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Wednesday, January 18, 2012

बार-बार वर्धा

दस ग्यारह महीने बाद एक बार फिर से वर्धा जाने का मौका मिला । वर्धा के महात्मा गांधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के छात्रों से बात करने का मौका था । दो छात्रों - हिमांशु नारायण और दीप्ति दाधीच के शोध को सुनने का अवसर मिला । महात्मा गांधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में यह एक अच्छी परंपरा है कि पीएच डी के लिए किए गए शोध को जमा करने के पहले छात्रों, शिक्षकों और विशेषज्ञों के सामने प्रेजेंटेशन देना पड़ता है । कई विश्वविद्यालयों में जाने और वहां की प्रक्रिया को देखने-जानने के बाद मेरी यह धारणा बनी थी विश्वविद्यालयों में शोध प्रबंध बेहद जटिल और शास्त्रीय तरीके से पुराने विषयों पर ही किए जाते हैं । मेरी यह धारणा साहित्य के विषयों के इर्द-गिर्द बनी थी । जब महात्मा गांधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता के छात्रों से मिलने और उनके शोध को सुनने का मौका मिला तो मेरी यह धारणा थोड़ी बदली । हिमांशु नारायण के शोध का विषय भारतीय फीचर फिल्म और शिक्षा से जुड़ा था जबकि दीप्ति ने इंडिया टीवी और एनडीटीवी का तुलनात्मक अध्ययन किया था । दोनों के अध्ययन में कई बेहतरीन निष्कर्ष देखने को मिले । हिमांशु ने तारे जमीं पर और थ्री इडियट जैसी फिल्मों के आधार पर श्रमपूर्वक कई बातें कहीं जिसपर गौर किया जाना चाहिए । हिमांशु ने पांच सौ से ज्यादा लोगों से बात कर उनकी राय को अपने शोद प्रबंध में शामिल किया है जो उसे प्रामाणिकता प्रदान करती है । उसके शोध के प्रेजेंटेशन के समय कई सवाल खड़े हुए । यह देखना बेहद दिलचस्प था कि दूसरे विषय के छात्र या फिर उसके ही विभाग के छात्र भी पूरी तैयारी के साथ आए थे ताकि शोध करनेवाले अपने साथी छात्रों को घेरा जाए । सुझाव और सलाह के नाम पर जब छात्र खड़े हुए तो फिर शुरू हुआ ग्रीलिंग का सिलसिला जिसे विभागाध्यक्ष प्रोपेसर अनिल राय अंकित ने रोका । दीप्ति का शोध बेहद दिलचस्प था । एनडीटीवी और इंडिया टीवी की तुलना ही अपने आप में दिलचस्प विषय है। खबरों को पेश करने का दोनों चैनलों को बेहद ही अलहदा अंदाज है । लेकिन दो साल के अपने शोध के दौरान दीप्ति ने यह निष्कर्ष दिया किस समाचार में कमी आई है और न्यूज चैनलों पर मनोरंजन बढ़ा है । दोनों चैनलों की कई हजार मिनटों की रिकॉर्डिग को विश्लेषण करने के बाद उसके निष्कर्ष दिलचस्प थे । चौंकानेवाले भी । वर्धा
जाकर एक बार फिर से बापू की कुटी या आश्रम में जाने का मन करने लगा था । दूसरे दिन सुबह सुबह वर्धा के ही गांधी आश्रम पहुंच गया जो विश्वविद्यालय से आधे घंटे की दूरी पर स्थित है । वहां पहुंचकर एक अजीब तरह की अनुभूति होती है । वातावरण इस तरह का है कि लगता है कि आप वहां घंटों बैठ सकते हैं । तकरीबन दस महीने पहले जब वर्धा गया था तो भी गांधी आश्रम गया था । वहां गांधी के कई सामान रखे हैं । गांधी का बाथ टब, उनका मालिश टेबल, उनकी चक्की आदि आदि । उनके बैठने का स्थान भी सुरक्षित रखा हुआ है । पिछली बार जब गया था तो वहां बंदिशें कम थी । लेकिन इस बार पाबंदियां इस वजह से ज्यादा थी कुछ महीनों पहले वहां रखा बापू का ऐनक चोरी चला गया था । बापू के चश्मे के चोरी हो जाने के बाद वहां रहनेवाले कार्यकर्ताओं ने थोड़ी ज्यादा सख्ती शुरू कर दी थी । गांधी जिस कमरे में बैठते थे वहां बैठने के बाद आप उनके सिद्धांतों को महसूस कर सकते हैं । एक अजीब सा अहसास । गांधी आश्रम में हम चार लोग गए थे । मैं था, अनिल राय जी थे, विश्वविद्यालय के ही शिक्षक मनोज राय थे और इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के शिक्षक प्रोफेसर सी पी सिंह थे । वहां इस बार मेरी मुलाकात गांधी