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Sunday, December 27, 2015

साहित्य जगत का सफरनामा

साल दो हजार पंद्रह विदा होनेवाला है । यह एक ऐसा मुकाम होता है जिसमें हमे पीछे मुड़कर यह देखने की कोशिश रनी चाहिए कि पिछले साल भर में हमने क्या खोया क्या पाया । रचनात्मक दृष्टि से देखें तो दो हजार पंद्रह बहुत उत्साहजनक नहीं कहा जा सकता है । यह सुनने में अतिशयोक्ति लग सकती है लेकिन इस साल कोई ऐसीमहत्वपूर्ण कृति नहीं आई जिसने साहित्य जगत को एकदम से झकझोरकर रख दिया या उस कृति को पाठकों और आलोचकों ने समान रूप से पसंद किया। कुछ कृतियां अवश्य छिटपुट तरीके से अपनी धमक दिखाने में सफल रहीं लेकिन लंबे वक्त तक उसकी अनुगूंज साहित्य में सुनाई नहीं दी । इस साल कम ही पुस्तकों ने पाठकों का ध्यान अपनी ओर खींचा । कहानी संग्रह में वंदना राग का संग्रह हिजरत से पहले, गीताश्री की कहानियों का संग्रह स्वप्न साजिश और स्त्री, पंकज सुबीर का संग्रह कसाब.गांधी @ यरवदा.in, इंदिरा दांगी का शुक्रिया इमरान साहब, ह्षीकेश सुलभ का संग्रह हलंत, जयश्री राय का संग्रह कायान्तर ने पाठकों का ध्यान अपनी ओर खींचा । निलय उपाध्याय का बिहार के सपूत दशरथ मांझी के जीवन पर आधारित उपन्यास पहाड़ विषय के अलावा शैली को लेकर भी बेहतर रहा । इसी तरह से अलका सरावगी का उपन्यास जानकीदास तेजपाल मैनशन ने भी राजकमल चौधरी के लेखन को आगे बढाने वाला रहा । युवा लेखक प्रभात रंजन की किताब कोठागोई की भी खासी चर्चा रही । हिंदी की तुलना में अंग्रेजी में कई बेहतरीन किताबें आईं । आत्मकथा और जीवनी पर अगर हम देखें तो मशहूर अदाकारा स्मिता पाटिल और व्ही शांताराम की जीवनी को पाठकों ने खूब पसंद किया । वरिष्ठ पत्रकार कूमी कपूर ने इमरजेंसी पर एक बेहतरीन किताब लिखी । इसके अलावा जॉन इलियट की किताब इंप्लोजन, ट्रायस्ट ऑफ रियलिटी प्रकाषित हुई । इस किताब में जॉन इलियट ने भारतीय राजनीति परखने की कोशिश की है । पंकज दूबे का उपन्यास इश्कियापा युवा पाठकों को भा रहा है । हां इस बार प्रकाशकों की सूची में बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े विषयों की किताबों ने प्रमुखता से अपनी जगह बनाई । ये कारोबार का हिस्सा हो सकता है लेकिल बगैर पर्याप्त मेहनत के लिखी या बनाई गई इन किताबों का कई स्थायी महत्व नहीं है । जिन प्रकाशकों को इन विषयों पर मूल किताबें नहीं मिल पाईं उन्होंने संघ या बीजेपी से जुड़े लोगों के लेखों और भाषणों की किताबें छापकर कारोबार में बने रहने की जुगत अपनाई ।  
दो हजार पंद्रह को पुरस्कार वापसी विवाद की वजह से समकालीन साहित्य में याद रखा जाएगा । भारत में बढ़ते असिहुष्णता का आरोप लगाते हुए हिंदी के विवादप्रिय, प्रचारप्रिय लेखक उदय प्रकाश ने इसकी शुरुआत की थी लेकिनमजमा लूट लिया अशोक वाजपेयी ने । इसका बड़ा असर तब हुआ जब अशोक वाजपेयी और नयनतारा सहगल ने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का एलान कर दिया । इन दोनों के पुरस्कार लौटाने के बाद पुरस्कार वापसी अभियान ने जोर पकड़ा । पंजाब से लेकर कश्मीर और कर्नाटक से लेकर केरल तक के साहित्य अकादमी से पुरस्कृत कई लेखकों ने विरोधस्वरूप पुरस्कार