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Thursday, October 13, 2016

अनकही से ज्यादा सुनी कहानी

भारत के सबसे सफल क्रिकेट कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी पर बनी फिल्म एमएसडी एक अनकही कहानी ने शुरुआती दिनों में अच्छा बिजनेस किया है । अगर आप धोनी और क्रिकेट के फैन हैं तो आपको ये फिल्म अच्छी लग सकती है । इस फिल्म में शुरू से लेकर अंत तक धोनी को ग्लोरीफाई किया गया है । किसी भी शख्स पर बॉयोपिक बनती है तो ये माना जाता है कि फिल्मकार बेहतर रिसर्च के साथ प्रस्तुत होंगे । धोनी पर बनी फिल्म की टाइटल का ही दावा है कि उसमें धोनी के बारे में कई अनकही कहानियां होंगी । पूरी फिल्म को देखने के बाद ये लगता है कि इसमें नीरज पांडे इसमें नया कुछ भी पेश नहीं कर पाए हैं । इंटरनेट से लेकर धोनी पर लिखी गई अबतक की किताबों में मौजूद तथ्यों को इकट्ठा कर उसका कोलाज बनाकर प्रस्तुत कर दिया गया है । नीरज पांडे ने धोनी की शुरुआती जिंदगी का फिल्मांकन बहुत ही शानदार तरीके से किया है । झारखंड के शहर रांची की जिंदगी और फिर धोनी का खड़गपुर रेलवे स्टेशन पर टिकट कलेक्टर की नौकरी के सीन को फिल्माते वक्त बारीकी से सिचुएशन का ध्यान रखा गया है । लेकिन फिल्मकार इस फिल्म में कई बारीकियों का ध्यान रखने में असफल रहे हैं । फिल्म में धोनी की बहन जयंती तो उसके साथ शुरू से रही है और हर कदम पर उसके सपख दुख की साथी भी रही है । मदद भी करती रही है लेकिन इस फिल्म से उनके भाई नरेन्द्र सिंह धोनी बिल्कुल ही गायब हैं । जबकि वो शुरुआती दिनों में परिवार के साथ ही रहे । दो हजार सात में उन्होंने शादी की और दो हजार नौ में वो बीजेपी में शामिल हो गए । इस वक्त धोनी के भाई नरेन्द्र सिंह धोनी समाजवादी पार्टी के नेता हैं और रांची में ही धोनी से अलग रहते हैं । फिल्म में उनका ना होना दर्शकों को अखरता है । क्योंकि धोनी की शुरुआती सफलताओं के बीच उनके भाई भाई मीडिया में अपने छोटे भाई की उपलब्धियों पर गर्व करते हुए दिखा करते थे । बाद में किन्ही पारिवारिक वजहों से वो अलग रहने चले गए लेकिन फिल्मकार को पारिवारिक मसलों से क्या लेना देना लेकिन माही पर बनी फिल्म से नरेन्द्र गायब । दरअसल इससे ही पता चलता है कि धोनी पर बनी इस फिल्म में धोनी की पसंद और नापसंद का पूरा ख्याल रखा गया है । इसका एक और उदाहरण है जब फिल्मकार धोनी के कप्तान बनने के बाद के विवादित फैसलों से बचकर निकल जाते हैं । धोनी के सौरव गांगुली के साथ चले लंबे विवाद पर फिल्म लगभग खामोश है, खामोश तो वो सहवाग और गौतम गंभीर के साथ उनके झगडे पर भी है । धोनी और युवराज सिंह में भी लंबे समय तक चली प्रतिद्विंता का भी जिक्र नहीं होना फिल्म को कमजोर बनाती है । धोनी के फैसलों को लेकर टीम में और क्रिकेट बोर्ड में जिस तरह से घमासान मचा करता था उसकी बस एक झलक दिखती है