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Saturday, February 4, 2017

साहित्य-कला पर संजीदा पहल

इस बात को लेकर हिंदी साहित्य जगत में लगातार चर्चा होती है कि दिल्ली में कॉफी हॉउस के बंद होने के बाद से साहित्यक विमर्श के लिए कोई जगह नहीं बची । साहित्य और कला के अलग अलग केंद्र होने की वजह से साहित्य-कला प्रेमियों के एक जगह मिलने की कोई सूरत बन नहीं पाती है । दिल्ली के मंडी हाउस इलाके के श्रीराम सेंटर में एक किताब की दुकान हुआ करती थी जो लेखकों –पाठकों और साहित्यप्रेमियों के मिलने की जगह हुआ करती थी । पर उसके बंद होने के बाद दिल्ली की वो इकलौती जगह भी खत्म हो गई । चंद सालों पहले केंद्र और दिल्ली सरकार से दिल्ली के साहित्य-कला प्रेमियों ने ये मांग की थी कि नई दिल्ली में इलाके में कोई एक ऐसी जगह बनाई जानी चाहिए जहां साहित्यक विमर्श से लेकर नाटकों के मंचन आदि हो सकें । लेखन और अन्य आधुनिक प्रवृत्तियों पर संवाद हो सके । लेकिन साहित्य और कला हमेशा से सरकारों की प्राथमिकता में रही नहीं है लिहाजा इस मांग पर कोई विचार नहीं किया गया । नेताओं के बड़े बड़े स्मारकों के लिए जगह मिल गई लेकिन साहित्य कला केंद्र को लेकर संजीदगी से कोशिश नहीं की जा सकी क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व इसको लेकर उदासीन रहे । चंद व्यक्तिगत प्रयासों की वजह से साहित्य के छोटे-छोटे केंद्र आदि अवश्य बने हैं लेकिन वो नाकाफी हैं । ऐसे में एक उत्साही साहित्य-कालाप्रेमी अराधना प्रधान ने दिल्ली के बिजवासन इलाके में साहित्य कला और रंगमंच के केंद्र के रूप में एक बड़े परिसर मुक्तांगन का निर्माण किया है । मुक्तांगन को बेहद सुरुचिपूर्ण तरीके से बनाया-सजाया गया है । इस केंद्र में साहित्यक विमर्श के अलावा मंचन की सुविधा भी है ।
बाहरी दिल्ली के बिजवासन इलाके में बना यह साहित्य-कला केंद्र भले ही अभी दिल्लीवालों को दूर लगे लेकिन आने वाले दिनों में कार्यक्रमों की आवर्तिता पर इसकी लोकप्रियता निर्भर करेगी ।जैसे जैसे लेखकों और साहित्य प्रेमियों को इस केंद्रके बारे में पता चलेगा तो इसको मजबूती मिलेगी । अराधना प्रधान के उत्साह और साहित्य-कला-संगीत के लिए उनकी प्रतिबद्धता को देखकर इस बात की संभावना है कि आनेवाले दिनों में मुक्तांगन एक बड़े कला केंद्र के तौर पर अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो सकेगा । पिछले दिनों इस केंद्र का शुभारंभ हुआ था और अबतक कई कार्यक्रम हो चुके हैं । संगीत की शाम के अलावा दिनभर चले कार्यक्रम में वैचारिक बहस के अलावा कहानी और शायरी पर भी कार्यक्रम हुए ।
