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Saturday, January 28, 2012

तुष्टीकरण का खतरनाक खेल

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में आखिरकार विवादास्पद लेखक सलमान रश्दी को नहीं आने दिया गया और राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने चंद कट्टरपंथियों के आगे घुटने टेक दिए । बात यहीं खत्म नहीं हुई जयपुर में रश्दी को वीडियो कान्फ्रेंसिग भी नहीं करने दी गई । एक भारतीय मूल के लेखक को अपने ही देश में आने से रोककर और फिर उसे वीडियो लिंक के जरिए बातचीत की इजाजत नहीं देकर राजस्थान की गहलोत सरकार ने जिस खतरनाक परंपरा की शुरुआत कर दी है उसके दूरगामी परिणाम होंगे । लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने जवाहरलाल नेहरू के दौर के बाद संस्थाओं,परंपराओं और मान्यताओं की परवाह करना बंद कर दिया है । जवाहरलाल नेहरू का जरूर यह मानना था कि भारत में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए हर तरह की संस्थाओं को मजबूत करना होगा और नेहरू ने ताउम्र इसको अपनाया और संस्थाओं को मजबूत किया । बाद में इंदिरा गांधी ने तो संस्थाओं और मान्यताओं की परवाह ही नहीं की और एक तानाशाह की तरह जो मन में आया वो किया जिसकी परिणति देश में इमरजेंसी के तौर पर हुई । राजीव गांधी से भी शुरुआत में लोगों को उम्मीद थी लेकिन वह भी अपनी मां के पदचिन्हों पर ही चले और अंतत: अपनी सुधारवादी छवि को पीछे छोड़कर कट्टरपंथिय़ों के आगे झुकनेवाले नेता बनकर रह गए थे । जवाहरलाल नेहरू की संस्थाओं में आस्था अवश्य थी लेकिन वो भी मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करते थे । 1964 में जब दिल्ली से राज्यसभा के सदस्य का चुनाव होना था को स्वभाविक दावेदारी उस वक्त नई दिल्ली म्युनिसिपल काउंसिल के उपाध्यक्ष इंद्र कुमार गुजराल की थी । लेकिन जवाहर लाल नेहरू दिल्ली के मेयर नूर उद्दीन अहमद को उम्मीदवार बनाना चाहते थे क्योंकि वो मुसलमान थे । नेहरू ने उनका नाम तय भी कर दिया था लेकिन इंदिरा गांधी की अपनी अलग राजनीति और गुट था । इंदिरा गांधी ने अपनी राजनीति के तहत नेहरू की अनुपस्थिति में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई और पिता की पसंद बताकर इंद्र कुमार गुजराल के नाम पर मुहर लगवा ली । ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं जब कांग्रेस के नेताओं ने मुसलमानों को रिझाने के लिए इस तरह के काम किए ।
सलमान रश्दी को जयपुर आने से रोकने का मसला सिर्फ अभिवयक्ति का आजादी पर पाबंदी का मसला नहीं है यह पूरा मामला जुड़ा है उत्तर प्रदेश में होनेवाले विधानसभा चुनाव में मुसलमानों को रिझाने से । उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के लिए बेहद अहम है और अहम है उत्तर प्रदेश में मुसलमान मतदाताओं की भूमिका भी । सूबे के तकरीबन 114 सीटों पर बीस हजार से ज्यादा मुसलमान मतदाता है । माना जाता है कि यही बीस हजार वोटर इन सीटों पर उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करते हैं । लिहाजा कांग्रेस ने उनको रिझाने और अपने पक्ष में करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है । कांग्रेस पार्टी मुसलमानों को अपने पक्ष में करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है । सालों से बुनकरों की खास्ता हालत से बेपरवाह केंद्र सरकार को अचानक उनकी याद आती है और आनन फानन में बुनकरों के लिए हजारो करोड़ के पैकेज का ऐलान कर दिया जाता है । उत्तर प्रदेश में चुनावों के ऐलान से ठीक पहले मुसलमानों के लिए साढ़े चार फीसदी आरक्षण का फैसला कैबिनेट से हो जाता है । उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर जारी किए गए अपने विजन डॉक्यूमेंट में कांग्रेस ने आगे भी आबादी के हिसाब से अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने की वकालत की है । उसी दस्तावेज में मुस्लिम अध्यापकों की भर्ती के विशेष अभियान से लेकर अल्पसंख्यक सशक्तीकरण के लिए पार्टी की प्राथमिकता पर बल दिया गया