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Friday, February 20, 2015

बयानवीर नेताओं पर लगाम जरूरी

संसद के बजट सत्र के पहले राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के सदर मोहन भागवत जी का एक अहम बयान आया है । उन्होंने चालीस बच्चे पैदा करने की नसीहतों को नकारते हुए कहा है कि महिलाएं बच्चा पैदा करने की मशीन नहीं हैं । दरअसल बीजेपी के साक्षीमहाराज जैसे सांसद, एक मंत्री और कथित तौर पर आरएसएस से जुड़े संगठन प्रधानमंत्री मोदी के लिए परेशानी खड़ी करने में जुटे हैं । इन कट्टर सोच वाले लोगों को मोहन जी का ये बयान गंभीरता से लेना होगा क्योंकि लव जेहाद जैसे मुद्दे को उठाकर बीजेपी का खासा नुकसान हो चुका है । दरअसल बेगलाम होते जा रहे सांसद और अनुषांगिक संगठन प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी के लिए मुश्किलें पैदा कर रहे हैं । इसका खामिया दिल्ली विधानसभा चुनाव में भुगता पड़ा । भगवा वस्त्रधारी सांसद साक्षी महाराज ने बापू के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताकर सबसे पहले बड़ा विवाद खड़ा कर दिया । मीडिया में जब थू थू होने लगी और विरोधी दलों ने सरकार को घेरना शुरू किया तो संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने सांसदों को आपत्तिजनक बयानों से बचने की सलाह दी थी । उसका असर भी दिखा था और शाम तक साक्षी महाराज ने माफी मांग ली थी । यह विवाद ठंडा भी नहीं पड़ा था कि दिल्ली की एक सभा में केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने रामजादे और हरामजादे जैसा घोर आपत्तिजनक बयान दे दिया । संसद में बवाल हो गया था और विपक्षी दलों ने राज्यसभा में अपनी मजबूत स्थिति के मद्देनजर सरकार को बैकफुटट पर रखा । तकरीबन पूरा सत्र रामजादे और हरामजादे की भेंट चढ़ गया । लेकिन अंग्रजी में एक शब्द बैड माउथ । इसके शिकार साक्षी महाराज कहां रुकने वाले थे । उन्होंने लगातार विवादित बयान देना जारी रखा । सांसद होकर अपने प्रधानमंत्री की अपील को ठुकराते हुए उन्होंने फिर से हिंदुओं को चार बच्चे पैदा करने की अपील कर दी । उनकी इस अपील का हिंदू समाज पर कितना असर हुआ यह तो पता नहीं पक एक महिला ने एक सटीक टिप्पणी की थी कि बच्चों के डायपर बदलने का काम साक्षी महाराज को सौंप देना चाहिए । अपने आप को हिंदुत्व के ठेकेदार कहनेवाले कई तरह के संदठन इन दिनों बेअंदाज हो गए हैं । एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विकास और सुशासन की बात कर रहे हैं. जहां वो मेक इन इंडिया जैसे कामों पर फोकस कर रहे हैं वहीं ये हिंदुत्ववादी संगठन विकास के एजेंडे को डिरेल करने में लगे हैं । लेकिन ये फ्रिंज एलिमेंट प्रधानमंत्री मोदी के काम करने के तरीके से अनभिज्ञ हैं । उन्हें लगता है कि केंद्र में रामभक्त सरकार है और जो भी अंड बंड वो करना चाहेंगे करते रहेंगे । उन्हें नरेन्द्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री के कार्यकाल को देखना चाहिए । उस राज्य का मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी ने तमाम तरह के फ्रिंज एलिमेंट को हाशिए पर पहुंचा दिया था । विकास की राह में बाधा बन रहे मंदिरों तक को भी विस्थापित किया गया और इन कथित हिंदू धर्म के ठेकेदारों की जुबान नहीं खुली ।
