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Saturday, March 22, 2014

मोदी पर किताबों की बाढ़

लोकसभा चुनाव सर पर हैं । सियासी बिसात पर हर तरह की चालें चली जा रही हैं । सियासत के इस खले में प्यादे से लेकर वजीर और बादशाह तक पूरी तरह से मशरूफ हो चुके हैं । सियासत के इस खेल में शामिल हर दल किसी ना किसी तरह से अपनी गोटी फिट करना चाह रहा है । इस बार का लोकसभा चुनाव कई मायनों में अब तक हुए चुनाव से अलग है । इस चुनाव में सोशल मीडिया, राजनीतिक दलों के प्रचार के एक बड़े प्लेटऑर्म के तौर पर उभर कर सामने आया है । भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय हैं और दोनों अपने मतदाताओं से इसके जरिए लगातार संपर्क में रहते हैं । सोशल मीडिया के एक प्लेटफॉर्म ट्विटर पर तो नरेन्द्र मोदी सभी दलों के भारतीय नेताओं से काफी आगे हैं । ट्विटर पर उनके तकरीबन छत्तीस लाख फॉलोवर हैं जबकि अरविंद केजरीवाल के लगभग सोलह लाख फॉलोवर हैं । अभी हाल ही में जारी हुए आंकड़ों के हिसाब से सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर मेंशनिंग में भी नरेन्द्र मोदी अपने प्रतिद्वदियों राजनेताओं से काफी आगे हैं । गूगल सर्च में भी नरेन्द्र मोदी अपनी बढ़त बनाए हुए हैं । भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी प्रिंट, इलेक्ट्रानिक और सोशल मीडिया में तो छाए ही हुए हैं लेकिन अगर हम प्रकाशन की दुनिया की बात करें तो वहां भी नरेन्द्र मोदी का ही दबदबा नजर आता है । किसी भी ऑनलाइन बुक स्टोर में आप किताबों के सेक्शन में जाकर नरेन्द्र मोदी सर्च करेंगे तो कम से कम तीन पेज खुलेंगे और आपके सामने मोदी पर लिखी दर्जनों किताबें होंगी । हर भाषा और अलग अलग मूल्य की । यही हाल रेलवे स्टेशन पर मौजूद किताबों की दुकान से लेकर पॉश इलाके की बुक स्टोर का भी है हर जगह पाठकों की रुचि और उनके खर्च करने की क्षमता के मद्देनजर नरेन्द्र मोदी पर लिखी किताबें मौजूद हैं यह भी नहीं हैं कि मोदी पर लिखी किताबें किसी एक भाषा में प्रकाशित हो रही हों हर भाषा के लेखक ने मोदी के इर्द गिर्द किताबें लिखी यहां तक सुदूर दक्षिण में तमिल में नरेन्द्र मोदी की जीवनी छपी है और जानकारों के मुताबिक तनमिल में भी ये किताब खूब बिक रही है । ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ मोदी के प्रशंसकों ने ही किताबें लिखी हैं उनके धुर विरोधियों ने भी मोदी और उनकी राजनीति को केंद्र में रखकर किताबें लिखी हैं । हिंदी के लेखक जगदीश्वर चतुर्वेदी ने मोदी की की फासीवादी रणनीति को अपनी किताब- नरेन्द्र मोदी और फासीवादी प्रचार कला- में परखा है । मोदी और उनकी नीतियों की आलोचनात्मक किताबें संख्सा के लिहाज से बेहद कम हैं । अब सवाल यही उठता है कि लोकसभा चुनाव के पहले बाजार में मोदी और उनपर केंद्रित किताबों की बाढ़ क्यों गई है
इन वजहों की पड़ताल के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना होगा । लोकसभा चुनाव की आहट को महसूस करते ही नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय फलक पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए यत्न शुरू कर दिए थे । हम मान सकते हैं कि मोदी की सद्भावना यात्रा से इसकी शुरुआत हुई थी । मोदी की टीम ने उनके इमेज मेकओवर को लेकर खासी रणनीति बनाई थी । दो हजार दो में गुजरात में हुए गोधरा कांड और उसके बाद के साप्रदायिक दंगों की वजह से नरेन्द्र मोदी हमेशा से मीडिया के निशाने पर रहे हैं । उनके हर कदम को मीडिया ने कसौटी पर कसा । इसके अलावा मोदी का विवादित व्यक्तित्व, आलोचकों का उनपर तानाशाह होने का आरोप, समर्थकों द्वारा श्रमपूर्वक बनाई गई उनकी विकास पुरुष की छवि और उनके पारिवारिक जीवन के बारे में चल रही किंवदंतियों ने भी लेखकों को उनपर लिखने के लिए कच्चा माल मुहैया करवाया । कई लेखकों ने श्रमपूर्वक नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व और उनके कामों को व्याख्यायित करने का प्रयास किया जिसकी वजह से वो इस शख्सियत को समझने के लिए एक गंभीर प्रयास माना गया । दो हजार हजार तेरह में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय