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Tuesday, May 19, 2015

कविता में अभियान, गद्य में शासन

केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार के एक साल पूरे होनेवाले हैं । सरकार के सालभर के कामकाज का आंकलन हो रहा है । तमाम तरह के सर्वे सामने आ रहे हैं जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता को मापा जा रहा है । नतीजे कहीं कम तो कहीं ज्यादा तो कहीं स्थिर नजर आ रहे हैं । सरकार की नीतियों को कसौटी पर कसा जा रहा है और उसके नतीजों पर बहस हो रही है सरकार ने भी अपनी सालभर की उपलब्धियों को लेकर जनता के सामने जाने की रणनीति का खुलासा कर दिया है । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मथुरा रैली से उसका आगाज होगा । देशभर में हर जिला मुख्यालय पर पार्टी के प्रवक्ता प्रेस कांफ्रेंस करेंगे । यह मोदी का अपना स्टाइल है जिसे विराट या भव्यता कहा जा सकता है । अपेक्षाओं और आकांक्षाओं के पूरा होने और ना होने के इस कोलाहल के बीच एक चीज जो नरेन्द्र मोदी को लेकर कायम है वह है उनपर लिखी जानी वाली किताबें । चुनाव पूर्व शुरू हुआ यह सिलसिला अब भी कायम है और नियमित अंतराल पर नरेन्द्र मोदी को केंद्र में रखकर किताबें लिखी जा रही है । पहले लोकसभा चुनाव को लेकर कई किताबें आईं परंतु उन सबके केंद्र में नरेन्द्र मोदी ही थे, परिधि पर राहुल गांधी और अन्य दलों के नेता । नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कई लेखकों ने उनके व्यक्तित्व को अपनी लेखनी के माध्यम से खोलने का प्रयास किया । कई गंभीर कोशिशें हुईं तो कुछ स्वंयभू लेखकों ने इसको अवसर की तरह भुनाने के लिए किताबें लिखीं जिसका कोई स्थायी महत्व नहीं है । पाठकों को याद होगा कि जब नब्बे के दशक के अंतिम वर्षों में लालू यादव अपनी लोकप्रियता के चरम पर थे तो लालू चालीसा से से लेकर ग्रंथावलियां तक लिखी गईं । चालीसा लिखनेवाले एक सज्जन तो राज्यसभा तक पहुंच गए । मोदी पर लिखनेवाले कई लेखकों की मंशा भी वहीं पहुंचने की है, लिहाजा वो भक्तिभाव से लेखन कर रहे हैं । हो सकता है कि इस तरह के लेखन से उनको लाभ मिल जाए लेकिन साहित्य या राजनीतिशास्त्र को वो कोई स्थायी महत्व की पुस्तक नहीं दे पाएंगे । किताबों की इस भीड़ के बीच लंबे समय तक पत्रकार रहे लेंस प्राइस की किताब- द मोदी इफेक्ट, इनसाइड नरेन्द्र मोदीज़ कैंपेन टू ट्रांसफॉर्म इंडिया प्रकाशित हुई । लेंस प्राइस का लंबा अंतराल बीबीसी में राजनीतिक संवाददाता के तौर पर गुजरा । बाद में उन्होंने ब्रिटेन की लेबर पार्टी के कम्युनिकेशन विभाग को संभाला और लगभग साल डेढ साल उसके प्रमुख भी रहे । ब्रिटेन के 10 डाउनिंग स्ट्रीट में भी उन्होंने दो साल बिताए । इसके पहले भी लेंस प्राइस की किताब- स्पिन डॉक्टर्स डायरी और टाइम एंड फेट खासी चर्चित रही है । अपनी इस किताब द मोदी इफेक्ट में लेंस प्राइस ने पिछले लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी की रणनीतियों को उनके करीबियों के माध्यम से परखने की कोशिश की है । इस किताब में लेंस प्राइस ने नरेन्द्र मोदी से लंबी बातचीत की और उनके मन मिजाज और व्यक्तित्व को समझा है । इस किताब में चुनावी रणनीति पर मोदी के अलावा उनकी टीम के सदस्यों से बात की गई । मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी दिनचर्या से लेकर लाल किला पर उनके भाषण को सुनने और उसको अनुभव करने के लिए लेखक अपने अनुवादक के साथ मौजूद थे । इस पूरी किताब में लेंस प्राइस वस्तुनिष्ठ होकर उनका मूलायांकन करते हैं । हाल के दिनों में जिन भारतीय पत्रकार या लेखकों ने नरेन्द्र मोदी या उनकी रणनीति पर लिखा, उनमें से कुछ अपवादों को छोड़कर, सबने भक्तिभाव से लिखा । इस मायने में लेंस प्राइस की किताब थोड़ी अलग है ।
लेंस प्राइस ने अपनी इस किताब में पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त नरेन्द्र मोदी की रणनीत के रेशों को उघाड़ने की बहुत हद तक कामयाब कोशिश की है । किस तरह से नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया से लेकर मीडिया का चुनावी इस्तेमाल कर ऐतिहासिक कामयाबी हासिल की । नरेन्द्र मोदी से अपनी पहली मुलाकात में लेखक शुरू में यह दंभ भरता है कि वो किसी के भी प्रभाव में नहीं आता है । इस क्रम में वो अपने लंदन के प्रधानमंत्री कार्यलय में काम करने और विश्व के बड़े नेताओं से मिलने का जिक्र कर अपने तर्कों को मजबूत भी करने की कोशिश करते हैं । बड़ी शख्सियतों पर किताब लिखने में एक तकनीक का इस्तेमाल बहुधा लेखक करते हैं जिसे नेम ड्रापिंग कहते हैं । लेंस प्राइस ने भी अपनी इस पूरी किताब में 10 डाउनिंग स्ट्रीट के अपने कार्यकाल में मिले नेताओं का जमकर नेम ड्रापिंग किया है । जैसे मोदी से हुई अपनी पहलीमुलाकात का जिक्र करते हुए लेंस प्राइस दक्षिण अफ्रीका के करिश्माई नेता नेल्सन मंडेला के साथ अपनी दस मिनट की मुलाकात का जिक्र करते हैं । मोदी के व्यक्तित्व के बारे में लिखते हुए लेंस प्राइस ने कहा है कि वो हर स्थिति को अपने कंट्रोल में रखते हैं चाहे कोई मुलाकात ही क्यों ना हो । लेंस कहते हैं कि मोदी इंपोजिंग भी है और उनकी आंखें सामने वाले को अंदर तक भेदने की क्षमता रखती है । लेंस प्राइस ने उनके चुनावी जुमलों को भी अपनी इस किताब में सफलता और असफलता के नजरिए से देखने की कोशिश की है । जैसे छप्पन इंच की छाती पर लिखते हुए वो मोदी की लंबाई, उनकी चौडाई आदि का वर्णन करते हैं । यहां वो यह कहते हैं कि मोदी का सीना भले ही छप्पन इंच का ना हो लेकिन उन्होंने अपने व्यक्तित्व के साथ इस भारतीय मुहावरे को मिलाकर इस तरह से पेश किया ताकि एक मजबूत और दमदार नेता की छवि को बढ़ावा मिल सके । लेखक लेंस प्राइस नरेन्द्र मोदी के अपने व्यक्तित्व को सहेज संवार कर रखने की क्षमता से भी प्रभावित हैं । लेंस प्राइस की पहले यह धारणा थी कि मोदी अपने बारे में मनपसंद तरीके से लिखी चीचें पढ़ते हैं । पहली मुलाकात में नरेन्द्र मोदी लेखक से यह कहते हैं कि वो जितनी चाहें आलोचना कर सकते हैं तो वो चकित रह जाते हैं ।