वो वैसी ही है जब धोनी होटल के अपने कमरे में बैठकर न्यूज चैनल देख रहे होते हैं और उनके और सहवाग के बीच दरार की खबरें आती हैं । धोनी की पर्सनैलिटी को ग्लोरीफाई करने के चक्कर में तीन घंटे से ज्यादा लंबी ये फिल्म धोनी की जिंदगी के विवादित पर दिलचस्प पहलुओं को छोड़ देती है । बॉयोपिक होने का दावा करनेवाली फिल्म में इन प्रसंगों का नहीं होना फिल्मकार की चूक की ओर इशारा करती है । संतोष, परम और चिंटू की भूमिका में कलाकारों ने बेहतर अभिनय किया है । छोटे शहरों में दोस्त कितना कर सकते हैं इसकी बानगी भी देखने को मिलती है । 
इंटरवल के पहले इस फिल्म को नीरज पांडे ने बेहद मजबूती से बुना है और दर्शकों को बांधकर रखने में कामयाब होते हैं लेकिन इंटरवल के बाद धोनी के रोमांस आदि को दिखाने में पांडे को सफलता नहीं मिल पाई है और कहानी ढीली होती चली गई है । धोनी के कैरेक्टर में बिहार-झारखंड के छोटे कस्बे के लड़के के प्यार करने का स्टाइल दिखाने की कोशिश की गई है लेकिन वो दर्शकों के मन पर कोई छाप नहीं छोड़ पाती है । प्रियंका झा के साथ धोनी का अफेयर और फिर उसकी एक्सीडेंट में मौत के बाद साक्षी से ताज बंगाल होटल में मिलने की कहानी में कई झोल हैं । धोनी के बारे में उपलब्ध जानकारी और उनसे जुड़े लोगों का दावा है कि धोनी और प्रियंका की पहली मुलाकात कोची से विशाखापत्तनम जाते वक्त हवाई जहाज में ना होकर उससे काफी पहले यानि धोनी के टीम इंडिया में शामिल होने के पहले हो चुकी थी और फिल्म में जब मुलाकात होना दिखाया गया है तबतक प्रियंका की कार हादसे में मौत हो चुकी थी । इसी तरह से फिल्म में साक्षी औपर धोनी की पहली मुलाकात को लेकर भी फिल्म कुछ छोड़ देती है । साक्षी के पिता भी पहले रांची में रहते थे और दोनों परिवार एक दूसरे से परिचित था लेकिन फिल्म साक्षी और धोनी की नाटकीय मुलाकात करवाई गई है । अब मसाला तो डालना ही होगा । युवराज सिंह से जुड़ा एक छोटा लेकिन बेहद प्रभाववशाली सीन इस फिल्म में है ।

फिल्म रिलीज होने के बाद के पांच दिनों के आंकड़ों पर नजर डालें तो ये फिल्म लगभग चौरासी करोड़ का बिजनेस कर चुकी है ।सवाल यही है कि फिल्म में इतना झोल होने के बावजूद अच्छा बिजनेस कैसे कर रही है । इसका एक पक्ष तो ये है कि फिल्म में मिडिल क्लास के सपनों और उसकी आकांक्षाओं को पूरा होते दिखाया गया है । मिजिल क्लास धोनी के इस संघर्ष से खुद को आईडेंटिफाई करता है । दर्शकों को ये भी पसंद आ रहा है कि कैसे खेल से इतनी शोहरत और इतनी दौलत कमाई जा सकती है । मिडिल क्लास के इस सपने को भुनाने की कला में ये फिल्म सफल रही है लेकिन अगर एक बॉयोपिक के तौर पर देखें तो ये भाग मिल्खा भाग या पान सिंह तोमर के आसपास भी नहीं टिकती है । 

1 comment:

Anonymous said...

कहा तो ये भी जा रहा है कि पूरी फिल्म को अप्रत्यक्ष रूप से धोनी ही निर्देशित कर रहे थे।