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Saturday, April 8, 2017

लंदन में हिंदी का परचम

पिछले दिनों लंदन में हिंदी के लिए काम करनेवाली संस्था वातायन ने हिंदी के तीन लेखकों और हिंदी के ही एक प्रकाशक को सम्मानित किया । अंतराष्ट्रीय वातायन शिखर सम्मान पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी को दिया गया, अंतराष्ट्रीय वातायन कविता सम्मान उत्तर प्रदेश के कवि, शायर, गायक हरिओम को दिया गया और अंतराष्ट्रीय वातायन संस्कृति सम्मान कवयित्री और मुंबई में साहित्य, कला और संस्कृति को गांव से जोड़नेवाली संस्कृतिकर्मी स्मिता पारिख को दिया गया । इसके अलावा अंतराष्ट्रीय वातायन प्रकाशन सम्मान वाणी प्रकाशन के अरुण माहेश्वरी को प्रदान किया गया । लंदन में आयोजित एक भव्य समारोह में जब इन रचनाकारों को सम्मानित किया जा रहा था तब वहां रहनेवाले तमाम साहित्य प्रेमियों की मौजूदगी हिंदी साहित्य को आश्वस्त कर रही थी । लंदन में भारत के उच्चायुक्त ने इन सबको सम्मानित किया । पुरस्कार देनेवाली संस्था की कर्ताधर्ता दिव्या माथुर और पद्मेश गुप्ता ने इसको हिंदी से जोड़कर आगे बढ़ाने की बातें की । पुरस्कार से नवाजे गए इन शख्सियतों को ब्रिटेन के चार शहरों में हिन्दुस्तानियों से संवाद का भी मौका मिला, कवि गोष्ठी और बातचीत के माध्यम से । हिंदी के लोगों को सम्मानित करने से ज्यादा बड़ा काम वातायन ने यह किया है कि उसने हिंदी के लेखकों और प्रकाशक का संपर्क वहत्तर पाठक वर्ग से करवाया । इसके अलावा एक अच्छी बात यह रही कि इस दौरे में हरिओम ने अपनी गायकी से श्रोताओं का दिल जीत लिया वहीं स्मिता पारिख ने अपनी चर्चित और लोकप्रिय कविताएं सुनाकर श्रोताओं के सामने कई तरह के सवाल उछाले । ब्रिटेन के साथ इस तरह से अगर साहित्यक साझेदारी बनती या बढ़ती है तो यह हिंदी साहित्य के लिए अपने दायरे को विस्तार देने जैसा होगा ।

ब्रिटेन के चार शहरों में हुई इन गोष्ठियों के खत्म होने के बाद एक प्रश्न अब सबके मन में उठ रहा है कि क्या इस पुरस्कार की निरंतरता बनी रहेगी । आयोजक दिव्या माथुर और पद्मेश गुप्ता के सामने यह बड़ी चुनौती है । कई सालों तक कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने भी हिंदी के लेखकों को पुरस्कार दिया, पहले भारत में फिर कई बार लंदन बुलाकर रचनाकारों को सम्मानित किया । पिछले कई सालों से यह पुरस्कार बंद है । दो तीन साल पहले कथा से अलग विधा के रचनाकार को सम्मानित किया गया । हिंदी में अपनी पहचान बना चुके इस पुरस्कार का बंद होना या स्थगित होना अपनी भाषा हिंदी के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि उस पुरस्कार के माध्यम से हिंदी के रचनाकारों को लंदन में मंच मिलता था । हिंदी के बारे में देश के बाहर बाहर बात होती थी और भाषा के विस्तार की जमीन भी तैयार होती थी । विदेश में रह रहे लेखकों को अपनी माटी, अपने वतन के लेखक से मिलने का अवसर मिलता था । लेकिन जब कोई भी पुरस्कार व्यक्तिगत इच्छाओं को प्रतिबिंबित करने लगे तो उसका ज्यादा दूर तक चल पाना मुमकिन हो नहीं पाता है । वातायन ने जब इस साल का पुरस्कार दिया है तो इसमें गद्य के लिए कोई पुरस्कार नहीं है । एक कविता और एक संस्कृति के लिए है, बाकी दो में से एक प्रकाशक और एरक लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड जैसा है । संभव है कि आयोजकों ने कुछ ऐसा नियम बनाया हो जिसमें हर वर्ष अलग अलग विधा के लेखकों को बुलाने की योजना हो लेकिन अगर ऐसा की नियम है तो उसको अभी हिंद-जगत के सामने आना शेष है । विदेशों में हिंदी पर बात होती रहती है लेकिन उसमें ज्यादातर बुजुर्ग लेखकों को बुलाया जाता है लेकिन हाल के दिनों में विदेशों में नए लेखकों को मौका मिलने लगा है । अपेक्षाकृत नए लेखकों को विदेश में जाकर अपनी बात साझा करने से, अपनी रचना प्रक्रिया पर बात करने से, अपनी रचनाओं के साझा करने से आत्मविश्वास बढ़ता है । 

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