लेंस प्राइस ने लिखा है कि मोदी का भाग्य और भगवान में काफी यकीन है । एक विदेशी लेखक के लिए यह अचंभा हो सकता है या फिर उसको यह बात उल्लेखनीय लग सकती है । लेंस प्राइस का दावा है कि मोदी के बारे में उन्होंने इस किताब को लिखने के पहले काफी शोध किया था लेकिन जब वो उनके धार्मिक होने का उल्लेख प्रमुखता से करते हैं तो उनके उक्त दावे में संदेह भी होता है । लेंस प्राइस लिखते हैं कि मोदी ने उनसे कहा कि हम अपने धर्म में विश्वास रखते हैं, भाग्य पर यकीन करते हैं । मारो भाग्य विधाता जैसे शब्द लेखक को मोदी ने कहा । मोदी ने लेखक से कहा कि उनका भाग्य पर यकीन है इस वजह से आज तक उन्होंने बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं पहना । लेखक ने मोदी के टेक सैवी होने को भी बहुत प्रमुखता दी है । इसी तरह से एक बातचीत में मोदी ने एक नेता तो परिभाषित करते हुए कहा कि अच्छा नेता वो होता है जिसमें सबको साथ लेकर चलने की क्षमता होती है । एक नेता के तौर पर मेरा मानना है कि आपको हर किसी से एक इंसान के तौर पर हाथ मिलाने के लिए उपलब्ध रहना चाहिए । लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि एक नेता को सबको खुश रखना चाहिए । इतना अवश्य होना चाहिए कि नेता को खुद में खुद के कर्मों में भरोसा होना चाहिए । उस तरह की कई बातें इस किताब में हैं जो मोदी के दर्शन के समझने में मददगार साबित होती है । लेंस प्राइस ने मोदी की इस बात के लिए भी तारीफ की है कि है लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने कांग्रेस के हर हमले को एक संभावना के तौर पर लिया और उसको इस तरह से आगे बढ़ाया कि उसका फायदा मिल सके । जैसे कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर के चायवाला की टिप्पणी को मोदी ने अपने चुनावी नारे की तरह इस्तेमाल कर लिया । चाय पर चर्चा का कार्यक्रम की शुरुआत हुई । यह अलहदा बात है कि चाय पर चर्चा कार्यक्रम तकनीकी दिक्कतों की वजह से तीन बार ही संभव हो पाया लेकिन उसके बाद थ्री डी और होलोग्राम तकनीक का इस्तेमाल कर उसको और व्यापक फलक प्रदान किया गया । कुल मिलाकर अगर हम लेंस प्राइस की इस किताब का अगर मूल्यांकन करें तो यह पाते हैं कि यह पढ़ने में आनंद देती है, उस दौर की कई घटनाओं को एक नई दृष्ठि से समझने का आधार भी देती है । मोदी का व्यक्तित्व या फिर उनकी लोकसभा चुनाव में अभूतपूर्व सफलता को समझने के लिए यह किताब संकेत तो करती है लेकिन यह इतना बड़ा विषय है कि इसको साढे तीन सौ पन्नों में समेटना मुमकिन नहीं है । मोदी सरकार के साल भर पूरे होने के मौके पर उनके व्यक्तित्व और उनके काम काज करने के तरीके को समझने के लिए लेंस प्राइस ने एक अच्छा आधार दिया है । 

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