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Saturday, October 29, 2016

विधाओं को सम्मान से आस ·

इंग्लैंड में छपे अंग्रेजी उपन्यास पर दिया जानेवाले इस साल का मैन बुकर प्राइज अमेरिकी लेखक पॉल बेयटी को दिया गया । किसी भी अमेरिकी उपन्यासकार को मिलनेवाला ये पहला बुकर पुरस्कार है । चंद दिनों पहले अमेरिकी गीतकार बॉब डिलान को साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया । दरअसल दो हजार चौदह तक ये पुरस्कार सिर्फ कॉमनवेल्थ देशों के अलावा आयरिश और जिंबाववे के उपन्यासकार को दिया जा सकता था । पॉल बेयटी का ये उपन्यास अमेरिका की नस्लभेदी राजनीति को केंद्र में रखकर व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया । द सेलआउट नाम के इस उपन्यास को इस पुरस्कार को देनेवाली जूरी ने अन्य सभी उपन्यासों से श्रेष्ठ माना बल्कि एक कदम आगे जाकर पॉल बेयटी को मार्क ट्वेन और जोनाथन स्विफ्ट की श्रेणी में खड़ा कर दिया । किसी भी उपन्यासकार के लिए ट्वेन और स्विफ्ट से तुलना होना ही किसी भी पुरस्कार से अधिक मायने रखता है । व्यंग्यात्मक शैली में लिखे उपन्यास को बुकर प्राइज मिलने से एक बार इस शैली में लिखी जानेवाली कृति पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है । दरअसल पहले गीतकार को नोबेल और फिर व्यंग्यात्मक शैली में लेखन करनेवाले को बुकर मिलने के बाद अमेरिका में भी इस बात पर बहस हो शुरू हो गई है कि साहित्य की मुख्यधारा से लगभग अलग मानी जानेवाले लेखन को सम्मान किस आधार पर दिया जा रहा है । वहां का लेखक समुदाय इस मसले पर अलग अलग राय रखते हैं । दरअसल व्यंग्यात्मक शैली में उपन्यास लिखना पारंपरिक शैली में लिखे जानेवाले उपन्यास से अधिक श्रम की मांग करता है । कई लेखक इसको साधने की कोशिश कर चुके हैं लेकिन कुछ शुरुआत ठीक करते हैं तो अंत में गड़बड़ा जाते हैं और कुछ लेखकों की शुरुआत ही निहायत बोरिंग होती है । जहां वो व्यंग्य करना चाहते हैं वो इतना हल्का हो जाता है कि पाठकों को बांध नहीं पाता है ।

अगर हम हिंदी को भी देखें तो यहां भी गीतकारों को उस तरह से सम्मान नहीं मिल पाया है । सम्मान नहीं मिल पाने की वजह चाहे जो भी हो इसने इस विधा का तो नुकसान कर ही दिया है । नई पीढ़ी के बहुत कम लेखक गीतकार बनना चाहते हैं और जो भी गीतकार बनना चाहते हैं उनका लक्ष्य बॉलीवुड होता है । जबकि एक दौर था कि हिंदी में एक से बढ़कर एक गीतकार हुए जिनके गीत लोगों की जुबां पर हुआ करते थे । हिंदी में गीत क्यों और किस वजह से हाशिए पर चला गया यह तो शोध का विषय है । इसी तरह से व्यंग्यात्मक शैली में हिंदी में उपन्यास बहुत कम लिखे गए हैं । एक तो हिंदी में राजनैतिक विषयों पर ही तुलनात्मक रूप से कम लेखन हुआ है और दूसरे उसको व्यंग्यात्मक शैली में लिखने की कोशिश तो और भी कम हुई है । श्रीलाल शुक्ल के राग दरबारी के बाद उस तरह की ऊंचाई या उसके आसपास पहुंचनेवाली कोई कृति उस शैली में लिखी गई हो याद नहीं पड़ता है । दरअसल व्यंग्यात्मक शैली में उपन्यास लिखना व्यंग्य लिखने से ज्यादा मुश्किल काम है । पॉल बेयटी ने भी माना है कि व्यंग्यात्मक शैली में किसी भी कृति की रचना करना और उसको अंत तक संभाल कर चलना बेहद कठिन कार्य है और इसके लिए काफी मेहनत की आवश्कता है । पॉल बेयटी ने तो अमेरिका में नस्लभेदी राजनीति जैसे मुद्दे को विषय बनाकर अपने लिए और भी बड़ी चुनौती खड़ी कर ली थी । लेकिन बुकर प्राइज के निर्णायकों की करीब छह घंटे तक चली माथापच्ची के बाद पॉल बेयटी के उपन्यास के पक्ष में ही सर्वसम्मति बनी । गीत और व्यंग्यात्मक शैली में लेखन को वैश्विक मंचों पर स्वीकार्यता का असर हिंदी पर पड़ेगा या नहीं ये देखना दिलचस्प होगा ।        

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