Translate

Saturday, August 12, 2017

कांग्रेस में संघर्ष होगा तेज

अभी हाल ही में कांग्रेस पार्टी में दो अहम घटनाएं हुईं। बहुचर्चित राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल गुजरात से निर्वाचित हुए। निर्वाचन के पहले हाई वोल्टेज ड्रामा हुआ और मेरे जानते हाल के दशकों में किसी राज्यसभा चुनाव को मीडिया में इतनी कवरेज नहीं मिली थी। अहमद पटेल के राज्यसभा चुनाव को कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था लेकिन पटेल के लिए तो यह चुनाव करो या मरो की स्थिति के जैसा था। पिछले करीब एक दशक से अहमद पटेल कांग्रेस में सोनिया गांधी के बाद सबसे ताकतवर नेता के तौर पर स्थापित थे। कहा जाता था कि पटेल की मर्जी के बगैर पार्टी में पत्ता भी नहीं हिलता है। ऐसे में जब बीजेपी ने कांग्रेस के इस कद्दावर नेता को राज्यसभा चुनाव के चक्रव्यूह में घेरा तो अहमद पटेल के सामने अपने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया। पटेल ने अपने रणनीतिक कौशल से इस चुनाव के नतीजे को अपने पक्ष में कर लिया और पार्टी में अपनी अहमियत भी साबित कर दी। राज्यसभा चुनाव के नतीजे के पहले पार्टी में एक और बेहद अहम घटना हुई। कांग्रेस के महासचिव और राहुल गांधी कैंप के माने जानेवाले दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस आलाकमान को खत लिखकर पार्टी की सभी जिम्मेदारियों से मुक्त करने की मांग की ताकि तीर्थयात्रानुमा जर्नी पर जा सकें। इसके पहले दिग्विजय सिंह को गोवा और कर्नाटक के बाद तेलांगना के प्रभार से पार्टी ने मुक्त कर दिया था। पार्टी के अंदर गोवा में सरकार नहीं बनने के लिए दिग्विजय सिंह को ही जिम्मेदार माना गया था। तेलगांना का प्रभार लिए जाने के बाद दिग्विजय ने खत लिखा था।
पहली घटना ने तो मीडिया में जमकर सुर्खियां बटोरी लेकिन दिग्विजय सिंह के कदम को उस तरह से सुर्खियां हासिल नहीं हुईं। अब इन दोनों घटनाओं को मिलाकर देखने पर कांग्रेस में एक नए तरह के समीकरण का आभास होता है। पटेल की जीत से एक बात तो तय मानी जा रही है कि पार्टी में अब राहुल गांधी के कैंप के नेताओं पर सोनिया की पीढ़ी के नेता और उनके सहयोगी हावी होने की कोशिश करेंगे। अहमद पटेल की मजबूती को इस रूप में देखा जा रहा है । यह भी संभव है कि अब इस तरह की मांग उठे कि दो हजार उन्नीस के लोकसभा चुनाव तक सोनिया गांधी के हाथों में ही पार्टी की कमान रहे। राहुल गांधी पार्टी के उपाध्यक्ष के तौर पर अपनी भूमिका का निर्वाह करते रहे। अगर इस तरह की मांग मान ली जाती है तो 2019 तक अहमद पटेल की पार्टी में अहमियत और केंद्रीय भूमिका बनी रह सकती है।
कांग्रेस में संगठनात्मक चुनाव होने वाले हैं और जिस तरह से एक नियमित अंतराल पर राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने की खबरें आम होती हैं उसी तरह से एक बार फिर से कयास लगाए जा रहे हैं कि अक्तूबर में राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बन सकते हैं। अहमद पटेल की जीत के बाद यह तो तय हो गया है कि अगर राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष बनते भी हैं तो उनके लिए अहमद पटेल को दरकिनार कर अपनी मर्जी चलाना आसान नहीं होगा। दिग्विजय सिंह की खुद को पार्टी की जिम्मेदारियों से मुक्त करने के अनुरोध को कुछ लोग कांग्रेस के पुराने कामराज फॉर्मूले की तरह देख रहे है। यह कहां तक व्यावहारिक है ये तो आने वाले वक्त में ही पता चल पाएगा।
दरअसल मौजूदा कांग्रेस पार्टी में सोनिया के कैंप के नेताओं और राहुल गांधी के करीबी नेताओं के बीच एक तरह की रस्साकशी लंबे समय से चल रही है। राहुल गांधी चाहते हैं कि वो तब अध्यक्ष बनें जब पार्टी के सभी पदाधिकारी उनकी मर्जी के हों। वो अपनी टीम खुद बना सकें। लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाता है। राहुल कैंप के कई नेताओं का मानना है कि इसमें अहमद पटेल सबसे बड़ी बाधा हैं और वो चाहते हैं कि पार्टी नए और पुराने नेताओं के बीच समन्वय बनाकर चले ताकि पार्टी को अनुभव और ऊर्जा दोनों का साथ मिल सके। अहमद पटेल ने राज्यसभा चुनाव में जीत हासिल कर अपने अनुभव और ऊर्जा के समन्वय के सिद्धांत को साबित भी कर दिया, लिहाजा ये माना जा रहा है कि सोनिया गांधी का इस सिद्धांत में भरोसा बढ़ेगा। सोनिया गांधी जितना ही अनुभव और ऊर्जा के समन्वय की बात करेंगी उतनी ही राहुल गांधी को दिक्कत होगी। राहुल कैंप के नेता चाहते हैं कि जब वो राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष बनें तो उनकी राह में किसी तरह की बाधा ना हो। उनकी टीम में सभी नेता ऐसे हों जिनकी आस्था सिर्फ उनमें हो। अहमद पटेल की राज्यसभा की जीत ने पार्टी के अंदर के इस द्वंद को बढ़ा दिया है।

राहुल गांधी कैंप के नेताओं और अहमद पटेल के बीच संबंध कैसे हैं इसकी बानगी ट्वीटर पर भी देखने को मिल सकती है। अहमद पटेल की जीत के बाद जब पार्टी के सभी नेता अहमद पटेल को बधाई दे रहे थे तो वो सभी उनको टैग कर रहे थे और पटेल भी लगभग सबको नाम लेकर धन्यवाद दे रहे थे। दिग्विजय सिंह ने जो ट्वीट किया उसमें लिखा- बधाई हो अहमद भाई। जवाब में पटेल ने लिखा- बहुत धन्यवाद जी। औपचारिक बधाई का बेहद औपचारिक धन्यवाद। इस ट्वीटर संवाद से ही संकेत मिल रहे हैं। पटेल की जीत के बाद अब पार्टी में एक बार फिर से पीढ़ियों का संघर्ष बढ़ सकता है, इसके संकेत तो मिलने शुरू हो ही गए हैं। अब यह सोनिया के राजनीतिक कौशल पर निर्भऱ करता है कि वो इस संघर्ष से पार्टी को कैसे उबारती हैं।    

No comments: