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Monday, December 23, 2013

ब्रांड मोदी पर छाया ?

पांच विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने एक बेहद दिलचस्प ट्वीट किया था । उस ट्वीट में उन्होंने लिखा था कि भारतीय जनता पार्टी ने एक राज्य में जितनी सीटें जीतीं हैं कांग्रेस चारों राज्यों को मिलाकर भी उससे कम सीट जीत पाईं । ट्विटर पर दिए गए इस बयान में नरेन्द्र मोदी का आत्मविश्वास साफ तौर पर दिखाई देता है । विधानसभा चुनाव के पहले जिस तरह से नरेन्द्र मोदी ने अपनी पार्टी के पक्ष में और कांग्रेस के खिलाफ धुंआधार प्रचार किया था उसके बाद इस तरह की जीत से संतोष और आत्मविश्वास होना लाजमी भी है । विधानसभा चुनावों के नतीजों में भारतीय जनता पार्टी ने पांच सौ नब्बे सीटों में से दो तिहाई सीट से ज्यादा पर अपनी जीत का परचम लहराया था । मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पार्टी ने अपनी धमक बनाए रखी और राजस्थान में उसने कांग्रेस को मटियामेट करते हुए ऐतिहासिक जीत दर्ज करवाई । दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी को हलांकि पूर्ण बहुमत नहीं मिला लेकिन आम आदमी पार्टी की आंधी के बावजूद वो अपना किला बचाने में कामयाब रही । दिल्ली के नतीजों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी । राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अगर मोदी का करिश्मा नहीं होता और विजय गोयल को हटाकर डॉ हर्षवर्धन को मोदी ने दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी का चेहरा ना बनवाया होता तो पार्टी की बुरी गत होती । भारतीय जनता पार्टी की इस जीत में उसके मजबूत क्षत्रपों का भी बड़ा योगदान है लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि मोदी के केंद्र में आने से उन क्षत्रपों को ताकत मिली, कार्यकर्ता उत्साहित हुए । जो उत्साह राहुल गांधी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के बीच पैदा नहीं कर सके और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस मटियामेट हो गई । कांग्रेस पार्टी का खाद्य सुरक्षा से लेकर रोजगार और शिक्षा की गारंटी का कानून का दांव भी कोई चमत्कार नहीं दिखा सका । कांग्रेस के आला नेताओं को लग रहा था कि दो हजार नौ में रोजगार की गारंटी से मिली सफलता का इतिहास दोहराया जा सकेगा । जो हो न सका ।  
दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं बन पाने को दो हजार चौदह के लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जाने लगा है । जिन चार राज्यों में विधानसभा के चुनाव हुए वहां लोकसभा की कुल मिलाकर बहत्तर सीटें हैं । विधानसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर विश्लेषण करें तो इन बहत्तर सीटों में से पचास सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा होता है । यह भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी के लिए संतोष की बात हो सकती है लेकिन दो हजार चौदह में गद्दीनशीं होने के लिए इस आंकड़े को बेहतर करना होगा । दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने के बाद अरविंद केजरीवाल ने साफ तौर पर कह दिया कि अब वो अपनी राजनीति का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करेंगे । कई लोगों की राय है कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी दो हजार चौदह के लोकसभा चुनाव में मोदी का खेल खराब कर सकती है । जिस तरह से आम आदमी को सामने रखकर अरविंद केजरीवाल ने अपरंपरागत राजनीति की बुनियाद रखी है उसके बरक्श देखें तो इस तर्क में दम लगता है । दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद जिस तरह से आम आदमी पार्टी के नैतिक दबाव के चलते यहां सरकार बनाने के लिए जोड़ तोड़ का खेल नहीं खेला गया वो भी देश में एक प्रकार की नई राजनीति की शुरुआत है । परंपरागत राजनीति करनेवाली पार्टियों और राजनीतिक विश्लेषकों को इस फैक्टर को भी सामने रखकर विचार करना होगा । सवाल यह उठता है आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनाव में कितनी सीटें लेकर आती है । यही उस पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है । उत्साही विश्लेषक इस बात के कयास लगा रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी लोकसभा चुनाव में चालीस से पचास सीटें जीत सकती हैं । इस आकलन का आधार यह है कि भ्रष्टाचार और महंगाई से आजिज आ चुके शहरी मतदाता आम आदमी पार्टी को समर्थन दे सकते हैं । परंपरागत तौर पर ये शहरी मतदाता कमोबेश भारतीय जनता पार्टी के समर्थक रहे हैं । इसके अलावा केंद्र में य़ूपीए की सरकार से नाराज शहरी वोटर भी आम आदमी पार्टी का रुख कर सकता है। अगर ऐसा होता है तो देश के कई बड़े शहरों की कुछ लोकसभा सीटों पर आम आदमी पार्टी को सफलता मिल सकती है । शहरी मतदाताओं का वोट भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच बंट जाता है तो निश्चित रूप से मोदी के देश के प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के सपनों पर ग्रहण लग सकता है । क्योंकि नरेन्द्र मोदी बेहद सावधानी से अपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ा रहे हैं । बिल्कुल एक नट की तरह जो रस्सी पर संतुलन कायम रखने के लिए जूझता रहता है । उसके संतुलन को आधे किलो का वजन भी उधर या उधर झुका सकता है । आम आदमी पार्टी भले ही नवजात पार्टी हो लेकिन संतुलन बिगाड़ने में कामयाब हो सकती है । यही भारतीय जनता पार्टी की सबसे बड़ी चिंता है ।

दिल्ली में सरकार नहीं बनाकर फिर से चुनाव की वकालत करने के पीछे भारतीय जनता पार्टी की यही चिंता भी है और उसपर ही आधारित रणनीति भी । भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों को लगता है कि अगर लोकसभा चुनाव के साथ दिल्ली विधानसभा के चुनाव होते हैं तो आम आदमी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व दिल्ली के चुनाव में फंसा रहेगा, लिहाजा देशभर के चुनाव प्रचार के लिए उनको कम वक्त मिल पाएगा । लेकिन जिस तरह के उम्मीदवारों के साथ आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा में जीत दर्ज की है उससे तो इस रणनीति पर पानी फिर सकता है । दूसरा जो सबसे बड़ा रणनीतिक खतरा है वो यह है कि इन विधानसभा चुनावों से उत्साहित होकर भारतीय जनता पार्टी दो हजार चार की शाइनिंग इंडिया वाली गलती ना दोहरा दे । उस चुनाव के पहले भी राज्यों के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को जोरदार सफलता मिली थी । इस वक्त देश में लंबे अरसे बाद राजनीति अपने उरुज पर है, राजनीति शास्त्र की किताबों में नई इबारत लिखी जा रही है । सियासत की बिसात पर सधी हुई चालें चली जा रही हैं । लोकसभा चुनाव में अब सौ सवा सौ दिन बचे हैं तो दावों प्रतिदावों के इस राजनीतिक दौर को जीना दिलचस्प होगा । 

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