मेरा राम मुख्त़लिफ है- इस विशय पर आयोजित एक सत्र बेहद विचारोत्तेजक रहा । इस सत्र में उपन्यासकार और दिल्ली के जामिया विश्वविद्यालय के सेवनिवृत्त प्रोफेसर अब्दुल विस्मिल्लाह ने कई रोचक व्याख्याएं की । उन्होंने हिन्दू शब्द की उत्पत्ति को आदम और हव्वा की संतान के नाम से जोड़ा, फिर अरबी के शब्दकोश का सहारा लिया और फिर उसको पैगंबर मोहम्मद साहब से जोड़कर एक नई व्याख्या प्रस्तुत करने की कोशिश की । अरबी में हिंदू का अर्थ काला और चोर बताने के बाद इन पंक्तियों के लेखक ने कड़ा प्रतिवाद किया और उनसे इसकी कड़ियां जोड़ने की चुनौती दी लेकिन अब्दुल बिस्मिल्लाह इसको साबित नहीं कर सके कि अरबी में इस्तेमाल हिंदू शब्द कैसे भारत पहुंचा और अरबी का हिंदी भारतीय हिंदू से कैसे जुड़ता है । क्या अलग अलग भाषा में समान शब्द पाए जाने को किसी शब्द की उत्पत्ति का आधार मान लिया जा सकता है । अब्दुल बिस्मिल्लाह पूरे सत्र के दौरान दायें बायें करते रहे लेकिन कई बार पूछे जाने के बाद भी इसको साबित नहीं कर पाए ना ही इन शब्दों को सही संदर्भ में प्रस्तुत कर पाए । मेरा राम मुख्तलिफ है वाले सत्र में राम पर जब भी अब्दुल बिस्मिल्लाह बात कर रहे थे तो उनके विचारों में भटकाव साफ तौर पर लक्षित किया जा सकता था । उन्होंने जोर देकर कहा कि तुलसी ने रामचरित मानस के सिर्फ बाल कांड में ही राम की सुंदरता का वर्णन किया है । यह बोलते हुए शायद वो यह भूल गए कि जब राम वापस अयोध्या आते हैं तो उनके रूप का फिर से वर्णन हुआ है । दरअसल राम को लेकर देश और दुनिया में इतना लिख गया है कि श्रीराम के रूप का वर्णन एक जगह होने की बात कहना ही बोलनेवाले को ही सावल के कठघरे में खड़ा कर देता है । राम के चरित्र का सभी विधाओं से लेकर धर्मों और भाषाओं में व्यप्ति को रेखांकित किया जा सकता है । कितने रामायण लिखे गए और लेखकों ने किस तरह से श्रीराम का चरित्र चित्रण किया इसका आंकलन होना अभी शेष है । तुलसी ने खुद ही कहा भी है- रामायन सत कोटि अपारा ।
दरअसल जब हम अपने अपने राम की बात करते हैं तो यह पाते हैं कि रामकथा भारत समेत दुनिया के कई देशों में लोक में व्याप्त हैं । जनश्रुतियों में व्याप्त रामकथाओं में राम के अलग अलग रूप सामने आते हैं, रामकथा की घटनाएं भी अलग हैं । अगर हम एक घटना का उदाहरण लें और तीन अलग अलग ग्रंथों में इसका उल्लेख देखें तो हर जगह ये अलग तरीके से आता है । सीता के अपहरण का वाल्मीकि रामायण में जिस तरह से उल्लेख है वह तुलसी के रामचरित मानस में अलग है और यही प्रसंग कंबन के रामायण में अलग है । वाल्मीकि सीता को रावण के साथ बिठाकर ले जाने का उल्लेख करते हैं तो तुलसी अपहरण के बाद यात्रा के दौरान रावण के सीता को स्पर्श के बारे में लिखते हैं वहीं कंब के मुताबिक रावण ने जब सीता को अगवा किया तो उनको कहीं से स्पर्श नहीं किया बल्कि उनको उनके कुटिया समेत उठा ले गया था । इसी तरह अहिल्या के संदर्भ में भी एक ही घटना को अलग अलग तरीके से लिखा गया है ।
दरअसल जब भी राम को एक भाषा, एक धर्म, एक संप्रदाय एक विचारधारा से जोडकर प्रतिपादित किया जाता है तो राम को समझने में बड़ी भूल का शिकार हो जाता है । दरअसल जब हम राम की बात करते हैं तो हमें यह समझना चाहिए कि राम का चरित्र या पूरी कथा में आदर्श ही इस कथा की आधारभूत परिकल्पना है । राम का चरित्र, उनके भाई का चरित्र, उनकी पत्नी का चरित्र, परिवार के सदस्यों का चरित्र चित्रण सभी में एक आदर्श है । यहां तक उनके दुश्मन रावण को भी एक विद्वान के रूप में दिखाया गया है । इसलिए राम पर बात करते वक्त अध्ययन के साथ साथ सावधानी भी आवश्यक है । अब्दुल बिस्मिल्लाह बहुत ही अप्रामाणिक और असावधान तरीके से राम पर बात करते रहे, टोकने के बावजूद । अब्दुल बिस्मिल्लाह की राम पर राय सुनकर राजेन्द्र यादव का मशहूर वकतव्य की याद हो आई जिसमें वो विश्वविद्लायों के हिंदी विभागों को प्रतिभाओं की कब्रगाह कहा करते थे । देश के ज्यादातर हिंदी विभागों के शिक्षक पढ़ाई लिखाई से दूर होते चले जा रहे हैं । कोई एक्टिविस्ट हो रहा है तो कोई समाज में क्रांति का बिगुल फूंकता नजर आता है । अपनी मूल जिम्मेदारियों को छोड़कर वहां के ज्यादातर शिक्षक सारे काम करते हैं । कार्यक्रम का संचालन कर रहे प्रभात रंजन ने अब्दुल बिस्मिल्लाह को वापस विषय पर लाने की एकाधिक कोशिश की हलांकि वो भी इस बहस को राजनीतिक रूप देने की जुगत में दिखाई दे रहे थे । राम के चरित्र पर स्त्री विमर्श के पैरोकार भी बहुधा सवाल उठाते रहते हैं लेकिन उनमें से ज्यादातर अलग अलग ग्रंथों में वर्णित रामकथा की घटनाओं में उलझ कर अपने विरोध की अर्थवत्ता खो देते हैं ।
मुक्तागंन के इस कार्यक्रम- मेरा राम मुख़्तलिफ है के बाद कहानी पाठ का सत्र था, जिसमें वंदना राग, अनु सिंह चौधरी और प्रियदर्शन ने कहानी पाठ किया । अनु ने अपने आने वाले उपन्यास के एक अंश का पाठ किया । इन दिनों कई नए उपन्यासकार दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र जीवन को केंद्र में रखकर लिख रह हैं । पंकज दूबे, सत्य व्यास, जैसे मशहूर लेखक के अलावा कई अन्य लेखक भी दिल्ली विश्वविद्लाय जाकर सफल हो चुके हैं । अब अनु के इस उपन्यास में जिस तरह से एक लड़की की कथा के संकेत मिले वो दिलचस्प लगे । दरअसल दिल्ली विश्वविद्लाय के छात्रों के बीच जीवन के इतने छोर हैं कि एक सिरे को पकड़कर ही एक उपन्यास की रचना हो सकती है । अनु ने नाटकीयता के साथ कहानी पाठ करके उपस्थित श्रोताओं की दिलचस्पी बनाए रखी । कहानी पाठ के बाद गज़ल और शायरी का दौर चला । यह सत्र प्रताप सोमवंशी के वाणी प्रकाशन से सद्य: प्रकाशित शायरी की किताब इतवार छोटा पड़ गया से जोड़कर रखा गया था । प्रताप सोमवंशी के अलावा मशहूर शायर शकील जमाली ने अपनी शायरी से लोगों का दिल जीत लिया । शकील जमाली और प्रताप सोमवंशी ने अपनी कुछ नई रचनाएं भी सुनाईं । महानगरों में जब साहित्य से दूर जाने की बात जोर शोर से हो, अपनी विरासत और जड़ों से कटने पर ड्राइंग रूम में चर्चा हो, नई पीढ़ी के पढ़ने लिखने से दूर जाने को लेकर टीवी को कोसा जाए, ऐसे माहौल में रविवार के दिन साहित्य को सुनने सुनाने के लिए पचास-साठ लोगों की उपस्थिति आश्वस्तिकारक लगती है ।    


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