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Tuesday, August 6, 2013

आतंक पर सियासत क्यों ?

दिल्ली की अदालत ने आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के आरोपी शहजाद अहमद उर्फ पप्पू को दिल्ली पुलिस के इंसपेक्टर मोहन चंद शर्मा के कत्ल का दोषी पाया और उम्रकैद की सजा सुनाई । सजा के ऐलान के बाद एक बार फिर से इस बात पर मुहर लग गई कि दिल्ली का बटला हाउस एनकाउंटर फर्जी नहीं था । अदालत के इस आदेश के बाद बटला हाउस मुठभेड़ को फर्जी या फिर उसको सवालों के घेरे में लेनेवालों का मुंह फिलहाल बंद हो गया है। पिछले दशक में यह एक फैशन बन गया है कि किसी भी एनकाउंटर पर सवाल खड़े कर पुलिस को ही कठघरे में खड़ा कर दो । चाहे वो नक्सलियों के साथ सुरक्षा बलों का मुठभेड़ हो या फिर आतंकवादियों को मार गिराने का मसला हो । यह बात भी कई बार साबित हुई है कि पुलिस ने आतंकवादियों के नाम पर कई बेगुनाह मुस्लिमों को जेल में बंद कर दिया जो कानूनी लड़ाई के बाद अदालतों से बरी हो गए । कुछ ऐसे मामले सामने आने के बाद यह मान लिया गया कि आतंक के मामले में पुलिस बहुधा एक समुदाय विशेष के लोगों को फंसाने का काम करती है । नतीजा यह हुआ कि अदालतों के फैसलों के खिलाफ भी एक शक का वातावरण तैयार किया जाने लगा । विचारधारा की आड़ में खुद को सेक्युलर या फिर गरीबों के पक्ष में खड़े दिखने की एक होड़ लग गई । इस रोमांटिसिज्म ने देश का बहुत नुकसान किया है । नक्सलियों को भी इसी तरह के रोमांटिसिज्म से ताकत मिलती है। क्योंकर आज नक्सलियों से सहानूभूति रखनेवाला कोई भी उनकी बर्बरता के खिलाफ नहीं बोलता । क्यों नक्सली सरेआम दो लोग का सर काटकर सड़क पर रख जाते हैं लेकिन अपने को बौद्धिक और विचारधारा से संपन्न लोगों के चेहरे पर शिकन तक नहीं आती । यह इसी रोमांटिसिज्म का नतीजा है । खैर यह एक अवांतर प्रसंग है । हम बात कर रहे थे बटला हाउस एनकाउंटर की ।
बटला हाउस एनकाउंटर के बाद से उसके कांग्रेस के नेताओं ने उसका राजनीतिकरण करने और उससे सियासी फसल काटने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी । बटला हाउस एनकाउंटर के राजनीतिकरण में कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह अगुवा रहे । बटला हाउस एनकाउंटर के कुछ फोटोग्राफ्स के आधार पर उन्होंने इस मुठभेड़ को शक के दायरे में ला दिया । उन्होंने साफ तौर पर इस मुठभेड़ को फर्जी तो करार नहीं दिया लेकिन उसपर सियासी आंसू बहाकर एक समुदाय विशेष को बरगलाने और उनकी संवेदनाओं को भुनाने का खतरनाक खेल खेला । जबकि उनकी पार्टी के कद्दावर मंत्री पी चिदंबरम इस एनकाउंटर को सही करार दे चुके थे । बाद में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी मुठभेड़ को फर्जी मानने से इंकार कर दिया था । लेकिन राजनेता कहां बाज आने वाले थे । उन्नीस सितंबर दो हजार आठ में दिल्ली के जामियानगर इलाके में हुए इस मुठभेड़ के बाद राजनेताओं ने इस पर जमकर सियासी रोटियां सेंकी । दिग्विजय सिंह और उनकी पार्टी कांग्रेस ने दो हजार दस के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के वक्त वोटों के ध्रुवीकरण के लिए बटला हाउस एनकाउंटर को भुनाने की कोशिश की थी लेकिन वहां दांव उल्टा पड़ गया था । कांग्रेस इस बात का आकलन नहीं कर पाई कि उत्तर प्रदेश के मुसलमानों को इस बात का एहसास हो गया था कि कांग्रेस वोटों के लिए उनकी भावनाओं के साथ लगातार खिलवाड़ कर रही है । लिहाजा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सौ सीटों पर जीत की उम्मीद पाल रही कांग्रेस का बेहद बुरा हाल हुआ था । कांग्रेस को यह बात समझने की जरूरत है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भी अगर वो वोटों की राजनीति करेगी तो उसका फायदा लंबे समय तक मिलने वाला नहीं है । संवेदनाओं को बार बार नहीं भुनाया जा सकता है ।  सियासी जमात को यह भी सोचना होगा कि ऐसा करके वो एक पूरी जमात को इस बात का एहसास बार-बार दिलाते हैं कि पूरे समाज के साथ इंसाफ नहीं हो पा रहा है । सत्ता हथियाने और अपनी छवि चमकाने के लिए वो देश का बड़ा नुकसान कर देते हैं । एक समुदाय विशेष को अगर बार बार यह एहसास दिलाया जाएगा कि उनके साथ न्याय नहीं हो पा रहा है तो उस समुदाय की राष्ट्र और कानून में आस्था धीरे धीऱे कम होने लगती है । वैसी स्थिति भारतीय भारत के लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक होगी । मंथन तो मुस्लिम समाज को भी करना होगा कि कब तक चुनावी फायदे के लिए हमारे राजनेता उनकी संवेदनाओं के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे । कब तक उनका इस्तेमाल वोट बैंक के तौर पर होता रहेगा । मुस्लिम समाज को वोट बैंक की राजनीति करनेवालों की पहचान कर उनको सबक सिखाना होगा । मुस्लिम समाज के रहनुमाओं को यह हिम्मत भी दिखानी होगी कि अगर कोई आतंकवादी है चाहे वो किसी भी समुदाय का हो तो उसकी सार्वजनिक निंदा करनी होगी । उन्हें दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं से मुसलमानों की शिक्षा और सामाजिक उत्थान के बारे में सवाल करना होगा । मुस्लिम समाज के नवयुवकों के लिए रोजगार और कारोबार के अवसरों के बारे में पूछना होगा । अगर ऐसा होता है तो ना केवल उस समुदाय की बेहतरी होगी बल्कि मुल्क की जम्हूरियत को भी इससे ताकत मिलेगी ।

1 comment:

SHASHANK GAUR said...

Vote bank me chakkar mai humare siyasatdan ye bhul gaye hain ki kisko khush karna hai aur kisko nahi ....