जी के वक्त से आश्रम में रह रही कुसुम लता ताई से हुई । वो गांधी जी के कमरे के बाहर बैठी थी । वहां हम इनके साथ बैठे । बतियाए । हम एक ऐसी महिला के साथ बैठे थे जिन्होंने गांधी को न सिर्फ देखा था बल्कि उनके आश्रम में कई साल तक उनके साथ रही थी । बातचीत के क्रम में मैने उनसे गांधी जी के बारे में पूछा । गांधी कैसे थे । वो कैसे रहा करते थे, आदि आदि । गांधी, कस्तूरबा और जय प्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती के बारे में उन्होंने कई बातें बताई । उनसे प्रभावती देवी और जयप्रकाश के बारे में बात करते हुए मुझे गोपाल कृष्ण गांधी की कुछ बातें याद आ गई जो उन्होंने अपनी किताब- ऑफ अ सर्टेन एज- की याद आ गई । गोपाल कृष्ण गांधी ने लिखा है- जयप्रकाश नारायण को गांधी जी जमाई राजा मानते थे क्योंकि उच्च शिक्षा के लिए जयप्रकाश के अमेरिका चले जाने के बाद प्रभावती जी गांधी के साथ वर्धा में ही रहने लगी थी और बा और बापू दोनों उन्हें पुत्रीवत स्नेह देते थे । दरअसल जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद के भाई की लड़की थी । वर्धा के आश्रम में रहने के दौरान बापू और कस्तूरबा दोनों उन्हें अपनी बेटी की तरह मानने लगे । भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गांधी जी और कस्तूरबा को पुणे के आगा खान पैलेस में कैद कर लिया गया । वहां बा की तबीयत बिगड़ गई तो गांधी ने 6 जनवरी 1944 ने अधिकारियों को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि दरभंगा जेल में बंद प्रभावती देवी को पुणे जेल में स्थानांतरित किया जाए ताकि कस्तूरबा की उचित देखभाल हो सके । उस पत्र में गांधी ने लिखा कि प्रभावती उनकी बेटी की तरह हैं । यह बातें कुसुम लता ताई ने भी बताई । उन्होंने कहा कि बा और बापू दोनों प्रभावती देवी को बेटी की तरह मानते थे । गोपाल
कृष्ण गांधी ने गांधी और जयप्रकाश के बीच की पहली मुलाकात का दिलचस्प वर्णन किया है । उनके मुताबिक तकरीबन सात साल बाद जब जयप्रकाश नारायण अमेरिका में अपनी पढ़ाई खत्म कर भारत लौटे तो तो अपनी पत्नी से मिलने वर्धा गए जहां वो गांधी के सानिध्य में रह रही थी । पहली मुलाकात में गांधी ने जयप्रकाश से देश में चल रहे आजादी के आंदोलन के बारे में कोई बात नहीं कि बल्कि उन्हें ब्रह्मचर्य पर लंबा उपदेश दिया । बताते हैं कि गांधी जी ने प्रभावती जी के कहने पर ही ऐसा किया क्योंकि प्रभावती जी शादी तो कायम रखना चाहती थी लेकिन ब्रह्मचर्य के व्रत के साथ । जयप्रकाश नरायण ने अपनी पत्नी की इस इच्छा का आजीवन सम्मान किया । तभी तो गांधी जी ने एक बार लिखा- मैं जयप्रकाश की पूजा करता हूं । गांधी जी की ये राय 25 जून 1946 के एक दैनिक में प्रकाशित भी हुई थी। गांधी से जयप्रकाश का मतभेद भी था, गांधी जयप्रकाश के वयक्तित्व में एक प्रकार की अधीरता भी देखते थे लेकिन बावजूद इसके वो कहते थे कि जयप्रकाश एक फकीर हैं जो अपने सपनों में खोए रहते हैं । कुसुम लता ताई ने भी जयप्रकाश और प्रभावती के बारे में कई दिलचस्प किस्से सुनाए । इसके अलावा देश की वर्तमान हालत और राजनीति के बारे में कुसुम ताई से लंबी बात हुई । उसके
बाद हमलोग वापस विश्वविद्यालय लौटे । वहां भी कुलपति विभूति नारायण राय की पहल पर गांधी हिल्स बना है । गांधी हिल्स पर बापू का ऐनक, उनकी बकरी, उनकी चप्पल और उनकी कुटी बनाई गई है । आप वहां घंटों बैठकर गांधी के दर्शन के बारे में मनन कर सकते हैं बगैर उबे । महात्मा गांधी अंतराष्ट्रीय हिंदी विश्विविद्यालय में गांधी के बाद अब कबीर हिल्स बन रहा है जहां कबीर से जुड़ी यादें ताजा होंगी । बार बार वर्धा जाना और गांधी से जुड़ी चीजों को देखना पढ़ना चर्चा करना अपने आप में एक ऐसा अनुभव है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है बयां नहीं ।