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Tuesday, March 11, 2014

राहुल गांधी के नाम खुला पत्र

आदरणीय श्री राहुल गांधी जी, लोकसभा चुनाव का ऐलान हो गया है और आपकी पार्टी हर हाथ को शक्ति देते हुए तरक्की करना चाहती है, मतलब यह है कि वो तीसरी बार विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की सत्ता पर काबिज होने का यत्न कर रही है । कांग्रेस ने इस लोकसभा चुनाव के मद्देनजर आपके कंधों पर उसे सत्ता तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी है । आप भी प्राणपन से इस जिम्मेदारी को पूरा करने में लगे हुए हैं । पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने के लिए आपकी पार्टी ने बिहार में लालू यादव से समझौता किया । आपको स्मरण दिला दें कि हाल ही में चारा घोटाले में राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव को अदालत ने सजा सुनाई थी । वो जेल गए थे और फिलहाल जमानत पर बाहर हैं । लालू यादव चुनाव भी नहीं लड़ सकते हैं । आपको यह भी याद होगा कि पिछले साल सितंबर में आप अचानक दिल्ली के प्रेस क्लब पहुंचे थे और आपने दागियों को बचाने के सरकार के मंसूबे पर पानी फेर दिया था । आपने तब गुस्से में कहा था कि इस तरह के अध्यादेश को फाड़कर कूड़ेदान में डाल दिया जाना चाहिए । तब पूरे देश में आपके उस कदम की सराहना हुई थी और माना गया ता कि अगर कांग्रेस में पार्टी में आपकी चलेगी तो राजनीतिक शुचिता को तवज्जो मिलेगी । पर अफसोस राहुल जी, आपके उस गुस्से में दिए गए बयान का तात्कालिक असर तो अध्यादेश के रद्द होने में दिखा था लेकिन उसी सजायाफ्ता नेता का साथ लोकसभा चुनाव में गठबंधन करने से आप सवालों के घेरे में आ गए हैं । लालू यादव से गठबंधन के बाद आपके विरोधी आप पर राजनीतिक ड्रामेबाजी का आरोप भी लगाने लगे हैं । तो क्या यह मान लिया जाए कि आपने भी चुनावी गणित को ध्यान में रखते हुए अपने कदम पीछे खींच लिए हैं । राहुल जी, आप युवा हैं, देश को आपसे बड़ी उम्मीदें हैं । आप जब राजनीति में शुचिता की बात करते हैं तो पूरा देश आपको ध्यान से सुनता है । ज्यादातर लोग उसकी सराहना भी करते हैं । लेकिन यह क्या राहुल जी आपके फैसले का आपकी ही पार्टी में सिर्फ छह महीने तक सम्मान हो सका । आपको गंभीरता से विचार करना होगा । सोचना तो आपको यह भी चाहिए कि क्या पार्टी में अब भी वही होता है जो आप चाहते हैं या फिर आपको चेहरा बनाकर पार्टी आपका इस्तेमाल कर रही है और फैसले पर्दे के पीछे कांग्रेस के खुर्राट नेता लेते हैं जिनमें से कइयों को आपकी माता जी का आशीर्वाद प्राप्त है ।
राहुल गांधी जी, आप हमेशा सार्वजनिक तौर पर सिस्टम को बदलने की बात करते हैं । आप सिस्टम बदलने की बात इतनी बार कर चुके हैं कि लोग अब उस बदलाव की आपसे अपेक्षा भी करने लगे हैं । राहुल जी आप जिस पार्टी के उपाध्यक्ष हैं उसकी विरासत काफी समृद्ध है । महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में व्यवस्था में बदलाव की बात की थी और उन्होंने एक सभ्यता को एक राष्ट्र बनाने के लिए काम किया और उसमें सफलता हासिल की । उन्होंने एक सभ्यता को राष्ट्र बनाने के लिए अविभाजित भारत की सामाजिक और भौगोलिक स्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपना एक विजन पेश किया था । गांधी ने एक भाषा के सिद्धांत को राष्ट्र की अवधारणा से अलग करने जैसा साहसिक कदम उठाया था । एक इस पूरे व्यवस्था को बदलने और वैकल्पिक व्यवस्था को लागू करवाने में गांधी को तकरीबन सत्ताइस साल लगे । उन्नीस सौ बीस के आसपास गांधी को व्यवस्था बदलने के उनके इरादों में जनता का समर्थन मिलना शुरू हुआ और उन्नीस सौ सैंतालीस में जाकर देश आजाद हुआ । जनता के समर्थन और अपनी अटल इच्छा शक्ति की बदौलत गांधी ने अपने सहयोगियों के साथ भारत को स्वतंत्रता दिलवाई । अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलवाना व्यवस्था में बदलाव का एक बेहतरीन नमूना है । कम्युनिस्टों ने भी रूस और युगोस्लाविया में व्यवस्था परिवर्तन की कोशिश की लेकिन वह जोर जबरदस्ती के बल पर किया गया इसलिए दीर्घायु नहीं हो सका ।
व्यवस्था में बदलाव का दूसरा नमूना है भारत की चुनाव व्यवस्था । आपको ज्ञात होगा कि जब 1952 में पहली बार देश में लोकसभा का चुनाव हुआ था तो देश में तकरीबन साढे सत्रह करोड़ वोटर थे । पूरे चुनाव की प्रक्रिया में लगभग छह महीने लगे थे । उस वक्त निरक्षर मतदाताओं की संख्या तकरीबन पचहत्तर फीसदी थी, लिहाजा चुनाव चिन्ह का प्रयोग किया गया था। आगामी लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या अस्सी करोड़ से ज्यादा है और चुनाव में लगनेवाला कुल वक्त अस्सी दिन है । यह एक क्रांतिकारी बदलाव है जिसको हासिल करने में चुनाव आयोग को आदी सदी का वक्त लगा । तो राहुल जी सिस्टम कोई कमरे का बल्ब नहीं है जिसे आप जब चाहें बदल दें । आप सिस्टम में बदलाव की बातें तो करते हैं लेकिन उसके लिए आप कोई विजन अबतक पेश नहीं कर पाए हैं । आप अपनी हर सभा में सूचना के अधिकार की दुहाई देते हैं । यह बात सही है कि इस कानून के बनने के बाद सरकारी कामकाज में पारदर्शिता आई है लेकिन राहुल जी जब इसी सूचना के अधिकार के तहत राजनीतिक दलों को लाने की बात होती है तो आप खामोश हो जाते हैं । संसद इस बाबत कानून में संशोधन कर देती है तो भी आप खामोश रहते हैं । आखिर क्यों । क्या आपकी इस खामोशी की वजह जानने का हक देश की जनता को नहीं है ।
राहुल गांधी जी आप भ्रष्टाचार के खिलाफ दिखने की कोशिश करते भी नजर आते हैं । आपकी स्वच्छ छवि, निर्दोष मुस्कुराहट और भ्रष्टाचार के खिलाफ आपका गुस्सा जनता को आप पर भरोसा करने की वजहें प्रदान करती हैं । आप भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून बनाकर उसको खत्म करने की वकालत करते रहते हैं लेकिन आप भ्रष्टाचार रूपी बरगद की जड़ को खत्म करने की बजाए उसकी टहनियों की काट छांट करना चाहते हैं । राजनीति शास्त्र के पंडितों का मानना है कि भ्रष्टाचार की एक अहम वजह चुनाव के दौरान अभियान और प्रचार पर पार्टियों द्वारा किया जाने वाला बेतहाशा खर्च है। राजनीति को बेहद नजदीक से अध्ययन करनेवालों का मानना है कि आजादी के छह दशक बाद भी राजनीतिक दलों के चुनाव खर्च का बड़ा हिस्सा औद्योगिक घरानों से आता है । आप इस बात को देश की जनता से बेहतर तरीके से जानते हैं कि औद्योगिक घरानों का कैसा पैसा राजनीतिक दलों के खजाने तक पहुंचता है । राजनीतिक दलों को पैसा मुहैया करानेवाले लोग कारोबारी हैं और चुनाव के वक्त किए गए निवेश से मोटा मुनाफा वसूलना जानते हैं ।