है । दरअसल यह सब कुछ एक सोची समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है । दरअसल कांग्रेस चाहती है कि किसी भी तरह से उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के वोट उसकी झोली में आए और दशकों से खोई राजनीतिक जमीन हासिल की जाए । यूपीए 1 के शासन काल के दौरान 30 नवंबर दो हजार छह को मुसलमानों की हालत पर सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पेश की गई थी लेकिन तकरीबन पांच साल के बाद कांग्रेस उस रिपोर्ट पर जागी । रंगनाथ मिश्रा कमीशन की रिपोर्ट की सुध लेनेवाला कोई है या नहीं इसका पता अबतक नहीं चल पाया है । बटला हाउस एनकाउंटर को जिस तरह से दिग्विजय ने हवा दी और उसे एक बार फिर से जिंदा करने की कोशिश की उसके पीछे भी अल्पसंख्यकों को एक जुट करने की राजनीति है।
मुसलमानों के वोट के लिए जिस तरह से कांग्रेस काम कर रही है वह हमें अस्सी के दशक के राजीव गांधी के दौर की याद दिलाता है । अपनी मां की हत्या के बाद उपजे सहानुभूति लहर पर सवार होकर राजीव गांधी ने आजाद भारत के इतिहास में सबसे बडा़ बहुमत हासिल किया था । लेकिन चौरासी में सत्ता संभालने के बाद जिस तरह से राजीव गांधी ने फैसले लिए वो बेहद चौंकानेवाले और हैरान करनेवाले थे। राजीव गांधी ने अपने शासनकाल में मुसलमानों को रिझाने के लिए जो कदम उठाए वो बाद में पार्टी के लिए आत्मघाती ही साबित हुए । बोफोर्स खरीद सौदे में दलाली के आरोपों और रामजन्मभूमि आंदोलन के भंवर में फंसे राजीव गांधी ने शाहबानो मामले में जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने के लिए संविधान में संशोधन कर दिया वह एक स्वपनदर्शी नेता का प्रतिगामी कदम था । राजीव गांधी ने उस वक्त के अपने प्रगतिशील मुस्लिम साथियों की राय को दरकिनार कर यह कदम उठाया था । राजीव गांधी ने ही सबसे पहले सलमान रश्दी की किताब पर पाबंदी लगाई थी । भारत विश्व का पहला देश था जिसने इस किताब पर बैन लगाया था तब सैटेनिक वर्सेस को छपे चंद ही दिन हुए थे । भारत में किताब बैन होने के बाद ईरान के खुमैनी ने सलमान के खिलाफ फतवा जारी किया था । उस दौर में राजीव गांधी ने जो गलतियां की उसका खामियाजा उन्हें 1989 के आम चुनाव में उठाना पड़ा और प्रचंड बहुमत से सरकार में आनेवाले राजीव को विपक्ष में बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा । लेकिन कांग्रेस के अब के नेता राजीव के उस वक्त के फैसलों पर ध्यान देकर फैसले कर रहे हैं लेकिन नतीजों पर उनका ध्यान नहीं है । अगर नतीजों का विश्लेषण करते तो शायद इस तरह के कदम उटाने से परहेज करते । अब जो काम कांग्रेस सलमान रश्दी के बहाने से या फिर मुसलमानों को आरक्षण देने जैसे कदमों से कर रही है उसकी जड़ें हम राजीव गांधी के दौर में देख सकते हैं । जो काम उस वक्त राजीव गांधी की सरकार ने किया था वही काम अब राजस्थान की गहलोत सरकार कर रही है । गोपालगढ़ दंगे में सूबे की पुलिस की भूमिका को लेकर मुसलमानों का आक्रोश झेल रहे अशोक गहलोत को रश्दी में एक संभावना नजर आई और उन्होंने उसे एक अवसर की तरह झटकते हुए इस बात के पुख्ता इंतजाम कर दिए कि रश्दी किसी भी सूरत में भारत नहीं आ पाए । रश्दी को भारत आने से रोकने की सफलता से उत्साहित अशोक गहलोत ने मिल्ली काउंसिल की आड़ लेकर वीडियो कान्फ्रेंसिंग भी रुकवा दी । जिस समारोह में केंद्रीय मंत्री को घुसने के लिए आधे घंटे तक कतार में खड़ा रहना पड़े वहां मिल्ली काउंसिल के चंद कार्यकर्ता धड़धड़ाते हुए अंदर तक पहुंच जाएं तो पुलिस और सरकार की मंशा साफ तौर सवालों के घेरे में आ जाती है । उसी तरह से कांग्रेस को लग रहा है कि सलमान रश्दी को भारत आने से रोककर वो उत्तर प्रदेश में मुसलमानों का वोट पा जाएगी । ऐसा हो पाता है या नहीं ये तो 6 मार्च को पता चलेगा लेकिन लेकिन मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए जो खतरनाक खेल कांग्रेस केल रही है उससे न तो अकलियत का भला होनेवाला है और न ही कांग्रेस पार्टी का ।

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