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Sunday, October 26, 2014

सरिता देवी को इंसाफ दो

पूरे देश के खेलप्रेमियों के जेहन में इंचियोन आयोजित एशियाई खेलों के पुरस्कार वितरण समारोह में भारतीय मुक्केबाज सरिता देवी की रोती हुए तस्वीर ताजा है । पुरस्कार अर्पण समारोह के मंच पर गले में मैडल पहनने से इंकार और फिर फफक फफक कर रो रही मुक्केबाज सरिता देवी की तस्वीर पूरी दुनिया ने देखी । बॉक्सिंग रिंग में सरिता के बेहतरीन वार ने उसकी विरोधी के हौसले पस्च कर दिए थे । सबको लग रहा था कि रेफरी सरिता देवी का हाथ उपर कर जीता का एलान करेंगे । लेकिन वैसा नहीं हुआ । रेफरी ने सरिता देवी की बजाएउसकी परास्त विरोधी को विजेता घोषइत कर दिया । अब अपनी सफलता को हाथ से निकलते देख और अपने साथ हुई नाइंसाफी से उसका रोना लाजमी था । लेकिन सरिता के इन आंसुओं के पीछे भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन संघ की उदासीनता भी एक बड़ी वजह थी । सरिता के पास मैच के रेफरी के फैसले के खिलाफ अपील करने के पैसे नहीं थे और भारतीय मिशन के अफसर उसकी पहुंच से बाहर थे । सरिता के साथ खड़े होने की बजाए भारतीय ओलंपिक संघ ने उदासीन रवैया अपना लिया था । अब अंतराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ ने सरिता देवी के अस्थाई रूप से निलंबित कर दिया है । अंतराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ ने सरिता देवी के साथ साथ एशियाई खेलों में भारत के मिशन प्रमुख आदिले सुमारिवाला को भी अस्थाई रूप से निलंबित कर दिया है । इस निलंबन के बाद भारतीय ओलंपिक संघ की नींद टूटी और उसने अंतराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ के इस कदम को देश का अपमान बता दिया । जब तक एक खिलाड़ी का अपमान हो रहा था तबतक इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन को फिक्र नहीं थी, लेकिन जैसे ही उसके अधिकारी पर गाज गिरी तो वो सक्रिय हो गए । भारतीय ओलंपिक परिषद ने अंतराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ के इस कदम के खिलाफ अंतराष्ट्रीय ओलंपिक समिति से शिकायत करने का भी एलान किया । यह सब कागजी कार्रवाई और अपील दर अपील का खेल चलता रहेगा लेकिन हमारे देश की एक खिलाड़ी के मनोबल पर क्या असर पड़ेगा इसकी कल्पना तो खेलसंघ के अधिकारी कर नहीं पा रहे हैं । ना ही उन्हें इसकी फिक्र है । दरअसल हमारे देश के खेल संघ के कर्ताधर्ताओं को खेल के अलावा अन्य सभी चीजों में रुचि है । उन्हें केल के माध्यम से विदेश यात्रा से लेकर अपनी तमाम सुख शुविधाओम का ख्याल रहता है लेकिन खिलाड़ियों और उनकी सुविधाएं उनकी प्राथमिकता में आती ही नहीं है, चिंता की बात तो बहुत दूर है ।
इंचियोन एशियाई खेल में एक तरफ सरिता देवी की आंखों से आंसू निकल रहे थे क्योंकि उनके साथ बेइमानी हुई थी वहीं दूसरी ओर सीमा पुनिया ने जब डिस्कस थ्रो में स्वर्ण पदक जीता तो उसकी आंखों में भी आंसू छलक आए थे । सीमा पुनिया की आंखों का आंसू उस दर्द के थे जब उसपर डोपिंग का आरोप लगा था । दो हजार छह में सीमा पुनिया पर डोपिंग का आरोप लगा और लगातार छह साल तक वो संघर्ष करती रही । उसके संघर्ष का फलक बड़ा था और उसको अपने साथ हुई नाइंसाफी को गलत साबित करना था । उसने किया भी । भारत के खेल संघों और उसके प्रशासकों की उपेक्षा से भी लड़ना था । वो लड़ी भी । लिहाजा जब उसके मजबूत हाथों ने डिस्क को सोने के लिए फेंका तो उसके चेहरे पर एक संतोष था । संतोष अपने साथ हुए अपमान के बदले का । संतोष अपनी प्रतिष्ठा को छह साल बाद हासिल करने का । लेकिन जब वो पुरस्कार लेने पोडियम पर पहुंची तो खुद की भावनाओं पर काबू नहीं रख पाई ।
दरअसल जिस तरह की बेइमानी सीमा पुनिया के साथ आठ साल पहले हुई थी कुछ कुछ वैसा ही दोहराया जा रहा है सरिता देवी के साथ । दो हजार छह के गेम्स में सीमा पर डोपिंग का आरोप लगा था । उस वक्त भी सीमा ने अपनी बेगुनाही की बात चीख चीख कर कही थी । लेकिन तब भी भारतीय खेल संघ के अफसरों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी थी । सीमा पूनिया को उस वक्त यह बताकर बाहर कर दिया गा था कि उसने प्रतिबंधित दवाएं ली । वो कहती रही कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया है । लेकिन उस वक्त खेल संघ के अधिकारी उसका केस नहीं लड़ पाए । बाद में यह बात सामने आई कि पुनिया का टेस्ट करनेवाला ही गलत था और उसने टेस्ट करने के चंद दिनों बाद ही इस्तीफा दे दिया था । उस वक्त भारतीय अधिकारियों के ढीले और लापरवाह रवैये ने सीमा पुनिया के करियर को सालों पीछे धकेल दिया । यह तो सीमा का हौसला और जज्बा था कि उसने आठसाल बाद इंचियोन एशियाई खेलों में सोने पर कब्जा जमाया । भारतीय खेल संघ के अफसरों का यही रवैया एक बार फिर से सरिता देवी के करियर पर ग्रहण लगाने के लिए तैयार है । एक जांबाज खिलाड़ी अपमान के घूंट पीकर बॉक्सिंग रिंग में उतरने को बेताब है । सरिता देवी के माफी मांग लेने के बावजूद अंतराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ उसपर कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर चुका है । इस अस्थाई निलंबन की वजह से सरिता देवी कोरिया के जेजू आईलैंड में तेरह नवंबर से होनेवाली विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में हिस्सा नहीं ले पाएंगी । देशभर में सरिता देवी के समर्थन में बने माहौल की वजह से अब खेल मंत्रालय ने इस मामले में दखल दी है । खेल सचिव ने कहा है कि सरिता देवी के साथ नाइंसाफी नहीं होने दी जाएगी । खेल मंत्रालय की दखलअंदाजी के बाद इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन भी सरिता देवी के पक्ष में सक्रिय दिखने लगा है । इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के बयानवीर अफसर कम से कम बयान तो दे रहे हैं लेकिन इन बयानों से हासिल क्या होगा यह देखनेवाली बात होगी ।

