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Wednesday, January 27, 2016

संविधान पर अंधविश्वास भारी

एक तरफ देश अपने संविधान के सम्मान में अपना सड़सठवां गणतंत्र दिवस मना रहा था तो दूसरी तरफ उसी संविधान को लागू करने की मांग को लेकर महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर में सैकड़ों महिलाएं सड़क पर धरना दे रही थी । भारत बहुलताओं का देश है, विविधताओं का देश है लेकिन संविघान को लागू करने को लेकर ये विरोधाभास अभूतपूर्व है । जिन सरकारों और पुलिसवालों पर संविधान को लागू करवाने की जिम्मेदारी है वो उन महिलाओं को रोकने में लगे थे जो चार सौ साल पुराने अंधविश्वास को तोड़कर हमारे गणतंत्र के मुकुट में एक और नगीना जड़ना चाहती थी । दरअसल संविधान और गणतंत्र को शर्मसार करनेवाला वाकया है महाराष्ट्र का जहां महिलाओं को शनि देव की पूजा करने से और उनके चबूतरे पर जाने से रोका गया । अपने अधिकारों को लेकर संघर्ष कर रही महिलाओं को रोकने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने पूरी ताकत लगा थी । शनि शिंगणापुर के शनि मंदिर के चबूतरे पर महिलाओं के पूजा करने पर प्रतिबंध है । माना जाता है कि ये प्रतिबंध चार पांच सौ साल से चला आ रहा है । पिछले साल नवंबर में एक महिला सुरक्षा घेरे को तोड़ते हुए शनि के चबूतरे तक जा पहुंची थी और उसने शनि की शिला पर तेल चढा़ दिया था । उसके बाद वहां के कर्ता-धर्ताओं ने शिला का शुद्धिकरण किया था । शुद्धिकरण इस वजह से किया गया था कि एक महिला ने शनि शिला का स्पर्श कर दिया । अब यह बात समझ से परे है कि किस वेद या पुराण या किस धर्मग्रंथ में ये लिखा है कि स्त्रियों के छूने से भगवान अपवित्र हो जाते हैं लेकिन धर्म के ठेकेदारों ने इसको भगवान और भक्ति से जोड़कर आजाद भारत की महिलाओं का अपमान कर डाला । महिला के स्पर्श के बाद शनि शिला के शुद्धिकरण करनेवालों पर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई लेकिन अब जब भूमाता ब्रिगेड की महिलाओं ने गणतंत्र दिवस के मौके पर इस भेदभाव को दूर करने की ठानी को सरकार ने उसको विफल कर दिया । दरअसल घर्म के ठेकेदारों ने धर्म के नाम पर महिलाओं को पुरुषों से कमतर आंकने की चाल चली थी जो लंबे वक्त तक सफल रही थी । अब जब उस डिजाइन को चुनौती दी जा रही है तो पुरुष प्रधान पुजारी समाज तिलमिलाने लगा है । तर्क ये दिया जा रहा है कि महिलाएं जब रजस्वला होती हैं तो वो भगवान के दरबार में नहीं जा सकती हैं । ये कौन सा तर्क है या कौन से धर्मग्रंथ में ये लिखा है । धर्म के इन ठेकेदारों को ये पता होना चाहिए कि हमारे समाज कि महिलाएं इतनी जागरूक और सजह हैं कि ज्यादातर इस दौर से गुजरनेवाली महिलाएं स्वयं ही मंदिर नहीं जाती हैं, पूजा पाठ नहीं करती हैं । यह मान्यता है कि रजस्वला स्त्री ऐसा नहीं कर सकती हैं शास्त्रों में कहीं इसपर किसी तरह की कोई रोक का उल्लेख नहीं मिलता है । दूसरा तर्क ये दिया जाता है कि शिला रूप में भगवान को स्त्री नहीं छू सकती है चाहे वो शनि हों या शालिग्राम । इसी तरह से महिलाओं के गर्भगृह में जाने पर पाबंदी है । ये कितना हास्यास्पद तर्क है कि जो महिलाएं गर्भ घारण करती हैं, जो सृष्टि को रचती हैं वो गर्भगृह में नहीं जा सकती है ।

दरअसल ये रोक सिर्फ शनि शिंगणापुर या हिंदू धर्म में नहीं है । हर धर्म के ठेकेदारों ने धर्म की आड़ में महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित किया है । मुंबई के हाजी अली दरगाह में महिलाओं का महिलाओं के प्रवेश को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ी जा रही है । केरल में सबरीमाला के अयप्पा मंदिर और श्रीपद्नाभस्वामी मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है । सबरीमाला के मामले में तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना है । इसी तरह से अजमेर के कार्तिकेय मंदिर में भी महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है । अब ये सोचना होगा कि जिस सनातन धर्म में महिलाओं बेहद इज्जत की जाती थी और उनका ध्यान रखने के लिए पुरुषों को प्रेरित भी किया जाता था । ऋगवेद और अथर्वेद में स्त्रियों को सम्मान देने के बारे में विस्तार से लिखा गया है । अथर्वेद में साफ तौर पर कहा गया है कि जब कोई लड़की विवाह करके ससुराल में आती है तो वो नए परिवार से उसी तरह मिलती है जैसे समुद्र में नदी का मिलन होता है । विवाह के बाद स्त्री उस परिवार में रानी की तरह आती है जो अपने पति के साथ मिलकर सभी फैसले लेनेवाली होती है । ऋगवेद में तो कई ऋचाओं को महिला ऋषियों से ही कहलवाया गया है जिसका प्रतीकात्मक अर्थ है । उन अर्थों को प्रचरित करने के बजाए धर्म के ठेतेदारों ने दबा दिया।  महिला वैदिक ऋषियों की एक लंबी परंपरा रही है जिनमें रोमाशा, लोपामुद्रा, विवासरा से लेकर मैत्रेयी और गार्गी का उल्लेख मिलता है । उस धर्म में कालांतर में क्या हुआ कि स्त्रियों को दोयम दर्जा दे दिया गया । बाद के दिनों में भी हमारे नेताओं ने भी स्त्रियों के बारे में जो वयक्त किए वो निहायत आप्पतिजनक रहे हैं चाहे वो पूर्व कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल रहे हों या मुलायम सिंह यादव या शरद यादव रहे हों । अब वक्त आ गया है कि धर्म में महिलाओं को लेकर जिस तरह से कुरीतियों ने जड़ जमा लिया है उसको उखाड़ फेंका जाए और महिलाओं को उनका हक मिले । 

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