की किताब नरेन्द्र मोदी द मैन द टाइम्स छप कर आई तो लोगों ने बहुत उत्सुकता से उसको पढ़ा । नीलांजन की इस किताब में भी मोदी के पिता की चाय की दुकान और उनके चाय बेचने का जिक्र है । इस किताब में यह बताया गया है कि किस तरह से मोदी का बचपन कठिनाइयों में बीता । बाद में जब मोदी राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ में आए तो पहले उन्हें हेडगवार भवन में दफ्तर की साफ सफाई का काम दिया गया और जब वहां के लोगों को लगा कि मोदी अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह सफलतापूर्वक कर सकते हैं तो उनको चाय बनाने की जिम्मेदारी दी गई । नीलांजन ने इस किताब में मोदी से जुड़े कई व्यक्तिगत और दिलचस्प प्रसंगों को लिखा है लेकिन मोदी के जीवन का एक लंबा कालखंड इस किताब में नहीं है । इस किताब से नीलांजन मुखोपाध्याय को काफी प्रसिद्धि मिली । बाद में तो मोदी का बचपन में चाय बेचना उनके प्रचार का एक हिस्सा भी बना । कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर की बदजुबानी के बाद मोदी ने पूरे देश में चाय पर चर्चा जैसा कार्यक्रम तक शुरू कर दिया । नीलांजन के किताब छपने के आसपास ही वरिष्ठ पत्रकार किंशुक नाग की किताब- द नमो स्टोरी, अ पॉलिटिकल लाइफ छपकर आई । इस किताब की भी व्यापक चर्चा हुई ।
इन दोनों किताबों की बिक्री ने प्रकाशन जगत को ना सिर्फ चौंकाया बल्कि उन्हें मोदी पर किताबें छापने के लिए उकसाया भी । प्रकाशन के कारोबार से जुड़े लोगो को मोदी पर लिखी किताब में मुनाफे का सौदा नजर आया । नतीजा यह हुआ कि अंग्रेजी में लिखी किताबों का अन्य भाषाओं में अनुवाद छपने लगे । पिछले कुछ दिनों में हिंदी के प्रकाशक प्रभात प्रकाशन ने नरेन्द्र मोदी पर तकरीबन आधा दर्जन से ज्यादा किताबें छापी । बाल पाठकों को ध्यान में रखते हुए नरेन्द्र मोदी के जीवन पर ग्राफिक उपन्यास- भविष्य की आशा, नरेन्द्र मोदी छापा गया ।प्रभात प्रकाशन के निदेशक पियूष कुमार का दावा है कि मोदी से जुड़ी किताबों की खासी मांग है लिहाजा वो इसको छाप रहे हैं ।
दूसरी वजह है कि लोकसभा चुनाव के पहले देश की जनता में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के बारे में जानने की उत्सुकता भी है । इस पूरे वातावरण को देखते हुए कुछ लेखकनुमा लोगों को भी संभावना नजर आई और वो भी इसको भुनाने में प्राणपन से जुट गए । यहां पाठकों को याद दिलाते चलें कि जब नब्बे के दशक में बिहार के नेता लालू यादव का डंका बजा करता था तो उनपर भी काफी किताबें छपी थी । कई लेखकों ने तो लालू चालीसा तक लिख डाला था । लालू चालीसा लिखकर अपने नेता का ध्यान खींचनेवाले एक शख्स तो चालीसा की महिमा और उसके आशीर्वाद से संसद तक जा पहुंचे थे । तो इस तरह के लोगों को अब नरेन्द्र मोदी में संभावना नजर आई और वो तरह तरह से मोदी पर किताबें लिखने लगे । कई लोगों ने विभिन्न समय पर मोदी पर लिखे अलग अलग लेखों को संपादित कर एक लंबी भूमिका के साथ किताब बना दी और उसे फौरन से बाजार में पेश कर दिया । मोदी की लोकप्रियता को भुनाने और मोदी तक पहुंचने के लिए लोगों को यह रास्ता आसान लगा और वो इसमें जुट गए । प्रकाशक तो बाजार को भुनाने में लगे ही हैं और प्रकाशन जगत के लिए यह शुभ संकेत है कि बाजार को ध्यान में रखकर काम हो रहा है । मोदी की दर्जनों जीवनी छापनेवाले प्रकाशकों को ये याद दिलाना जरूरी है कि भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी की कोई प्रामाणिक जीवनी बाजार में नहीं है । मोदी पर जितनी किताबें बाजार में हैं या फिर जितनी किताबें छपकर आनेवाली हैं उससे यह संकेत तो मिलता ही है कि नरेन्द्र मोदी मौजूदा वक्त के सबसे लोकप्रिय राजनेता हैं जिनके बारे में पाठक सबसे ज्यादा जानना चाहते हैं और इसी चाहत को भुनाकर बाजार मुनाफा भी कमा रहा है । प्रकाशन जगत से जुड़े लोगों का मानना है कि महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी के बाद अगर सबसे ज्यादा जीवनियां किसी भारतीय राजनेता की बाजार में हैं तो वो हैं नरेन्द्र मोदी ।

 

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