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Friday, August 5, 2011

सफलता के नशे में बेअंदाज धोनी

भारतीय क्रिकेट टीम को बुलंदी के शिखर पर पहुंचाने वाला शख्स- महेन्द्र सिहं धौनी । पहले टी 20 में देश को विश्वविजेता बनाने वाला शख्स महेन्द्र सिंह धौनी । तकरीबन अट्ठाइस साल बाद भारतीय क्रिकेट के लिए विश्वविजेता का ताज हासिल करने वाला शख्स महेन्द्र सिंह धौनी । टेस्ट क्रिकेट में टीम इंडिया को नंबर वन की कुर्सी तक पहुंचाने वाला शख्स महेन्द्र सिंह धौनी । अबतक अपने देश की धरती या फिर विदेश में कोई भी टेस्ट सीरीज नहीं हारने वाला शख्स महेन्द्र सिंह धौनी । बहुत कम समय में इतनी सारी सफलताओं का स्वाद चखना और उसको जज्ब करके शांत चित्त रहकर दुनिया भर में अपनी नेतृत्व क्षमता का लोहा मनवा लेना वाला शख्स महेन्द्र सिंह धोनी। लेकिन अब लगता है कि सफलता के शीर्ष पर बैठा भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान पर वही सफलता उनके सर चढ़कर बोलने लगी है । सफलात के नशे में वो इतना चूर हो गए हैं कि अपने अलावा उन्हें कुछ और दिखता ही नहीं है । पिछले दिनों लंदन में भारत के उच्चायोग की पार्टी में समय देकर महेन्द्र सिंह धोनी नहीं गए । वह अपनी पत्नी के फाइंडेशन के लिए धन इकट्ठा करने के लिए एक होटल में नीलामी के लिए मौजूद थे । मौजूद तो वहां सचिन तेंदुलकर समेत पूरी टीम इंडिया भी थी । इस वजह से उच्चायोग को अंतिम समय में क्रिकेटरों के सम्मान में आयोजित अपनी पार्टी रद्द करनी पड़ी । डिप्लोमैटिक सर्किल में देश की ना सिर्फ बेइज्जती हुई बल्कि उच्चायोग के लिए यह एक बेहद शर्मिंदगी लेकर भी आया। लंदन के भारतीय उच्चायोग की यह पार्टी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के नियमों और परंपराओं के मुताबिक ही थी । नियम ये कहता है कि विदेश यात्रा पर जा रही टीम इंडिया को उच्चायोग या राजदूतावास के दावत में सम्मिलित होना आवश्यक है । लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि क्रिकेट के मैदान में प्रचलित मान्यताओं की धज्जी उड़ानेवाले धौनी को यह याद नहीं रहा कि डिप्लोमेसी में इस तरह के कदम पूरे देश की किरकिरी हो सकती है । हुई भी । क्रिकेट के मैदान पर विकेट कीपर को गेंदबाजी करते हुए नहीं देखा गया है । लेकिन इंगलैंड के खिलाफ टेस्ट सिरीज में धौनी ने प्रचलिक मान्यताओं को धता बता दिया। दस्ताने उतार कर भारत के इस विकेटकीपर को दुनिया ने गेंदबाजी करते हुए देखा। भारतीय टीम के पूर्व कप्तान कपिलदेव और सौरव गांगुली ने धौनी के इस कदम को क्रिकेट का माखौल उड़ानेवाला कदम करार दिया था ।
जब लंदन के भारतीय उच्चायोग ने विदेश मंत्रालय से धौनी के इस वर्ताव की शिकायत की तो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड धौनी के बचाव में उतर आया । दरअसल भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड हमेशा अपनी सुविधा के अनुसार तर्क गढ़ता रहता है । जब उस संस्था पर मनोरंजन कर और इंकम टैक्स लगाने की बात होती है तो वह अपने आपको देश के गौरव से जोड़कर इन करों में रियायत की वकालत करता है । लेकिन जब यही अपेक्षा देश उनसे करता है तो वो अपने आपको निजी संस्था बताने में लग जाते हैं । इस तरह के कई वाकए हुए हैं जब बीसीसीआई ने अलग अलग वक्त पर अलग अलग स्टैंड लिया है । जहां तक मुझे याद है कि किसी मामले में अदालत में भी बीसीसीआई ने इस तर्क