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Saturday, April 28, 2012

डर्टी पिक्टर पर डर्टी पॉलिटिक्स

फिल्म डर्टी पिक्चर को एक निजी टेलीविजन चैनल पर प्रसारित नहीं करने की सलाह देकर सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है । फिल्मी दुनिया से जुड़े लोगों से लेकर बौद्धिक वर्ग के बीच इस बात को लेकर डिबेट शुरू हो गई है । सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने एक निजी टेलीविजन चैनल को भेजे अपनी सलाह में केबल टेलीविजन नेटवर्क रूल 1994 का सहारा लिया और उसके सबरूल 5 और 6 का हवाला देते हुए फिल्म डर्टी पिक्चर के प्रसारण को रात ग्यारह बजे के बाद करने की सलाह दी । केबल टेलीविजन रूल यह कहता है कि किसी भी चैनल को बच्चों के नहीं देखने लायक कार्यक्रम के प्रसारण की इजाजत उस वक्त नहीं दी जा सकती जिस वक्त बच्चे सबसे ज्यादा टीवी देखते हों। सूचना और प्रसारण मंत्रालय यह मानकर चल  रहा है कि रात ग्यारह बजे के बाद अपेक्षाकृत कम बच्चे टीवी देखते हैं । सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को इस बात की जानकारी कहां से मिली कि दोपहर बारह बजे सबसे ज्यादा संख्या में बच्चे टीवी देखते हैं । उसका आधार क्या है । क्या इस बात का कोई वैज्ञानिक आधार है या फिर टीआरपी के दस हजार बक्सों से किए जाने वाले विश्लेषण के आधार पर यह मान लिया गया है कि दिन में ज्यादा संख्या में बच्चे टीवी देखते हैं । क्या रात ग्यारह बजे के बच्चे टीवी नहीं देखते हैं । मंत्रालय के आला अफसर अबतक उसी पुरातन काल में जी रहे हैं जब यह माना जाता था कि बच्चे खा पीकर रात नौ बजे तक सो जाते हैं । समाज में हो रहे बदलाव और बच्चों के बदलते लाइफ स्टाइल को मंत्रालय नजरअंदाज कर रहा है । महानगर की अगर बात छोड़ भी दें तो किस शहर में अब बच्चे ग्यारह बजे तक सोते होंगे, वो भी छुट्टी वाले दिन। मंत्रालय को लगता है कि वो निजी टीवी चैनल पर डर्टी पिक्चर का प्रसारण रुकवाकर बच्चों और किशोरों को इस फिल्म को देखने से रोक लेंगे । आज बच्चों के लिए इंटरनेट का एक्सेस इतना आसान है कि उन्हें रोक पाना मुमकिन ही नहीं है । किशोरों के हाथ में जो मोबाइल फोन है उसमें भी इंटरनेट की सुविधा मौजूद है । समाज बदल रहा है, विचार बदल रहे हैं, बदल रही है लोगों की सोच, लेकिन सूचना और प्रसारण मंत्रालय में बैठे कर्ता-धर्ता अबतक पाषाणकाल में ही जी रहे हैं । उन्हें तो खुद को बदलना होगा और अगर किसी एक्ट में इस तरह के प्रावधान हैं तो पुराने पड़ चुके उन नियम कानून में भी बदलाव की दरकार है ।   लेकिन लगता है कि यहां मूल कारण बच्चे नहीं कुछ और हैं जिसका खुलासा होना चाहिए।
दक्षिण भारतीय हिरोइन स्लिक स्मिता की जिंदगी पर बनी इस फिल्म को पहले तो सेंसर बोर्ड ने एडल्ट सर्टिफिकेट दिया लेकिन बाद में जब इस फिल्म के टीवी पर दिखाने के अधिकार का करार हुआ तो बोर्ड ने करीब पचास से ज्यादा दृश्य और डॉयलॉग पर कैंची चलाने के बाद इस फिल्म को यूए यानि यूनिवर्सल एडल्ट का दर्जा दे दिया । एडल्ट फिल्म और यूनिवर्सल एडल्ट फिल्म में बुनियादी फर्क है । सोलह साल से कम उम्र के बच्चे सिनेमा हॉल में एडल्ट यानि वयस्क फिल्में नहीं देख सकते हैं भले ही वो अपने माता पिता के साथ क्यों ना हों । लेकिन जिस फिल्म को सेंसर बोर्ड युनिवर्सल एडल्ट फिल्म का प्रमाण पत्र देती है उसको बच्चे अपने अभिभावक के साथ जाकर देख सकते हैं । माना यह गया था कि कई फिल्में बच्चे अपने माता पिता के साथ देख सकते हैं ताकि उनके मन में उठने वाले प्रश्नों का उत्तर उनके साथ बैठे मां-बाप दे सकें।  डर्टी पिक्चर को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आनेवाला केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने टीवी पर दिखाए जाने के लिए जब यूए सर्टिफिकेट दिया है तो नियमानुसार डर्टी पिक्चर को टीवी पर नहीं दिखाए जाने की सलाह देना सरासर गलत है । अगर बच्चे अपने घर में माता पिता की मौजूदगी में डर्टी पिक्टर देखना चाहें तो देखें । और ऐसा पहली बार नहीं होता कि यूए प्रमाण पत्र मिली फिल्म टीवी पर दिखाई जाती । इसके पहले भी इस श्रेणी की कई फिल्में निजी चैनलों पर दिन और शाम के वक्त दिखाई जा चुकी है । लंबी सूची है जिसको यहां गिनाने का कोई मतलब नहीं है ।  
