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Friday, January 27, 2012

'71 के अशोक

बीते सोलह जनवरी को हिंदी के वरिष्ठ कवि, आलोचक, स्तंभकार अशोक वाजपेयी इकहत्तर बरस के हो गए । उनके जन्मदिन के मौके पर इंडिया इंटरनेशलन सेंटर की एनेक्सी में एक बेहद आत्मीय सा समारोह हुआ । उस मौके पर वरिष्ठ आलोचक डॉक्टर पुरुषोत्तम अग्रवाल के संपादन में अशोक वाजपेयी पर एकाग्र एक किताब का विमोचन मशहूर चित्रकार रजा साहब, अशोक जी और उनकी पत्नी रश्मि जी ने किया । डॉ अग्रवाल द्वारा संपादित इस पुस्तक का नाम कोलाज : अशोक वाजपेयी है जिसे राजकमल प्रकाशन, दिल्ली ने छापा है । समारोह के दौरान ही रजा साहब ने यह सवाल उठाया कि किताब का नाम कोलाज क्यों । जिसपर पुरुषोत्तम अग्रवाल ने सफाई देते हुए बताया कि उसमें अशोक वाजपेयी के व्यक्तित्व के विभिन्न रंगों को एक जगह इकट्ठा किया गया है इस वजह से पुस्तक का नाम कोलाज रखा गया है ।इस किताब को देखने का मौका अभी नहीं मिला है लेकिन जैसा कि पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने बताया उससे अंदाज लगा कि उसमें अशोक जी के मित्रों के लेख और उनके कुछ पुराने फोटोग्राफ्स संकलित हैं ।पुरुषोत्तम जी ने इस किताब की तैयारी और उसमें होने वाली देरी के बारे में बताया । कृष्ण बलदेव वैद ने अशोक वाजपेयी को सैकड़ों विशेषणों से बेहद ही रोचक तरीके से नवाजा है जो कि कोलाज में संकलित है ।
पुस्तक विमोचन और पुरुषोत्तम अग्रवाल के संक्षिप्त भाषण के बाद अशोक वाजपेयी से सवाल जवाब हुए । कई शास्त्रीय किस्म के सवाल हुए जिसका अंदाज अशोक जी ने अपने ही अंदाज में दिया । पहला सवाल उनकी पत्नी ने उनसे पूछा कि आपकी कविताओं में परिवार बार-बार आता है तो कविता के परिवार और खुद के परिवार में कोई अंतर नजर आता है । पत्नी के सवालों को वो भी सार्वजनिक तौर पर सामाना करना मुमकिन तो नहीं होता लेकिन वो भी ठहरे अशोक वाजपेयी । क्रिकेट की शब्दावली में कहें तो अशोक वाजपेयी ने अपनी पत्नी के सवाल को स्टेट ड्राइव करने की बजाए हल्के से टर्न देकर फ्लिक कर दिया । उन्होंने कहा कि मुझे ये मानने में कोई संकोच नहीं है कि मुझे परिवार को जितना वक्त देना चाहिए था उतना दे नहीं पाया । यहीं पर उन्होंने ये भी कहकर रश्मि जी को खुश कर दिया कि उनका रश्मि में इस बात को लेकर अगाध विश्वास था कि उनके अंदर एक को परिवार चलाने की क्षमता हैं । रश्मि जी के सवालों से ही उन्होंने उनको खुश करने का एक और मौका ढूंढा और सार्वजनिक तौर पर अपनी पत्नी की तारीफ करके उनको प्रसन्न कर दिया, हलांकि पति के पास कोई विकल्प होता भी नहीं है । एक सवाल के जबाव में उन्होंने यह भी कहा कि वो बहुलतावाद के हिमायती हैं लेकिन अगर उनको चुनना पड़ा तो वो अनिच्छापूर्वक कविता और भारत भवन को चुनेंगे । इस बात पर अफसोस भी जताया कि वो पूर्वग्रह को नहीं चुन पाए । कविता में बेवजह और फैशन में अंग्रेजी के शब्दों के इस्तेमाल पर अशोक जी ने अपनी आपत्ति दर्ज करवाई । उन्होंने कहा कि कविता में अंग्रेजी शब्दों का गैरजरूरी इस्तेमाल उन्हें बौद्धिक लापरवाही लगता है इस तरह के जो शब्द इस्तेमाल होते है उससे कविता में कोई विशेष रस भी पैदा नहीं होता । लेकिन अशोक वाजपेयी ने साथ में यह भी जोड़ दिया कि भाषा का खुलापन बेहद आवश्यक है । कविता में अंग्रेजी के शब्दों के इस्तेमाल पर तो कविवर जानें लेकिन मुझे लगता है कि अंग्रेजी के वो शब्द जो हमारी बोलचाल की भाषा में स्वीकृत होकर हमारी ही भाषा के शब्द जैसे हो गए हैं उनका इस्तेमाल गद्य में तो कम से कम गलत नहीं ही है । जैसे कि अगर हम कहीं चयनित पारदर्शिता की जगह सेलक्टिव ट्रासपेरिंसी लिखें तो प्रभाव भी ज्यादा