक्तिहै । जैसे ही कोई घटना होती है या फिर कोई बड़ी वारदात होती है उसे भीमार्केट करने की अद्भुत क्षमता अंग्रेजी के प्रकाशकों में है । यहां हमहिंदी जगत के लोग बेहद पिछड़े हुए नजर आते हैं । अब अगर हम ओसामा का हीउदाहरण लें तो पाते हैं कि उसके जीवन काल में और उसके मरणोपरांत अंग्रेजीमें उसको केंद्र में रखकर कई किताबें लिखी गई और पाठकों के बीच खासीलोकप्रिय भी हुई । खूब बिकी भी । लेकिन मेरे जानते हिंदी प्रकाशन जगत मेंओसामा को लेकर कोई हलचल ही नहीं हुई । आप दो मई के बाद के अखबार और न्यूजचैनलों को देख लीजिए वो ओसामा बिन लादेन के व्यक्तिगत जीवन से लेकर आतंकीसंगठन चलाने की उसकी क्षमता को लेकर भरे पड़े हैं । लेकिन अगर आप हिंदीप्रकाशकों की पुस्तक सूची देखें तो शायद ही ओसामा पर केंद्रित कोई किताबआपको नजर आए । इस तरह के कई उदाहरण आपको विश्व साहित्य में मिल जाएंगे ।चंद साल पहले की बात है ऑस्ट्रिया की एक दिल दहला देने वाली क्राइमस्टोरी दुनियाभर के अखबारों में सुर्खियां बनी थी । ऑस्ट्रिया में जोशफ्रिट्ज नाम के एक शख्स ने अपनी बेटी को चौबीस साल तक बंधक बनाकर रखा औरइस दौरान लगातार उसके साथ बलात्कार करता रहा । उसके अपनी बेटी से सातबच्चे भी पैदा हुए । यह एक साधारण अपराध की कहानी नहीं थी बल्कि यह एकऐसे जुर्म की दास्तां थी जिसने दुनियाभर के लोगों में पापी पिता के खिलाफघृणा भर दी । जब एमा डोनोग का उपन्यास-रूम- प्रकाशित हुआ तो उसे पश्चिमीदेशों के अखबारों ने जोश फ्रिट्ज के जुर्म से जोड़ दिया । उपन्यासकार परआरोप लगा कि उसने अपने उपन्यास का प्लॉट जोश फ्रिट्ज के जुर्म की कहानीसे उठाया है । इन आरोपों में चाहे जितना दम हो लेकिन प्रकाशकों ने पहलकरके-रूम- को जबरदस्त प्रचार दिलवाया । लेकिन हमारे हिंदी के प्रकाशककिसी तरह की कोई फॉर्वर्ड प्लानिंग नहीं करते । कारोबार को देसी अंदाजमें चलाते हैं, कारोबार को प्रोफेशनल तरीके से चलाने का चलन अभी हिंदीप्रकाशन जगत में है नहीं । जिस वक्त जो पांडुलिपि आ जाए उसे प्रकाशित करदेने का चलन ज्यादा है । खैर यह एक अवांतर विषय है जो विस्तार की मांगकरता है । इस पर फिर कभी बात होगी ।फिलहाल हम बात कर रहे थे ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद उस शख्सियत मेंपैदा हुए जन जिज्ञासा की । इसी जन जिज्ञासा के चलते दो हजार नौ मेंप्रकाशित ओसामा बिन लादेन की जीवनी को भारत में नए सिरे से लॉंच किया गयाहै । ओसामा की इस लगभग प्रामाणिक जीवनी को जीन सासन ने उसकी पहली पत्नीनजवा और उसके बेटे ओमर से बातचीत के आधार पर लिखा है । इस किताब के साथएक विडंबना है - दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी की यह जीवनी समर्पित है उनलोगों को जिनके अपने आतंकी हमले में मारे गए । उनलोगों को भी समर्पित हैयह किताब जो आतंकवादी वारदात के शिकार हुए ।दरअसल ओसामा के बारे में लिखना लगभग नामुमकिन था क्योंकि जब से आतंकीगतिविधियों में भाग लेना शुरू कर किया तो उसने खुद को जन-गतिविधियों सेदूर कर लिया । जब 1980 में सोवियत सेना ने अफगानिस्तान पर हमला किया तोओसामा और उसके रहनुमा अब्दुल्ला आजम ने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप सेमुजाहिदीनों की मदद शुरू कर दी । उस वक्त तक ओसामा आतंकी संगठनों कोसिर्फ आर्थिक मदद कर रहा था । इस तरह की कई कहानियां जो ओसामा से जुड़ीहैं वो लगभग ज्ञात हैं लेकिन इस जीवनी में उसके बेटे ओमर और उसकी पहलीपत्नी नजवा ने कई राज खोले हैं । मसलन ओसामा के बारे में यह धारणा है किवो इंजीनियर था लेकिन उसकी पत्नी नजवा ने ये खुलासा किया है कि ओसामा नेकभी भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई नहीं की । ओसामा का पारिवारिक जीवन बेहदसंपन्न था । उसके पिता बहुत बड़े बिल्डर थे और 1966 में उन्होंने अपनापहला निजी विमान खरीदा था । ओसामा की इस जीवनी में उसके कई निजी प्रसंगोंको लेखक ने उसके बेटे और उसकी पत्नी से बातचीत और ईमेल से सवाल जबाव केआधार पर सामने लाकर कहानी की शक्ल दी है । अगर नजवा की माने तो ओसामा औरउसके बीच चौदह साल की उम्र के पहले ही प्यार हो गया था । नजवा को ओसामाकी आंखों में अपने लिए प्यार तो दिखता था लेकिन ओसामा उसको खुलकर बोलनहीं पाते थे । उसके मुताबिक ओसामा बेहद इंट्रोवर्ट था । नजवा ओसामा काचुप रहना बुरा भी लगता था। आखिरकार चौदह साल की उम्र में ओसामा ने अपनीअम्मी से अपने विवाह की इच्छा जाहिर कर दी । हलांकि नजवा की मां इस शादीके खिलाफ थी लेकिन परिवारवालों के दबाव के आगे दोनों के बीच शादी हुई ।ओसामा ने आगे चलकर तीन और शादियां की । नजवा और ओमर ने ओसामा को एकसंवेदनशील पारिवारिक इंसान से एक खूंखार आतंकवादी बनते देखा और उसे इसकिताब में बयान किया । अफगानिस्तान की तोरा-बोरा की पहाड़ी में एके 47 कीतड़तड़ाहट के बीच की जिंदगी को बेहद ही रोचक तरीके से पेश किया गया है ।ओसामा की इस जीवनी को उसकी पत्नी और बेटे से बातचीत के आधार पर एक सूत्रमें पिरोना बेहद मुश्किल काम था । जीन सासन ने काफी मशक्कत की है लेकिनकिताब के संपादन में उनसे चूक हो गई है उसमें से वेवजह के विस्तार और कुछघटनाओं के दोहराव को संपादित किया जा सकता था । शुरुआती अध्याय मेंमुस्लिम समाज में लड़कियों की स्थिति को बताने के लिए बेवजह का विस्तारदिया गया है । लगभग चार सौ पन्नों की यह किताब इस लिहाज से अहम है किइसमें ओसामा के बारे में उसके बेटे और बीबी ने विस्तार से बताया है जोलगभग प्रामाणिक माना जा सकता है ।

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