लौटाने का एलान किया। मशहूर शायर मुनव्वर राणा ने तो एक खबरिया चैनल के शो के दौरान ही नाटकीय ढंग से पुरस्कार लौटाया । पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों का प्राथमिक आरोप ये था कि कन्नड़ के लेखक कालबुर्गी की हत्या के बाद साहित्य अकादमी ने उनकी शोकसभा आयोजित नहीं की । जब ये आरोप जोरशोर से उठा तब जाकर साहित्य अकादमी ने बेंगलुरू में आयोजित शोकसभा की तस्वीरें और अखबारों में छपी खबरें जारी की लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी । साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ तिवारी के संवेदनहीन बयान से लेखकों का गुस्सा भड़का दिया ।लेखकों के पुरस्कार वापसी के विरोध में भी सैकड़ों लेख लिखे गए । सत्ताधारी दल के नेताओं ने इसको बिहार चुनाव से जोड़ने की कोशिश की । वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसके खिलाफ ब्लॉग लिखा लेकिन पुरस्कार वापसी का सिलसिला जारी रहा । लेखकों का आरोप था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी असहिष्णुता के मसले पर खामोश हैं । बाद में प्रधानमंत्री ने अपने लंदन दौरे के वक्त और राष्ट्रपति ने कई बार भारतीय समाज में सहिष्णुता को लेकर बयान दिए  । पुरस्कार वापसी से दबाव में आई साहित्य अकादमी ने कार्यकारिणी की आपात बैठक की और कालबुर्गी की हत्या की निंदा तो की ही पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों के आरोपों का जवाब देने का काम भी किया । इस बीच साहित्य अकादमी के दिल्ली मुख्यालय पर वामपंथी लेखकों ने मुंह पर कालीपट्टी बांधकर विरोध प्रदर्शन किया तो राष्ट्रवादी लेखकों के समूह ने भी पुरस्कार वापसी के खिलाफ प्रदर्शन किया । कुछ युवा उत्साही लेखकों ने किताब वापसी अभियान की शुरुआत की और साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटानेवाले लेखकों की किताबें वापस लौटाने उनके घर तक जा पहुंचे । अभी हाल ही में साहित्य अकादमी की कार्यकारिणी ने लेखकों से पुरस्कार नहीं लौटाने की अपील की और ये भी फैसला किया कि जिन लेखकों ने पुरस्कार राशि के चेक अकादमी को भेजे हैं उनको नहीं भुनाया जाएगा । उसी दौर में कुछ फिल्मकारों ने भी राष्ट्रीय पुरस्कार लौटाकर लेखकों का समर्थन किया था ।
दो हजार चौदह के दिसबंर में छत्तीसगढ़ सरकार ने रायपुर साहित्य महोत्सव का आयोजन किया था । इस आयोजन को लेकर दो-एक वामपंथी समीक्षकों ने वितंडा खड़ा करने की कोशिश की । वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना और विनोद कुमार शुक्ल की रायपुर साहित्य महोत्सव में उपस्थिति पर सवाल खड़े करते हुए अखबारों और पत्रिकाओं में लेख और जवाबी लेख लिखे गए । तीन चार महीने तक ये विवाद हिंदी साहित्य में गूंजता रहा था । वीरेन्द्र यादव के आरोपों का नरेश सक्सेना ने जोरदार तरीके से जवाब दिया था । इसके अलावा आलोचना पत्रिका के नए संपादक अपूर्वानंद ने पत्रिका के स्वरूप में बदलाव किया तो हिंदी में उसपर सवालिया निशान लगे । आलोचना में समाजशास्त्रीय लेखों की भरमार पर शंभुनाथ ने सवाल खड़े किए थे तो कुछ लोगों ने इसको वाणी प्रकाशन से अभय कुमार दूबे के संपादन में निकलने वाली पत्रिका प्रतिमान