Translate

Monday, July 29, 2013

जाति के जंजाल में मोदी

किसी भी समाज के लोगों का दिल जीतने और उन पर राज करने के लिए उस क्षेत्र विशेष की सामाजिक संरचना को जानना और समझना बेहद आवश्यक है । हमारे देश की सामजिक संरचना का आकलन और उसके हिसाब से उस संरचना को अपने अनुकूल करने के लिए शासक वर्ग हमेशा से रणनीति बनाता रहा है । सिर्फ शासक वर्ग ही नहीं बल्कि बल्कि राजा बनने की ख्वाहिश रखनेवाले भी सामाजिक संरचना को अपने अनुकूल बनाने के लिए प्रयत्नशील रहता है और उसी हिसाब से अपनी चालें चलता है । इतिहास इस बात का गवाह है कि किस तरह से अंग्रेजों ने भारत की सामाजिक संरचना का बेहतरीन आकलन और इस्तेमाल कर अपनी सत्ता लंबे समय तक कायम रखी । समाजिक संरचना में जितनी तरह की विषमताएं या जटिलताएं होती हैं वो शासक लर्ग को अनुकूल स्थितियां प्रदान करती है । यह बात औपनिवेशिक काल से लेकर उत्तर औपनिवेशिक काल तक में कई बार साबित होती रही है । बिहार की राजनीति में जाति लंबे समय से अहम स्थान रखती है । देश के तकरीबन हर प्रांत में चुनाव के वक्त उम्मीदवारों के चयन में जाति को ध्यान में रखा जाता है लेकिन बिहार में कई सीटों की उम्मीदवारी तो सिर्फ और सिर्फ जाति के आधार पर किया जाता है । जातिगत आधार पर चुने गए ज्यादातर उम्मीदवार चुनाव जीतकर संसद और विधानसभा में पहुंचते भी रहे हैं । बिहार में जातिगत आधार पर चुनाव की जड़े बेहद गहरी हैं । नबंवर 1926 के काउंसिल चुनावों को अगर हम जातिगत वोटिंग पैटर्न का आधार मानें तो हम देखते हैं कि यह पैटर्न साल दर साल और ज्यादा मजबूत होता चला गया । 1927 में बोर्ड चुनाव के बाद तिरहुत के उस वक्त के कमिश्नर मिडलटन ने अपनी रिपोर्ट में इस बात के पर्याप्त संकेत दिए थे कि उम्मीदवारों के चयन का आधार सिद्धांत या सामाजिक क्रियाकलाप नहीं है बल्कि उनकी जाति है और कांग्रेस को भी यह मालूम है । यह कहना सही नहीं होगा कि बिहार में छियासी साल बाद भी हालात बदले नहीं हैं लेकिन इतना तो अवश्य कहा जा सकता है कि चुनाव में अब भी जाति एक मुख्य फैक्टर है । अन्य पिछड़ा वर्ग को मंडल कमीशन के तहत आरक्षण देने के फैसले के बाद से सूबे में एक बार फिर से जातीय ध्रुवीकरण हुआ । उसी ध्रुवीकरण और पिछड़ों की अस्मिता के नाम पर लालू यादव ने डेढ दशक तक बिहार पर राज किया । लेकिन लालू राज से त्रस्त लोगों ने बाद के चुनावों में विकास की राह को अपनाने की ठानी और नीतीश को सूबे की कमान मिली । नीतीश कुमार को भी यह मालूम था कि बगैर जातिगत वोट बैंक के लिए लंबे समय तक शासक बने रहना मुमकिन नहीं है । तो उन्होंने भी विकास के रास्ते पर चलते हुए अगड़ी जातियों और अति पिछड़ा, महादलित और पसमांदा मुसलमान के गठजोड़ की जमीन तैयार करने की लगातार कोशिश की । मेरा मकसद बिहार चुनाव में जातियों का इतिहास बताना नहीं बल्कि 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी को लेकर बिहार में भारतीय जनता पार्टी की विशेष रणनीति पर बात करना है ।
यह अकारण नहीं है कि जब देशभर में बीजेपी के नए नायक नरेन्द्र मोदी को हिंदुत्व के सबसे ताकतवर प्रतीक के तौर पर प्रोजेक्ट किया जा रहा है ठीक उसी वक्त बिहार में मोदी को पिछड़ा कह कर प्रचारित किया जा रहा है । 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए बिहार में जिस रणनीति पर भारतीय जनता पार्टी काम कर रही है उसमें मोदी की जाति को प्रचारित किया जाना बेहद अहम है । सूबे में भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रचार मशीनरी का भरपूर फायदा उठाने का भी फैसला लिया है । इस मशीनरी के तहत सूबे के सुदूर इलाकों में यह बात फैलाई जा रही है कि नरेन्द्र मोदी तेली जाति से आते हैं जो पिछड़ी जाति में शुमार होता है । रणनीति यह भी है कि बिहार में नरेन्द्र मोदी को पिछड़ों के नेता के तौर पर पेश किया जाए और पिछड़ी जाति के बीच यह संदेश दिया जाए कि जब एक पिछड़े के प्रधानमंत्री बनने का वक्त आया तो एक पिछड़े वर्ग के ही नेता नीतीश कुमार ने उन्हें धोखा दिया । इस रणनीति के पीछे पिछड़े वोट बैंक में सेंध लगाने की योजना है । नरेन्द्र मोदी को पिछड़े वर्ग का नेता प्रचारित करनेवाली भारतीय भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों के सामने सबसे बड़ी दिक्कत नीतीश और लालू यादव के बीच चुनाव करने की है । लालू और नीतीश दोनों का वोट बैंक पिछड़ी जाति के वोटर हैं । बिहार के जातीय समीकरण में अन्य पिछड़ी जातियां यानि ओबीसी और अति पिछड़ी जातियां यानि एमबीसी की अहम भूमिका है । सूबे में तकरीबन तैंतीस फीसदी ओबीसी हैं तो एमबीसी भी तकरीबन बाइस फीसदी हैं । इसमें अगर पिछड़ी जातियों के ग्यारह फीसदी कोयरी और कुर्मी को जोड़ दिया जाए तो एक तैंतीस फीसदी का मजबूत गठजोड़ बनता है । नीतीश कुमार इसको ही अपनी ताकत बनाना चाहते हैं । उन्हें मालूम है कि तकरीबन साढे चौदह फीसदी यादव उनके साथ नहीं आएंगे । उधर भारतीय जनता पार्टी भी पिछड़ों को यह कहकर अपने पाले में लाने की जुगत में है कि मोदी पिछड़ा वर्ग के नेता हैं । बिहार के वर्तमान विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के इक्यानवे विधयकों में से इकतालीस विधायक अति पिछड़े और महादलित हैं । उन्हें विधयाकों की इस संख्या पर संतोष भी है लेकिन इस बात की चिंता भी सता रही है कि उनके अति पिछड़े और महादलित विधायक तो नीतीश के साथ रहकर चुनाव जीते थे । उनको अपने पाले में बचाए रखने की गंभीर चुनौती भारतीय जनता पार्टी के सामने है । भारतीय जनता पार्टी यह मान चल रही है कारोबारी वर्ग से उनको समर्थन मिलता रहा है । बिहार में सात फीसदी बनिया हैं जिनके वोट भारतीय जनता पार्टी को पारंपरिक रूप से मिलते रहे हैं । जातिगत आंकड़ों के इस उलझे हुए इस राजनीतिक गणित में तकरीबन पौने पांच फीसदी भूमिहार और पौने छह फीसदी ब्राह्मण अहम हो गए हैं । आज हर कोई ब्रह्मर्षि समाज की बात कर रहा है । भूरा बाल साफ करने का नारा बुलंद करनेवाले लालू यादव भी अब भूमिहारों को पटाने में लगे हैं । उधर नीतीश कुमार को लगता है कि लालू विरोध की वजह से स्वाभानिक रूप से भूमिहार उनके साथ हैं ।  उन्होंने प्रतीकात्मक तौर पर सूबे के डीजीपी और चीफ सेक्रेटरी भूमिहार को बनाया हुआ है । उधर भारतीय जनता पार्टी भी इस बात को लेकर काफी उत्साहित है कि भूमिहार उनके साथ हैं । राजनीतिक दलों को यह लगता है कि भूमिहारों की संख्या भले ही कम हो लेकिन वो कई सीटों के नतीजों को प्रभावित करते हैं । ब्राह्मण पारंपरिक तौर पर कांग्रेस के साथ रहे हैं लेकिन सूबे में कांग्रेस का ही कोई अस्तित्व नहीं बचा तो फिर उनके पास दूसरी पार्टी का रुख करने के अलावा कोई विकल्प है नहीं । ब्राह्मणों के वोटों का वंटवारा होगा ।
इन तमाम गुणा भाग के बीच मोदी की हिंदू हृदय सम्राट और विकास पुरुष की छवि को बिहार में पेश तो किया जाएगा साथ ही बोधगया में सीरियल धमाकों के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा का तड़का भी लगाया जाएगा । उधर जेडीयू मोदी के उग्र हिदुवादी छवि को प्रचारित कर मुसलमानों के वोट खींचने की कोशिश करेगी । मुसलमानों का वोट नीतीश को उस स्थिति में मिलने की उम्मीद है जब वो कांग्रेस के साथ जाने का फैसला करेगी । क्योंकि अगर ध्रुवीकरण होता है तो मुसलमान वोटर उसकी तरफ ही जाएगा जो मोदी को रोक पाएगा । लेकिन विराट हिंदू समाज की बात करनेवाली पार्टी का तेली और पिछड़े के नाम पर वोट मांगने की रणनीति बनाना उनके असली चाल चरित्र और चेहरे को भी उजागर करता है ।

No comments: