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Sunday, February 5, 2017

फेसबुक की सफलता की परीकथा

कौन जानता था कि तेरह साल पहले हॉवर्ड विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए बनाई गई बेवसाइट फेसबुक पूरी दुनिया में इस कदर छा जाएगी कि वो संचार के वैकल्पिक साधन के तौर पर उपयोग में आने लगेगी । तेरह साल के सफर में ही करीब हर महीने दो अरब सक्रिय उपभोक्ताओं के साथ फेसबुक की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है । फेसबुक ने पिछली तिमाही के जो आंकड़ें जारी किए उसके मुताबिक सवा अरब लोग हर दिन फेसबुक पर सक्रिय रहते हैं । आज फेसबुक पूरी दुनिया की करीब सत्तर भाषाओं में उपलब्ध है और हर दस मिनट में करीब एक लाख फ्रेंड्स रिक्वेस्ट का आदान प्रदान होता है और औसतन करीब तीन लाख हर मिनट पर अपना स्टेटस अपडेट करते हैं । यही नहीं प्रति मिनट फेसबुक पर कमेंट करनेवालों की संख्या भी पांच लाख से उपर है और हर सेकेंड 8 नए उपभोक्ता फेसबुक से जुड़ते हैं । ये आंकड़े काल्पनिक लग सकते हैं लेकिन इसको हाल ही में फेसबुक ने खुद ही जारी किया है । दरअसल अगर हम देखें तो तेरह साल में सफलता की यह कहानी किसी परीकथा जैसी लगती है । चार फरवरी दो हजार चार को मार्क जुकरबर्ग, डस्टिन मोस्कोविज, क्रिस ह्यूसेस, एंड्र्यू मैकलम और एडुवर्डो सेवरिन के साथ मिलकर फेसबुक की औपचारिक शुरुआत की थी । औपचारिक शुरुआत के करीब तीन महीने पहले नार्क जुकरबर्ग ने हॉवर्ड विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए फेसमास ने एक साइट बनाई थी । फेसमास के लॉंच होने के चार घंटे के अंदर ही करीब पांच सौ विजिटर वहां पहुंचे जिन्होंने बीस हजार से ज्यादा फोटो देखा । फेसमास की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसपर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन जुकरबर्ग और उनके साथियों ने इसकी सफलता की आहट को भांप लिया था और फेसमास पर पाबंदी के तीन महीने के अंदर ही उन्होंने फेसबुक नाम से सोशल नेटवर्किंग साइट की शुरुआत कर दी । बाकी बातें तो इतिहास हैं ।
अब फेसबुक सोशल नेटवर्किंग साइट से आगे बढ़कर दूसरे स्तर पर जाना चाहता है और उसके ही प्रयास में है । इन दिनों फेसबुक पर वीडियो की भरमार दिखाई देती है । फेसबुक अन्य बेवसाइट्स को उनके पेज पर किसी भी इवेंट को लाइव करने की सहूलियत प्रदान करने लगा है। फेसबुक के करीब उनासी फीसदी उपभोक्ता मोबाइल के माध्यम से वहां सक्रिय रहते हैं । फेसबुक को इसमें अपार संभावना नजर आई और उसने उपभोक्ताओं को मोबाइल से किसी भी घटना को लाइव करने या फिर सीधे अपना वीडियो पोस्ट करने की सहूलियत दे दी । वीडियो और लाइव करने की इस सहूलियत ने फेसबुक पर लाइक्स की संख्या बहुत बढ़ा दी। अब हर मिनट फेसबुक पर पांच लाख लाइक्स के बटन दबते हैं । लाइक्स के बटन के साथ फेसबुक ने लव, हा-हा, वाऊ, सैड और एंग्री के बटन दिए जिसने उपभोक्ताओ के ट्रैफिक को बढ़ाया । दरअसल फेसबुक अब वीडियो को तरजीह देकर यूट्यूब से पिछड़ने की भारपाई करना चाह रहा है । फेसबुक के लगभग साल भर बाद ही शुरु हुए यूट्यूब ने वीडियो का खजाना बनाकर इससे बहुत पैसा कमाया । पिछले दो तीन सालों से फेसबुक किसी ना किसी तरह से यूट्यूब को मात देने की जुगत में लगा है । अभी जियो के फ्री डाटा ऑफर और उसके बाद अन्य मोबाइल कंपनियों के डाटा दर में कमी के बाद फेसबुक की सही रणनीति ने उसकी पहुंच बहुत बढ़ा दी है । फेसबुक की चौथी तिमाही की रिपोर्ट में इस बात का माना भी गया है कि फ्री डाटा की वजह से उसको फायदा हुआ है । टेक्सट से ज्यादा वीडियो को तरजीह देने और फ्री डाटा की वजह से फेसबुक को इस तिमाही में इक्यावन फीसदी का मुनाफा हुआ । फेसबुक अब भारत के गावं गांव में पहुंच रहा है क्योंकि उन इलाकों में इंटरनेट का घनत्व बढ़ रहा है और सस्ते स्मार्टफोन लोगों की मुट्ठी में आ गए हैं । हमारे देश में जिसके हाथ में स्मार्ट फोन है लगभग उन सभी के पास फेसबुक भी है ।
हाल ही में हुए एक सर्वे के मुताबिक फेसबुक के उपभोक्ता हैं सप्ताह में एक बार कोई ना कोई वीडियो अवश्य देखते हैं । मोबाइल ओनली की अवधारणा को अपने विस्तार का आधार बनाने वाली फेसबुक ने माना है कि भारत उसके लिए सबसे मजबूत बाजार है जहां विस्तार की अपार संभावनाएं हैं । अब फेसबुक वीडियो से आगे जाकर इसको टीवी में बदलना चाहता है । उसकी योजना के मुताबिक वो अपने प्लेटफॉर्म पर ग्राहकों को टीवी की सहूलियत देना चाहती है लेकिन सोशल नेटवर्किंग साइट से टीवी में बदलना या टीवी की सहूलियतें देना इतना आसान नहीं है । टीवी चलानेवाले लोग भी फेसबुक कई इस योजना के बाद सतर्क हो गए हैं और उन्होंने भी अपने ग्राहकों, उपभोक्ताओं के टीवी देखने के पैटर्न का विश्लेषण कर आवश्यक बदलाव करने शुरू कर गिए हैं । खबरों के लिए फेसबुक का सहारा नहीं लिया जा सकता है । फेसबुक ने भले ही लोगों के अकाउंट वेरीफाई किए हैं लेकिन खबरों की सत्यता जांचने का कोई टूल अभी विकसित नहीं हुआ है । फेसबुक को अगर टीवी की जगह लेनी है तो उसको कोई ऐसा तंत्र विकसित करना होगा जिसमें साख पर सवाल ना उठे ।


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