हमें ज्यादा पीछे नहीं जाना पड़ेगा दो तीन साल पहले बीजेपी में जिस तरह का भ्रम दिखाई देता था वह अब दूर हो गया लगता है । तीन दशक से ज्यादा वक्त बीत जाने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि वो यह साबित करे कि वो कांग्रेस का विकल्प बन सकती है । जिस तरह से कर्नाटक में येदुरप्पा ने खुद को मुख्यमंत्री बनाए जाने के लिए लगभग बगावत कर दी थी उससे भी पार्टी में अनुशासन की कमी साबित हुई  थी । उस वक्त बीजेपी के लिए बहुत चिंता की बात थी कि वो जो भी राजनैतिक फैसले हो रहे थी वो विवादित हो जा रहे थे । पार्टी के फैसलों के खिलाफ पार्टी के ही वरिष्ठ नेता खड़े हो जा रहे थे और पार्टी फोरम से लेकर मीडिया तक में खुलकर आलाकमान के फैसलों पर रोष जता रहे थे । इसका परिणाम यह हो रहा था कि पार्टी को लेकर लोगों के मन में निर्णायक छवि नहीं बन पा रही थी । दो साल पहले हालात यह हो गए थे कि झारखंड में राज्यसभा के टिकटों के बंटवारो को लेकर उस वक्त के पार्टी अध्यक्ष नितिन गड़करी की मनमानी की जमकर लानत मलामत हुई थी । झारखंड में एक धनकुबेर को पार्टी के समर्थन को लेकर संसदीय दल में यशवंत सिन्हा ने इतना हल्ला मचाया कि आडवाणी को यह कहकर उनको शांत करना पड़ा था कि वो अध्यक्ष से इस संबंध में बात करेंगे बाद में पार्टी ने धनकुबेर को समर्थन देने के अपने फैसले को भी बदला था । बाद में जब मोदी ने पार्टी की कमान संभाली तो एक बार फिर से अनुशासन बहला हुआ और नतीजा लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक बहुमत हासिल कर बीजेपी सत्तानशीं हुई ।
बीजेपी के सत्ता में आते ही हाशिए पर पड़े राजनीतिक संत महात्मा अपना चोला झाड़कर खड़े हो गए और हिंदुत्व को नए सिरे से परिभाषित करने लगे । उन्हें यह बात समझ नहीं आ रही है कि देश अब इन फिजूल की बातों से आगे निकल चुका है । धर्म संप्रदाय और जाति के आधार पर राजनीति का दौर लगभग खत्म सा होता नजर आ रहा है । आज के युवा वर्ग को अपने सपने पूरे करने हैं । उन्हें इस बात से कतई मतलब नहीं है कि मंदिर रहां बनेगा । उसके सपने तो इस दिशा में बढ़ रहे हैं कि कब उसे एक बेहतर नौकरी मिलेगी । कब वो अपने एसपिरेशंस को पूरा कर पाएगा । उसे फ्लैट , कार , स्मार्ट फोन चाहिए । बदलते राजनीति के इस मिजाज को मोदी ने पकड़ा था और उन्होंने युवाओं की इन्ही आंकांक्षओं को जगाकर बीजेपी को बहुमत दिलवाया । अब आपत्तिजनक बयानों से बवाल खड़ा करनेवाले इन नेताओं को समझना होगा कि इस तरह की ध्रुवीकरण की राजनीति का दौर खत्म हो चुका है । आपत्तिजनक बयानों के आधार पर राजनीति करनेवाले नेताओं का दौर अब खत्म हो गया है और देश की जनता को अब नो नॉनसेंस नेता चाहिए । लोकसभा चुनाव के दौरान अपने बयानों से सुर्खियों में रहने वाले बीजेपी के एक नेता जो अब केंद्रीय मंत्री हैं ने मुझे बताया कि अब उन्हें सिर्फ काम करने को कहा गया है । लाख उकसाने के बावजूद वो किसी तरह के बयान से बचते नजर आए । यह एक ऐसा बदलाव है जिसको रेखांकित किए जाने की आवश्यकता है । यह भारतीय राजनीति के बदलते हुए मन मिजाज का प्रतिनिधित्व है । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक सीईओ की तरह काम कर रहे हैं । जो अपने मातहतों से डिलीवरी की उम्मीद रखता है । इस तरह के माहौल में लव जिहाद, दस बच्चे पैदा करो, गोडसे देशभक्त था , गोडसे के मंदिर बनाने की कोशिश, रामजादा हरामजादा जैसे जुमलों से लोगों में उनके प्रति हिकारत का ही भाव आता है । इतना अवश्य है कि इस तरह की बयानबाजी करनेवाले पार्टी के नेताओं के खिलाफ अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सख्त कदम उठाने होंगे । डांट फटकार से नहीं मानने वाले इन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी । तीस साल बाद देश ने किसी दल को पूर्ण बहुमत से भी ज्यादा ताकत दी है । उस ताकत का इस्तेमाल देश के विकास में करने और इस तरह के फ्रिंज एलिमेंट को शांत करने में किया जाना चाहिए । अगपर ऐसा हो पाता है तो यह समाज में नफरत फैलानेवालों के लिए एक बड़ा झटका होगा ।  दरअसल हिंदू धर्म के नाम पर अपनी दुकान चलानेवाले इन बयानवीर नेताओं को हिदुत्व के सहअस्तित्व के बेसिक सिद्धांत का पता नहीं । वो हिंदूओं को कट्टर बनाना चाहते हैं जो कि फिलहाल संभव नहीं है । हिंदू सदियों से सहिष्णु रहे हैं और आगे भी सदियों तक सहिष्णु ही रहेंगे ।
 

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