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Saturday, July 6, 2013

एकोअहम की तलाश में द्वितीयोनास्ति

हिंदी में यात्रा वृत्तांत लिखने की एक समृद्धशाली परंपरा रही है । भारतेन्दु युग में भी अनेक लेखकों ने यात्रा वृत्तांत लिखकर हिंदी साहित्य को समृद्ध किया । खुद भारतेन्दु ने कविवचन सुधा में 1871 से 1879 तक कई वृत्तांत लिखे जिसमें हरिद्वार की यात्रा, लखनऊ की यात्रा और सरयू पार की यात्रा विशेष रूप से पठनीय हैं । उस काल की पत्र पत्रिकाओं में भी यात्रा वृत्तांत प्रमुखता से छपता था और लोग चाव लेकर पढ़ते थे । भारतेन्दु युग में तो खासतौर पर विदेश यात्रा के कई लेख मिलते हैं । लेकिन उस दौर में भी दुर्गम पहाड़ों की यात्रा से लौटे लोगों ने भी जमकर यात्रा की दुश्वारियों से लेकर रोमांच और उसके पौराणिक महत्व को समेटते हुए कई लेख लिखे । 1890 में विगू मिश्र ने बदरी-केदार यात्रा का अद्भुत वर्णन किया है । बाद में द्विवेदी युग में भी देवीप्रसाद खत्री, गोपालराम गहमरी आदि ने भी यात्रा वृत्तांत लिखे जो आज हिंदी साहित्य की थाती हैं । कालांतर में भी यात्रा वृत्त लिखने का क्रम जारी रहा । छायावादोत्तर काल तक आते आते यात्रा वृतांत शैली, शिल्प और विषय की विविधता की वजह से अहम हो गई, लोकप्रिय भी । इसी दौर में राहुल सांकृत्यायन जैसे यायावर पैदा हुए जिन्होंने प्रचुर मात्रा में इस विधा में लेखन कर हिंदी जगत को समृद्ध किया । इस दौर में ही भारत को स्वतंत्रतता मिली थी लिहाजा कई राजनेताओं ने भी विदेश यात्रा से लौटकर अपने संस्मरण लिखे । लेकिन जैसे जैसे वक्त आगे बढ़ता गया हिंदी साहित्य की यह समृद्ध विधा हाशिए पर चली गई । हो सकता है कि वैश्वीकरण और इंटरनेट ने दुर्गम स्थानों को भी इतना सुलभ करवा दिया कि लोगों की ज्यादा रुचि यात्रा वृत्तांत में रही नहीं । नतीया यह हुआ कि पत्र-पत्रिकाओं से इस तरह का लेखन गायब होता चला गया । बीच बीच में अवश्य कोई किताब या फिर कोई लेख यात्रा संस्मरणों पर दिख जाता है । फिलहाल तो कृष्णनाथ जी इस विधा में सबसे अहम काम कर रहे हैं । कुछ दिनों पहले हिंदी की मशहूर कवयित्री गगन गिल की भी पुरोवाक्- नाम से कैलाश मानसरोवर यात्रा पर एक किताब आई थी जिसकी खासी चर्चा हुई । मैं इस पूरी परंपरा को इस वजह से लिख रहा हूं कि हाल ही में मुझे वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा की एक अद्भुत किताब- द्वितीयोनास्ति , कैलास-पर्वत एक अकेला- मिली है जो हेमंत शर्मा की कैलास मानसरोवर यात्रा की दास्तां है ।
हेमंत शर्मा से मेरा परिचय उनके लेखन के माध्यम से ही रहा है बाद में वो टीवी पत्रकारिता से जुड़ गए और इंडिया टीवी में नींव से लेकर निर्माण तक हैं । हेमंत की छवि एक संवेदनशील पत्रकार के तौर पर रही है जो उनकी इस किताब से और पुष्ट होती है । कॉफी टेबल बुक स्टाइल में कैलास यात्रा की यह किताब हेमंत जी के पत्रकार व्यक्तित्व के अंदर के सहृदय लेखक को उभार कर पाठकों के सामने पेश कर देता है । लगभग सवा सौ पन्नों की यह किताब जब मुझे मिली तो मैं चकित रह गया । हिंदी में इस तरह की किताबें जरा कम ही छपती हैं । एक तो बेहतरीन आर्ट पेपर पर और शानदार फोटो के साथ । सारे फोटो भी लेखक हेमंत शर्मा के लिए हुए ।  