अब अगर हम उन तर्कों पर विचार करें जिसके आधार पर डर्टी पिक्चर के प्रसारण को रात ग्यारह बजे के बाद करने लायक माना गया तो क्या वही तर्क मनोरंजन चैनल पर दिखाए जा रहे धारावाहिकों पर लागू नहीं होते । ज्यादा दिन नहीं हुए हैं जब एक चैनल पर सबसे ज्यादा दर्शक संख्या वाले वक्त पर इस जंगल से मुझे बचाओ जैसे धारावाहिक दिखाए गए जिसमें नायिकाएं बेहद कम कपड़ों में झरने के नीचे नहाती हुई दिखाई गई । बिग बॉस में चाहे वो अस्मित और वीणा मलिक के एक ही बिस्तर में लेटकर अंतरंग संवाद के दृश्य हों या फिर राहुल महाजन और उसकी नायिका पायल रोहतगी के स्वीमिंग पूल में तैरने के दृश्य हों क्या वो एडल्ट की श्रेणी में नहीं आते । हाल ही में एक सीरियल में लंबे लंबे चुंबन दृश्य दिखाए गए तो उस वक्त मंत्रालय ने क्या कर लिया । हमारे देश में सच का सामना जैसे कार्यक्रम भी दिखाए गए जिसमें सीधे सीधे पूछा जाता था कि आपने पत्नी के अलावा कितनी महिलाओं से जिस्मानी संबंध बनाए । उसे भी रात ग्यारह बजे के बाद दिखाने के लिए उक्त चैनल को राजी करने में सूचना और प्रसारण मंत्रालय के पसीने छूट गए थे । एक चैनल पर राखी सावंत का शो आता था जिसमें इस तरह के संवाद होते थे जिसको सुनकर वयस्क भी असहज हो जाते थे ।
मंत्रालय का तर्क है कि उनके पास प्री सेंसरशिप का अधिकार नहीं है । ठीक है मान लिया कि आपके पास वो अधिकार नहीं है । लेकिन क्या रात ग्यारह बजे से पहले वैसे दृश्यों को दिखाने वाले चैनलों के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई की गई या सिर्फ चेतावनी देकर खानापूरी कर ली गई । अब भी कई चैनलों पर ऐसे धारावाहिक चल रहे हैं जिनके संवाद इतने अश्लील होते हैं कि आप परिवार के साथ बैठकर देखने में खुद को असहज महसूस करते हैं लेकिन मंत्रालय के अधिकारियों को उस वक्त केबल टेलीविजन रेगुलेशन एक्ट की याद नहीं आती है । क्यों । 
दूसरी जो अहम बात है वह भी समझ से परे है । इस फिल्म में शानदार भूमिका निभाने के लिए फिल्म की नायिका विद्या बालन को राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया । उनकी भूमिका की जोरदार प्रशंसा की गई । अब यहां भी सूचना और प्रसारण मंत्रालय बुरी तरह से फंसता नजर आ रहा है । नियमों के मुताबिक जिस भी फिल्म को किसी भी क्षेत्र में चाहे वो अभिनय हो या फिर गीत से लेकर साउंड रिकॉर्डिंग तक में अगर राष्ट्रीय पुरस्कार मिलता है तो उस फिल्म को टैक्स फ्री करना पड़ता है । साथ ही उस फिल्म को दूरदर्शन पर दिखाने की भी परंपरा है । अब अगर मंत्रालय यह मानता है कि यह फिल्म बच्चों के देखने लायक नहीं है तो क्या दूरदर्शन पर भी इसका प्रसारण रात ग्यारह बजे के बाद ही किया जाएगा या फिर दूरदर्शन पर डर्टी पिक्चर का प्रसारण ही नहीं किया जाएगा । दूरदर्शन की पहुंच केबल टीवी से कहीं ज्यादा है यह बात तो प्रामाणिक है । क्या डर्टी पिक्टर को टैक्स फ्री किया जाएगा या फिर इस नियम की भी काट मंत्रालय निकाल लेगा । कुल मिलाकर देखा जाए तो इस पूरे मामले में सूचना और प्रसारण मंत्रालय की खासी किरकिरी हुई है और अब वक्त आ गया है कि मंत्रालय अपने फैसले लेने के पहले उससे जुड़े सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार करे ।


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