का सहारा लिया था कि वह एक निजी संस्था है और लोकहित के नाम पर उसपर दबाव नहीं बनाया जा सकता है । देश के लिए गौरव की बात करनेवाले क्रिकेट बोर्ड को देश के गौरव की अगर फिक्र होती तो धौनी और टीम इंडिया को उच्चायोग के डिनर में जाना होता । लेकिन खिलाड़ियों को भी लगता है कि जब बोर्ड को ही देश की फिक्र नहीं है तो उन्हें क्यों हो । हमारे क्रिकेट के खिलाड़ी सिर्फ और सिर्फ पैसा के लिए खेलते हैं । देश के गौरव का तो वो पैसा कमाने के लिए एक प्लेटफॉर्म की तरह इस्तेमाल करते हैं और यह सीख उन्हें उनके संस्था यानि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड से मिलती है । दरअसल क्रिकेट खेलनेवाले खिलाड़ी पैसा कमाने की अंधी दौड़ में इस कदर मुब्तिला हो चुके हैं कि उन्हें विदेशों में भी देश के गौरव और सम्मान की चिंता नहीं रहती । महेन्द्र सिंह धौनी देश के पिछड़े राज्यों में एक झारखंड से आते हैं और बेहद संघर्षों के बाद अपनी काबिलियत के बूते पर एक मुकाम हासिल किया लेकिन अब लगता है कि सफलता के शीर्ष पर पहुंचकर या तो वो असुरक्षा बोध से ग्रस्त हो गए हैं या फिर सफलता का ऐसा नशा उनपर चढ़ा है कि वो अपने आगे किसी को कुछ समझते ही नहीं है । ज्यादा दिन नहीं हुए हैं जब पद्म पुरस्कार वितरण समारोह में भी महेन्द्र सिंह धौनी नहीं पहुंचे थे । जिस दिन महामहिम राष्ट्रपति महेन्द्र सिंह धौनी समेत देश के अन्य विशिष्ट वयक्तियों को पद्म पुरस्कारों से नवाजनेवाली थी उस दिन धोनी साहब के किसी विज्ञापन फिल्म की शूटिंग में वयस्त होने की खबर आई थी । उस वक्त भी महेन्द्र सिंह धौनी के पद्म पुरस्कार नहीं लेने के लिए पहुंचने पर खासी आलोचना हुई थी । तब भी बीसीसीआई ने धौनी का बचाव किया था और अब भी वो लचर दलीलों के साथ अपने कप्तान का बचाव कर रही है ।
लेकिन ऐसा लगता है कि धोनी को पैसे के आगे ना तो अपनी प्रतिष्ठा का ख्याल है और ना ही देश और उसकी संवैदानिक मान्यताओं और संस्थाओं का । अब वक्त आ गया है कि देश के कर्ता-धर्ताओं को या भारत सरकार को बीसीसीआई को एकदम से नितांत निजी संस्था की तरह ट्रीट करना चाहिए और ना तो उन्हें टैक्स में किसी तरह की रियायत मिलनी चाहिए और ना ही आईपीएल के तमाशे में मनोरंजन कर में छूट मिलनी चाहिए । दरअसल इतना कड़ा स्टैंड हम तभी ले पाएंगे जब देश के शीर्ष नेतृत्व में दृढ राजनैति इच्छा शक्ति हो । अबतक बीसीसीआई पर उन्हीं लोगों का कब्जा है जो या तो सरकार में शामिल रहे हैं या फिर सरकार में शामिल लोगों के पिट्ठू रहे हैं । नतीजा यह होता है कि देश की एक निजी संस्था को पैसा कमाने के लिए देश का नाम का इस्तेमाल करने की छूट मिली हुई है । उनसे तत्काल यह छूट वापस ली जानी चाहिए और उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम की बजाए बीसीसीआई की टीम माना जाना चाहिए । और सिर्फ देश की सरकार को नहीं बल्कि देश की जनता को भी क्रिकेटरों को किसी निजी संस्था के लिए खेलनेवाले खिलाड़ियों की तरह मानना चाहिए और उनके साथ भी उसी तरह का व्यवहार करना चाहिए । वो किसी क्लब के हीरो हो सकते हैं किसी देश के नहीं । देश का नायक होने के लिए देश की इज्जत, उसकी मान मर्यादा, उसकी मान्यताओं, उसकी परंपराओं में ना केवल विश्वास और आस्था होना जरूरी है बल्कि समय आने पर यह दिखाना भी पडता है कि मान्यताओं में आस्था और विश्वास भी है

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