हेमंत शर्मा फिलहाल टेलीवीजन पत्रकारिता कर रहे हैं इस वजह से उन्हे विजुअल की महत्ता का पता है । सवा सौ पन्नों की इस किताब के हर पन्ने पर एक ,से एक बेहतरीन फोटो हैं और वहीं उसके उपर ही छोटी छोटी टिप्पणियां । सिर्फ कुछ जगहों पर लंबी टिप्पणियां हैं । फोटो ही इतना कुछ कह जाता है कि ज्यादा लिखने की गुंजाइश ही नहीं बचती । हेमंत शर्मा की लेखन की शैली भी बेहतरीन है । अपनी यात्रा की शुरुआत से लेकर कैलास जाने और वहां से लौटने के क्रम में हेलीकॉप्टर खराब होने का जो उन्होंने वर्णन किया है वो पाठकों को हटने ही नहीं देता है । मैंने तो इस किताब को पढ़ना शुरू किया तो फिर खत्म करके ही उठा । दरअसल हेमंत शर्मा अपनी कैलास यात्रा की कहानी के साथ साथ उसके पौराणिक महत्व या किवदंतियों के बारे में भी साथ साथ टिप्पणी करते चलते हैं । हेमंत शर्मा शिव और उनके व्यक्तित्व को भी व्याख्यायित करते हैं । जैसे हेमंत शर्मा लिखते हैं- आज पर्यावरण बचाने की चिंता विश्वव्यापी है । शिव पहले पर्यावरण प्रेमी हैं । पशुपति हैं । निरीह पशुओं के रक्षक हैं । आर्य जब जंगल काट बस्तियां बसा रहे थे । खेती के लिए जमीन तैयार कर रहे थे । दूध के लिए गाय को दुह रहे थे पर बछड़े का मांस खा रहे थे, तब शिव ने बूढ़े बैल नंदी को अपना वाहन बनाया । सांड को अभयदान दिया । जंगल कटने से बेदखल सांपों को आश्रय दिया । उसी तरह हेमंत शर्मा का मानना है कि महादेव ने उपेक्षितों को भी गले लगाया । अपनी इस किताब में भाषा के प्रवाह और संप्रेषणीयता को बनाए रखने के लिए हेमंत शर्मा अंग्रेजी के शब्दों से भी परहेज नहीं करते हैं । जैसे एक जगह वो शिव के लिए ट्रबल शूटर शब्द का इस्तेमाल करते हैं । यह शब्द उसी सहजता से आता है जैसे गुलजार के एक मशहूर गाने की लाइन उनकी आंखें कमाल करती हैं, पर्सनल से सवाल करती है- में पर्सनल शब्द आता है । भाषा की यह बाजीगरी इस किताब को विशिष्टता प्रदान करती है । इसके अलावा भी जिस तरह के शब्दों और वाक्यों का प्रयोग इस किताब मैं है वो इसकी भाषा को चमका देती है । हेमंत शर्मा बनारस के हैं लिहाजा बनारसीपर पूरे किताब पर दिखाई देता है, भाषा में खासतौर पर- हवा तेजी से चुभ रही है , हड्डियां कड़कड़ा रही है । इसके अलावा खालिस हिंदी पट्टी के जुमले- सूर्य अस्त । पहाड़ मस्त भी पाठकों को बांधे रखते हैं । कैलास मानसरोवर की यात्रा जैसे जैसे आगे बढ़ती जाती है वैसे वैसे रोमांच भी अपने चरम पर पहुंचता जाता है । हाड़ कंपा देनेवाली ठंड में भी तड़के ब्रह्ममुहुर्त में मानसरोवर का रहस्य जानने के लिए लेखक सुबह साढ़े तीन बजे गेस्ट हाउस से निकलकर सरोवर के किनारे पहुंच जाते हैं । उसके सामने वाणभट्ट की कादंबरी, कालिदास के रघुवंश और कुमारसंभव साकार होने लगता है । लेकिन यहां भी एक दिलचस्प प्रसंग है लेखक को उनके गाइड ने अकेले और वो बगैर छड़ी के बाहर निकलने से मना किया था क्योंकि बाहर हिंसक कुत्तों का झुंड शिकार की तलाश में घूमता है । लेकिन मानसरोवर में सुबह सुबह देवताओं और अप्सराओं के दर्शन के उत्साह में गाइड की सालह को भुलाकर अकेले सिर्फ कैमरे के साथ सरोवर तक पहुंच जाते हैं । काफी देर बाद अचानक जब पीछे मुड़कर देखते हैं तो कुत्तों का एक झुंड । डर से होश फाख्ता । किसी तरह जान बची ।
कैलास यात्रा के दौरान लेखक हेमंत शर्मा के अंदर के अंदर के पत्रकार की पैनी नजर और विश्लेषक नजरिया भी देखने को मिलता है । जब भी चीन या तिब्बत की बात आती है तो तिब्बत को नष्ट करने के लिए वो चीन की लानत मलामत करते हैं । साफ तौर उन्होंने तिब्बत की बर्बादी के लिए माओ को जिम्मेदार ठहराया है । साहित्य को नष्ट करने के लिए जिस तरह से ऐतिहासिक पांडुलिपियां चीनियों ने जलाई वो वामपंथ के चेहरे का ऐसा काला दाग है जो कभी भी मिट नहीं सकता । ना ही उन्हें माफ किया जा सकता है । हिंदी में इस तरह की किताब बिरले ही दिखाई देती है । इस किताब का प्रोडक्शन बेहतरीन है और इसके लिए इसके प्रकाशक- प्रभात प्रकाशन की भी तारीफ की जानी चाहिए ।

2 comments:

Manjit Thakur said...

विजय जी, बहुत जबरदस्त है। काफी गुंफित लिखते हैं, लेकिन ज्ञान बढा़ने वाला भी। साधु...

Manjit Thakur said...

बहुत शानदार लिखा है, यात्रा वृत्तांत के जरिए सामाजिक टिप्पणी के रूप में अनिल यादव की किताब ये भी कोई देस है महराज पढ़िएगा। उत्तर पूर्व के बारे में है..मजा आएगा।