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Tuesday, December 30, 2014

काल का साल

साहित्य और कला की दुनिया के लिए वर्, दो हजार चौदह को काल का साल कहा जा सकता है । इस साल साहित्य के दुनिया के कई चमकते सितारे हमसे बिछुड़ गए ।  सबसे पहले 15 जनवरी को मराठी के वरिश्ठ कवि और दलित पैंथर्स आंदोलन की शुरुआत करनेवाले नामदेव ढसाल 15 जनवरी को कैंसर से हार गए । दलितों और पीड़ितों को अपनी लेखनी के माध्यम से वाणी देनेवाले नामदेव ढसाल को पद्मश्री और साहित्य अकादमी के लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया था । उन्नीस सौ बहत्तर में जब उनका पहला कविता संग्रह गोलपीठ छपा था तो उसने मराठी साहित्य को झकझोर दिया था । नामदेव ढसाल की मृत्यु से साहित्य की एक सशक्त आवाज खामोश हो गई । नामदेव ढसाल की मौत के सदमे से अभी साहित्य जगत उबर भी नहीं पाया था कि दो दिन बाद ही हिंदी में प्रेमचंद की परंपरा के कथाकार अमरकांत का निधन हो गया । बेहद सरल भाषा में अपनी बात कहनेवाले कथाकार अमरकांत को दो हजार आठ में ज्ञानपीठ सम्मान से सम्मानित किया गया था । इसके अलावा उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है । अमरकांत का उपन्यास इन्हीं हथियारों से खासा मशहूर हुआ था । आम आदमी की समस्या को अमरकांत ने अपनी कहानियों के माध्यम से समाज के सामने रखा । उनके कहानी संग्रहों में से जिंदगी और जोंक, देश के लोग, बीच की दीवार आदि प्रमुख हैं ।
वर्ष दो हजार चौदह में आजाद भारत के सबसे बड़े लेखकों में से एक खुशवंत सिंह को भी हमसे छीन लिया । जिंदगी की पिच पर खुशवंत सिंह शतक से चूक गए और निन्यानवे साल की उम्र में उनका निधन हो गया विदेश सेवा में अफसर से लेकर संपादक, इतिहासकार और राजनेता तक का जीवन जिया और हर जगह अपनी अमिट छाप छोड़ी खुशवंत सिंह को विवादों में बड़ा मजा आता था और उनके करीबी बताते हैं कि वो जानबूझकर विवादों को हवा देते थे उनका स्तंभ- विद मलाइस टुवर्ड्स वन एंड ऑल लगभग पचास साल तक चला और माना जाता है कि भारत में सबसे लंबे समय तक चलनेवाला और सबसे लोकप्रिय स्तंभ था अबतक खुशवंत सिंह की लगभग अस्सी किताबें छप चुकी हैं। उनकी किताब ट्रेन टू पाकिस्तान और दो खंडों में सिखों का इतिहास काफी चर्चित रहा था उनकी आत्मकथा का हिंदी अनुवाद सच, प्यार और थोड़ी सी शरारत जब छपा तो अपने प्रसंगों की वजह से काफी चर्चित हुआ था खुशवंत सिंह पाकिस्तान के हदाली में उन्नीस सौ पंद्रह में पैदा हुए थे और बंटवारे के बाद भारत गए थे
इसी साल इक्कीस मई को मुर्दाघर जैसा मशहूर उपनयास लिखनेवाले जगदंबा प्रसाद दीक्षित का जर्मनी में निधन हो गया । जगदंबा प्रसाद दीक्षित ने मुर्दाघर के अलावा कटा हुआ आसमान और अकाल जैसे उपन्यास लिखे । उनकी कहानियां भी खासी चर्चित रही । जगदंबा प्रसाद दीक्षित समान अधिकार से हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लेखन करते थे । उन्होंने कई नाटक भी लिखे और करीब आधी दर्जन फिल्मों के लिए भी लेखन किया । इसी साल प्रगतिशील लेखक मधुकर सिंह भी हमसे बिछुड़ गए । अस्सी साल की उम्र में मधुकर सिंह ने बिहार के धरहरा में अंतिम सांसे ली । मधुकर सिंह ने बहुत छोटी उम्र में लिखना शुरू कर दिया था । उन्होंने विपुल लेखन किया । उनके उन्नीस उपन्यास और दस कहानी संग्रह प्रकाशित हैं । इसके अलावा उन्होंने कई नाटक भी लिखे । रॉबिन शॉ पुष्प मूलत कथाकार थे और उन्होंने आधा दर्जन से ज्यादा उपन्यास लिखे और तकरीबन उनके इतने ही कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं । उन्होंने कुछ लघु फिल्मों का निर्माण और लेखन भी किया । अभी हाल ही में उनके लेखन का समग्र भी प्रकाशित हुआ था । पचास के दशक से रॉबिन शॉ पुष्प कथा लेखन में सक्रिय रहे और हिंदी के तमाम पत्र पत्रिकाओं में छपते रहे । उनकी कई कहानियों में भारतीय ईसाई समाज की समस्याओं और उनके जीवन को उभारती थी । फणीश्वर नाथ रेणु पर लिखा उनका संस्मरण रेणु-सोने की कलम वाला हिरामन बेहद चर्चित रहा था और पाठकों ने उसे खूब सराहा था । बीस दिसंबर उन्नीस सौ चैंतीस को बिहार के मुंगेर में जन्मे रॉबिन शॉ पुष्प ने पटना में 30 अक्तूबर को अंतिम सांस ली । इनके अलावा मशहूर समाजवादी चिंतक और कथाकार अशोक सेक्सरिया, बांग्ला कवि नवारुण भट्टाचार्य का भी इस साल निधन हो गया । यू आर अनंतमूर्ति कन्नड़ के सबसे बड़े साहित्यकारों में से एक थे । उन्होंने पचास और साठ के दशक में कन्नड़ साहित्य को परंपरा की बेड़ियों से मुक्त कर नव्य आंदोलन की शुरुआत की थी । इस आंदोलन के अगुवा होने की वजह से यू आर अनंतमूर्ति ने उस वक्त तक चली आ रही कन्नड़ लेखन की परंपरा को ध्वस्त कर दिया, वो भी इस साल दुनिया का अलविदा कह अपनी अंतिम यात्रा पर निकल पड़े । विश्व साहित्य में मार्केज और नादिन गार्डिमर का भी निधन इसी साल हुआ । नादिन गार्डिमर का जन्म इस्ट रैंड में उन्नीस सौ तेइस को हुआ था और पंद्रह साल की उम्र में उनकी पहली कहानी- द सीन फॉर क्वेस्ट गोल्ड प्रकाशित हुई थी । उसके बाद से वो लगातार लिखती रही और उनके खाते में सौ से ज्यादा कहानियां और तेरह चौदह उपन्यास हैं । जादुई यथार्थवादी लेखक मार्केज का जाना साहित्य की दुनिया के लिए बड़ी क्षति है ।

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