एक दूसरी प्रवृत्ति ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को कमजोर किया है। सत्तर के दशक में इंदिरा गांधी की स्थिति मजबूत होने के बाद कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र खत्म हो गया । इसका नतीजा यह हुआ कि किसी भी तरह के भ्रष्टाचार के खिलाफ पार्टी के अंदर से आवाज आनी बंद हो गई । आपको पता होगा कि आपके दादाजी फिरोज गांधी ने संसद के अंदर उस वक्त की सरकार को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जमकर घेरा था । गौरतलब है कि जवाहरलाल नेहरू उस वक्त देश के प्रधानमंत्री थी और फिरोज गांधी उनके दामाद । यह पार्टियों में आतंरिक लोकतंत्र की खूबसूरती थी । लेकिन यह इंदिरा गांधी के वक्त खत्म हो गया । कांग्रेस की देखा-देखी अन्य दल भी इसी राह पर चल पड़े । भारत की मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी में इस वक्त तो ये हालात है कि सिर्फ और सिर्फ एक व्यक्ति फैसला ले रहा है और बाकी लोग उस फैसले का अनुसरण कर रहे हैं । तमाम क्षेत्रीय दलों में आंतरिक लोकतंत्र की बात सोचना भी बेमानी है । वो सारे दल एक व्यक्ति या परिवार के इर्द गिर्द सिमटे हुए हैं । ऐसी स्थिति में अगर उस परिवार का कोई भ्रष्ट हो जाता है तो फिर उसपर अंकुश लगानेवाला कोई बचता नहीं है । राहुल जी, आपने अपनी पार्टी के अनुषांगिक संगठनों में आंतरिक लोकतंत्र की शुरुआत की है । लेकिन आपका वह कदम ऊंट के मुंह में जीरे जैसा है । अगर आप सचमुच व्यवस्था में बदलाव करना चाहते हैं तो आपको कांग्रेस पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र बहाल करने की दिशा में कदम उठाना होगा । आपको अपने परनाना जवाहरलाल नेहरू की तरह पार्टी के अन्य नेताओं के विचारों को जगह देनी होगी ताकि नेतृत्व की किसी भी गलती पर पार्टी के नेता खुलकर अपने विचार रख सकें । अगर आप पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र बहाल करने और पार्टियों को मिलनेवाले चंदे को पारदर्शी बनाने में कामयाब हो जाते हैं तो ही आपकी व्यवस्था परिवर्तन की बातों में वजन आ जाएगा ।
राहुल गांधी जी, आप महिला सशक्तीकरण और समावेशी विकास की भी लगातार वकालत करते हैं । दोनों बातें सुनने में काफी अच्छी लगती हैं । आपकी पार्टी ने पिछले दस सालों से देश पर शासन किया । अगर महिलाओं के अधिकारों को लेकर आप सचमुच संजीदा होते तो संसद में उनके आरक्षण पर सार्थक पहल होती । आप यह तर्क नहीं दे सकते कि आपकी पार्टी पूर्ण बहुमत में नहीं थी लिहाजा आप इस तरह के क्रांतिकारी कदम नहीं उठा सकते थे । आपकी पार्टी ने अमेरिका के साथ परमाणु करार के वक्त और खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के फैसले के वक्त यह साबित किया था कि अगर इच्छाशक्ति हो तो संसद में बिल पारित करवाया जा सकता है । चलिए संसद में पास ना भी करवाया होता कम से कम कांग्रेस पार्टी इसको पास करवाने की कोशिश करती तो नजर आती लेकिन अफसोस आप सिर्फ अपने भाषणों से महिलाओं को सशक्त करवाना चाहते हैं । उसी तरह से समावेशी विकास और हर तबके तक विकास का लाभ पहुंचाने की आपकी तड़प की तारीफ करनी होगी लेकिन जब नतीजे को देखते हैं तो लगता है कि वहां भी सिर्फ हवाई किले बनाए जा रहे थे । राहुल जी आप शिक्षा की बात भी करते हैं लेकिन क्या आपको मालूम है कि प्राथमिक शिक्षा की क्या हालत है देश में । उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त करने में मंत्रालय को छह महीने लगते हैं । आपकी सरकार ने शिक्षा का अधिकार दिया लेकिन उसको लागू करने में वो पूरी तरह से नाकाम रही । राहुल जी अब बातें बहुत हो गई अब कड़े फैसले का वक्त आ गया है ।

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