होता है और ग्राह्यता भी । अशोक जी के बारे में मैं नहीं कह रहा हूं लेकिन हिंदी के कई बड़े लेखक भाषा की शुद्धता को लेकर खासे सतर्क रहते हैं और उन्हें लगता है कि अगर हिंदी में अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल हो जाएगा तो हमारी भाषा भ्रष्ट हो जाएगी । हिंदी के उन शुद्धतावादियों से मेरा आग्रह है कि वो हिंदी को इतनी कमजोर भाषा नहीं समझें कि अंग्रेजी के दो चार शब्दों के इस्तेमाल से वह भ्रष्ट हो जाएगी । मेरा तो मानना है कि किसी भी अन्य भाषा के शब्दों को ग्रहण करनेवाली भाषा समृद्ध होती है । अंग्रेजीवालों को तो किसी भी भाषा के शब्दों को लेने में और उसके उपयोग में कभी कोई दिक्कत नहीं होती । हर वर्ष अंग्रेजी के शब्दकोश में हिंदी के कई शब्दों को शामिल कर उसका धड़ल्ले से उपयोग किया जाता है । अब जंगल, बंदोबस्त आदि अंग्रेजी में भी उपयोग में आते हैं और पश्चिम के कई लेखकों की कृतियों में इस तरह के शब्दों के इस्तेमाल को देखा जा सकता है । किसी भी शब्द को लेकर आग्रह और दुराग्रह ठीक नहीं है हमें तो उस शब्द की स्वीकार्यता और संप्रेषणीयता को देखने और तौलने की जरूरत है ।
हम फिर से वापस लौटते हैं अशोक जी के सवाल जबाव के सत्र की ओर । वहां कई छोटे बड़े सवाल हो रहे थे, शास्त्रीयता कुछ बढ़ रही थी लेकिन आयोजकों ने समय कम रखा था । जनसत्ता के संपादक ओम थानवी ने अशोक जी पर एक सवाल दागा । थानवी जी ने कहा कि अशोक वाजपेयी उनके जानते सबसे ज्यादा प्रेम कविताएं लिखनेवाले कवियों में से एक हैं । सवाल यह था कि इन प्रेम कविताओं के पीछे राज क्या है । लगा कि ओम थानवी की गुगली पर वाजपेयी जी बोल्ड हो जाएंगे लेकिन उन्होंने एक सधे हुए बल्लेबाज की तरह ओम जी की गुगली को पहले ही भांप लिया और सीधे बल्ले से उसको खेल दिया । वाजपेयी जी ने माना कि उनकी हर प्रेम कविता किसी ना किसी को संबोधित हैं । लेकिन यहां एक मंजे हुए खिलाड़ी की तरह यह जोड़ना भी नहीं भूले कि उन्हें यह नहीं पता कि जिनको ये प्रेम कविताएं संबोधित हैं उनतक वो पहुंच पाई या नहीं ।
अशोक वाजपेयी के बोलने के अंदाज में एक चुटीलापन है । वो बेहद कठिन से कठिन सवाल को भी हल्के फुल्के अंदाज में निबटाने की क्षमता रखते हैं । जब उनसे एक व्यक्ति ने पूछा कि वो नए लोगों के लिए क्या किया और उनके साथ क्यों नहीं उठते बैठते हैं तो अशोक जी ने बेहद खिलंदड़े अंदाज में यह कहा कि नई पीढ़ी को उनकी सलाह की जरूरत ही नहीं है वो लोग खुद से बहुत समझदार हैं । लेकिन नई पीढ़ी के लिए अपने किए गए कामों को याद भी दिलाया और वहां मौजूद लोगों को यह याद दिलाया कि पहचान सीरीज के तहत उन्होंने उस दौर के कई कवियों का पहला कविता संग्रह प्रकाशित करने में अहम भूमिका निभाई थी । इस छोटे लेकिन गरिमापूर्ण कार्यक्रम के बाद रजा साहब ने रात्रिभोज का आयोजन किया था । रजा साहब ने इस बात पर खुशी जाहिर की वो इतने लंबे समय तक फ्रांस में रहने के बाद अपने जिंदगी के इस पड़ाव पर मुल्क लौट आए हैं । मेरी इच्छा थी कि रजा साहब से यह पूछूं कि दशकों तक विदेश में रहने के बाद वो कौन सी वजह थी जो उनको भारत खींच लाई । लेकिन रजा साहब के इतने चाहनेवालों ने उनको घेर रखा था कि यह सवाल मेरे मन में ही रह गया । दो साल पहले भी रजा साहब का एक इंटरव्यू किया था लेकिन सनारोह में कई कैमरों के बीच उतना वक्त नहीं मिल पाया था कि तफसील से बात हो सके । ये ख्वाहिश है कि रजा साहब का एक लंबा इंटरव्यू करूं और उनसे पेंटिग्स के अलावा उनकी जिंदगी के कई पहलुओं पर बात करूं । देश की राजनीति से लेकर उनके समकालीन पेंटरों के संस्मऱण को कैमरे में कैद कर सकूं ।

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