की अनुकृति करार दिया । साहित्य अकादमी ने गैंगटोक में भारतीय भाषा के लेखकों और प्रकाशकों के बीच संवाद का एक आयोजन किया था । इस कार्यक्रम में नेशनल बुक ट्रस्ट के चेयरमैन बल्देव भाई शर्मा,वरिष्ठ कवि अरुण कमल, लीलाधर जगूड़ी, उपन्यासकार अखिलेश, वाणी प्रकाशन के अरुण माहेश्वरी के अलावा तमिल और तेलुगू के लेखकों और प्रकाशकों ने हिस्सा लिया था । उस गोष्ठी में बेहद सकारात्मक चर्चा हुई थी । यह वर्ष भीष्म साहनी का जन्म शताब्दी वर्ष था जिसको लेकर कई अहम आयोजन हुए । मशहूर लेखक शानी की रचनावली का विमोचन इस साल की अहम साहित्यक घटना रही ।
एक तरफ जहां पुरस्कार वापसी की धूम रही वहीं इस बार हिंदी के पुरस्कार विवादित नहीं हुए । हिंदी के वरिष्ठ लेखक और प्रेमचंद साहित्य के अध्येता कमल किशोर गोयनका को व्यास सम्मान से सम्मानित किया गया ।मराठी लेखक भालचंद्र नेमाड़े को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया । भारतीय ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार कविता के लिए बाबुशा कोहली को उसकी पांडुलिपि प्रेम गिलहरी, दिल अखरोट और कहानी के लिए उपासना को प्रदान किया गया । साहित्य अकादमी का हिंदी भाषा के लिए युवा पुरस्कार भोपाल की कथाकार इंदिरा दांगी को दिया गया । इस साल का साहित्य अकादमी पुरस्कार वयोवृद्ध लेखक रामदरश मिश्र को उनके कविता संग्रह आग की हंसी पर दिया गया । इस वर्ष का कथाक्रम सम्मान मशहूर उपन्यासकार कथाकार अखिलेश को दिया गया । इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार ने एक बार फिर से थोक के भाव से सरकारी पुरस्कार बांटे । हर साल पटना पुस्तक मेले में कविता के लिए दिया जानेवाला पुरस्कार इस बार युवा कवयित्री अर्चना राजहंस मधुकर को दिया गया ।

इस साल को काल के साल के तौर पर भी याद किया जाएगा । इस साल मशहूर साहित्यक हस्तियां एक एक करके दुनिया से चले गए । इस वर्ष इतना बड़ा साहित्यक खालीपन हुआ जिसकी भारपाई मुश्किल है । हिंदी के वरिष्ठ लेखक कृष्णदत्त पालीवाल, अपनी आत्मकथा लिखकर साहित्य जगत को झकझोर देनेवाले दलित लेखक प्रोफेसर तुलसीराम, मशहूर आलोचक विजय मोहन सिंह, वरिष्ठ कवि कैलाश वाजपेयी, वीरेन डंगवाल, सारिका पत्रिका के संपादक अवध नारायण मुदगल, उपन्यासकार महेन्द्र भल्ला, पंजाब के लेखक पुष्पपाल सिंह, वरिष्ठ लेखक कमलेश, नई कविता के दौर के चर्चित रही तिकड़ी में से एक जगदीश चतुर्वेदी का इस वर्। निधन हुआ जोकि साहित्य जगत के लिए बड़ा झटका रहा । वरिष्ठ आलोचक डॉ गोपाल राय, वरिष्ठ कथाकार डॉ महीप सिंह के अलावा समाजवादी चिंतक कृष्णनाथ का निधन भी साहित्य के लिए बड़ी क्षति रही । हिंदी के लेखकों के अलावा तमिल लेखक जयकांतन, जर्मन लेखक गुंटर ग्रास, लाठोर लुत्से, उर्दू के लेखक अब्दुल्ला हुसैन के निधन से भी विश्व साहित्य का कोना सूना हो गया । पत्रकारिता जगत से वरिष्ठ पत्रकार विनोद मेहता, प्रफुल्ल बिदबई और चंदामामा पत्रिका के लंबे समय तक संपादक रहे बालशौरी रेड्डी का निधन भी हमें झकझोर गया । मशहूर कार्टूनिस्ट और आम आदमी को अपने स्केच के माध्यम से उकेरने वाले आर के लक्ष्मण भी नहीं रहे । 

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