यह कहानी सिर्फ सरिता देवी या सीमा पुनिया की ही नहीं है । इन दोनों ने तो अपनी नाराजगी दिखाने का साहस दिखाया वर्ना कई एथलीट तो इन अफसरों के लापरवाह रवैये का शिकार होकर मुंह भी नहीं खोलते हैं और गुमनामी के अंधेरे में गुम हो जाते हैं । यही सबसे बड़ी वजह है कि भारत में खेलों के लिए इतनी प्रतिभा होने के बावजूद अंतराष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्धाओं में हमारे देश का नाम पदक तालिका में काफी नीचे रहता है । अब वक्त आ गया है कि सरकार इन खेल संगठनों को सालों से अपनी जागीर समझकर जेबी संगठन की तरह चलाने वाले लोगों से इनको मुक्त करे । खेल के लिए एथलीटों को सुविधा मुहैया करवाने के साथ साथ उन्हें इस बात का भरोसा भी होना चाहिए कि उनके साथ किसी भी अंतराष्ट्रीय मंच पर नाइंसाफी नहीं होगी क्योंकि बारत के खेल संघ मजबूती से उनकी आवाज रख सकेंगे । इस मामले में अन्य खेल संगठनों को भारतीय क्रिकेट बोर्ड से सीखने की जरूरत है । आज भारत के किसी भी क्रिकेट खिलाड़ी के साथ किसी भी अंतराष्ट्रीय मंच पर कोई भी देश नाइंसाफी की बात सोच भी नहीं सकता है । क्रिकेट बोर्ड ने इस दिशा में लंबे समय तक काम किया और पहले खुद के संगठन को मजबूत बनाया । भारत में अन्य खेलों को लेकर जिस तरह से एक माहौल बना है उसको देखते हुए आनेवाले दिनों में इन खेल संगठनों को अपनी कार्य प्रणाली में सुदार करना होगा । फुटबॉल, बैडमिंटन, कबड्डी और हॉकी को लेकर देश में कई बेहतरीन निजी प्रयास शुरू हुए हैं । इन प्रयासों के मद्देनजर भारत में इन खेल संगठनों को खिलाड़ियों के हक में आवाज उटाने के लिए खुद को मजबूत करना होगा । इसके अलावा खेल संगठनों पर सालों से कुंडली जमाकर बैठे खेल के नाम पर कारोबार चलानेवालों की पहचान कर उनसे भीइन संगठनों को मुक्त करवाना होगा । अगर ऐसा नहीं होगा तो फिर सीमा पुनिया और सरिता देवी जैसे एथलीट अपमानित होकर घुचते रहने पर अभिशप्त होंगे । 

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